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    UP Lok Sabha Chunav 2024: बसपा के सामने है जनाधार बढ़ाने की चुनौती, बहराइच सीट पर पहले भी कर चुकी है प्रयोग

    Updated: Wed, 01 May 2024 09:51 AM (IST)

    UP Lok Sabha Chunav लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने के बाद बसपा उम्मीदवार भी ‘हाथी’ के साथ मैदान में आ डटा है लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती लगातार कटते रहे जनाधार को फिर से सहेजने की है। बावजूद इसके नतीजा आशा के अनुरूप नहीं रहा। चुनाव-दर-चुनाव हार के चलते 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने खुद का उम्मीदवार उतारने की जगह गठबंधन में सीट सपा के लिए छोड़ दी।

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    बसपा के सामने है जनाधार बढ़ाने की चुनौती, बहराइच सीट पर पहले भी कर चुकी है प्रयोग

     मुकेश पांडेय, बहराइच। लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने के बाद बसपा उम्मीदवार भी ‘हाथी’ के साथ मैदान में आ डटा है, लेकिन उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती लगातार कटते रहे जनाधार को फिर से सहेजने की है। बहुजन समाज पार्टी ने 2009 में बहराइच सीट के अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद से लगातार प्रयोग किया और उम्मीदवार बदले।

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    बावजूद इसके नतीजा आशा के अनुरूप नहीं रहा। चुनाव-दर-चुनाव हार के चलते 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने खुद का उम्मीदवार उतारने की जगह गठबंधन में सीट सपा के लिए छोड़ दी। इस बार अकेला चलो की नीति अपनाते हुए उसने फिर जिले के निवासी लखनऊ विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बिरजेश कुमार सोनकर को चुनाव मैदान में उतारा है। बिरजेश स्थानीय होने के कारण सजातीय मतों में प्रभाव भी रखते हैं, लेकिन खिसक रहे जनाधार से वोटरों के बीच भरोसा जताकर हाथी को संसद की दहलीज तक पहुंचा पाना आसान नहीं है।

    ऐसा रहा था चुनावी परिणाम

    चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1998 में सीट सामान्य थी और उसने पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान समय में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को चुनाव मैदान में उतारा था। आरिफ मोहम्मद खान जीत दर्ज कर संसद पहुंचने में कामयाब भी रहे थे। 1999 में बसपा ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया, लेकिन वे हार गए। उन्हें पिछले चुनाव के मुकाबले 36,000 वोट भी कम हो गए। यहीं से जनाधार के क्षरण का सिलसिला शुरू हुआ, जो 2014 तक जारी रहा।

    बसपा ने दिया था ‘बाभन शंख बजाएगा, हाथी दिल्ली जाएगा’

    वर्ष 2004 में बसपा ने ‘बाभन शंख बजाएगा, हाथी दिल्ली जाएगा’ का नारा गढ़ते हुए ब्राह्मण बिरादरी के प्रभावशाली नेता रहे भगतराम मिश्र को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे हार गए। इसके बाद बस्ती के सांसद रह चुके लालमणि प्रसाद को 2009 में यहां भेजा, लेकिन चुनाव हार गए। 2014 में बस्ती के पूर्व विधायक डा. विजय कुमार को चुनाव मैदान में उतारा। वे तीसरे स्थान पर खिसक गए। इसका नतीजा रहा कि 2014 में जब सपा-बसपा का गठबंधन हुआ तो पार्टी सुप्रीमो मायावती ने यहां से उम्मीदवार उतारने की जगह समाजवादी के खाते में ही सीट छोड़ने का फैसला किया।

    ऐसा रहा है चुनाव परिणाम

    वर्ष प्रत्याशी मिले मत
    1998 आरिफ मुहम्मद खान 2,62,360
    1999 आरिफ मुहम्मद खान 2,18,017
    2004 पं. भगतराम मिश्र 1,62,615
    2009 लालमणि प्रसाद 1,21,052
    2014 डा. विजय कुमार 96,904

    वोट सहेजना आसान नहीं

    राजनीतिक विश्लेषक व पूर्व प्राचार्य मेजर डा. एसपी सिंह बताते हैं कि अब जाति आधारित राजनीति को लोग नकार रहे हैं। दलित को बसपा का वोट बैंक माना जाता रहा है। बीते कुछ चुनावों में यह खिसकता नजर आता है। आंकड़े बताते हैं कि इसकी गिरावट को रोकने में किए गए प्रयोग भी असफल रहे हैं। वोट बैंक सहेजना आसान नहीं रह गया है। बसपा को बूथ स्तर पर अपनी रणनीति बनाकर काम करना होगा।

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