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    गेहूं डंठल की कलाकृतियां के उद्योग को मदद की दरकार

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 08 Jan 2018 11:54 PM (IST)

    बहराइच : प्रदेश सरकार ने स्थानीय उत्पादों की ब्रां¨डग के लिए वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना

    गेहूं डंठल की कलाकृतियां के उद्योग को मदद की दरकार

    बहराइच : प्रदेश सरकार ने स्थानीय उत्पादों की ब्रां¨डग के लिए वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना का खाका तैयार किया है। जिले में गेहूं के डंठल से बनी कलाकृतियों को बढ़ावा देने की पहल हुई है। गेहूं के डंठल की कलाकृतियां बनाने के उद्योग को सरकार से मदद की दरकार है। बारीक हुनर के इस कलाकृति के खरीदार अमूमन आर्थिक रूप से सबल तबका है। पहले सेंटर संचालित करने के लिए सरकार अनुदान देती थी, तीन वर्षों से इस पर भी ब्रेक लगा है। जिले में इस हुनर के प्रशिक्षुओं की संख्या 200 से अधिक है। देश के अलग-अलग स्थानों पर लगने वाली प्रदर्शनी में हुनरमंद अपनी बनाई कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाते हैं। जहां इनके हुनर का दाम मिलता है। हुनरमंदों को खरीदारों के बाजार का इंतजार है।

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    शहर के नाजिरपुरा पूर्वी मुहल्ले में रह रहे मुहम्मद यूनुस इस विधा में पारंगत है। गेहूं की डंठल से वे कलाकृतियों को जीवंत स्वरूप देते हैं। उप्र में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व हरियाणा के पूर्व राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया से पुरस्कार हासिल कर चुके हैं। पत्नी सादिका भी पति के साथ कलाकृति बनाने में बखूबी भूमिका निभा रही हैं। तीन दशक से गेहूं के डंठल से कलाकृति बनाने वाले दंपती सरकार की ओर से ठोस पहल न होने से निराश हैं। यूनुस बताते हैं कि तीन वर्ष पूर्व जिला उद्योग केंद्र से प्रशिक्षण देने के लिए सेंटर मिलता था। अब यह पहल बंद हो गई है। प्रशिक्षण सेंटर मिलने से प्रशिक्षुओं को स्टाइपेंड मिल जाता था। नाबार्ड इनके हुनर का सम्मान कर रही है। देश में लगने वाली प्रदर्शनी में आने-जाने का खर्च का वहन नाबार्ड करती है। यूनुस बताते है कि इस हुनर के खरीदार संपन्न लोग ही होते हैं। उनकी बनाई सबसे महंगी कलाकृति कोलकाता में बीस हजार रुपये में बिकी थी। डंठल से ताज महल, लाल किला, संसद भवन, अक्षरधाम मंदिर, भगवान श्री कृष्ण, शिव समेत अन्य कलाकृतियां बना चुके है। घर पर ही सेंटर चलाकर दूसरों को भी हुनरमंद बना रहे हैं। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2005-06 में राज्य पुरस्कार से व वर्ष 2013 में हरियाणा में कलानिधि पुरस्कार तत्कालीन राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया ने इन्हें नवाजा। सादिका, नसीमा खान ने बताया कि सरकार डंठल से बनी कलाकृतियों को बढ़ावा देने के लिए ठोस पहल करे, जिससे इस हुनर को मुकाम मिल सके।

    इन उद्योगों को भी मदद की दरकार

    बहराइच में बनने वाला बरसोला आसपास के कई जिलों में अपनी मिठास के लिए जाना जाता है। सरकार की नजरअंदाज के चलते इसकी मिठास मंद पड़ती जा रही है। जिले में बनने वाली छांटी दाल की महक कई प्रदेशों में जाती थी, लेकिन उपेक्षा के चलते यह अब हाशिए पर है। शहर के गुलामअली पुरा मुहल्ले में बनने वाले बर्तन पड़ोसी मुल्क नेपाल में खास तौर पर जाने जाते थे, लेकिन अब यहां कारीगर हाथ पर हाथ धरे बैठे है। बेंत की लकड़ियों से बनने वाले कुर्सी-मेज का हुनर सरकार की उपेक्षा के चलते दम तोड़ रहा है।

    बोले अधिकारी

    योजना के संबंध में शासन से दिशा निर्देश नहीं मिला है। आदेश मिलते ही संबंधित विभाग को क्रियान्वयन के लिए निर्देश जारी किया जाएगा। जिले की पहचान से जुड़े उद्योगों को विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाए जाएंगे।

    रामचंद्र, सीडीओ, बहराइच