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    वाल्मीकि मंदिर बालैनी में करें द्वापर युग के दर्शन

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 25 Sep 2019 11:55 PM (IST)

    हिडन और यमुना के दोआब में बसा बागपत आस्था व संस्कृति और इतिहास का अनूठा संगम है। महाभारत का साक्षी रही बागपत की इस धरा पर ही द्वापर युग को यादों को समेटे महर्षि वाल्मीकि मंदिर बालैनी में है।

    वाल्मीकि मंदिर बालैनी में करें द्वापर युग के दर्शन

    बागपत, जेएनएन। हिडन और यमुना के दोआब में बसा बागपत आस्था व संस्कृति और इतिहास का अनूठा संगम है। महाभारत का साक्षी रही बागपत की इस धरा पर ही द्वापर युग को यादों को समेटे महर्षि वाल्मीकि मंदिर बालैनी में है। मान्यता है कि इस मंदिर में लव-कुश की जन्मस्थली है तो सीता मैया भी यहां समाई थीं। भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की लगाम भी यहीं थामी गई थी। आइए आप भी इस तीर्थ स्थल पर और करिए द्वापर युग के दर्शन..।

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    मेरठ-बागपत मार्ग पर बालैनी गांव में हिडन किनारे महर्षि वाल्मिक की तपस्थली रही है। मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकि के आश्रम बालैनी में लव-कुश का जन्म हुआ था। महर्षि वाल्मीकि जी ने लव-कुश को यहीं शस्त्र एवं शास्त्र विद्या में पारंगत किया था।

    यह भी लोक मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने सीतापुर के नेमी सारण्ड स्थान से अश्वमेध यज्ञ के लिए घोड़ा छोड़ा। यह घोड़ा देशभर में चक्कर लगाने के बाद मयराष्ट्र राज्य यानी आज के बागपत में बालैनी स्थित उक्त आश्रम पहुंचा था, जहां लव-कुश ने घोड़ा पकड़ लिया था। घोड़े के साथ चल रही श्री राम की सेना से लव-कुश का युद्ध हुआ। यहीं वे पिता के साथ भी युद्ध की नौबत आई।

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    शिव उपासक थीं सीता मैया

    महर्षि वाल्मीकि ने सीता जी की शिव भक्ति देखकर इस आश्रम यानी मंदिर में पंचमुखी नागेश्वर महादेव जी की पूजा की थी।

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    इतिहास और संस्कृति का खजाना

    महर्षि वाल्मीकि आश्रम कितना प्राचीन है, इसका सबूत वहां तीन दशक पूर्व खोदाई में निकलीं प्रतिमाएं और चांदी के सिक्के हैं। साल 1987 में महंत लक्ष्य देवानंद जी महाराज ने मंदिर के पास समतलीकरण को टीले की खुदाई कराने पर पांच हजार साल पुरानी यानि पाषण युग की मिट्टी की तीन टांग वाली प्रतिमा, घुंघराले बालों वाली प्रतिमा और अन्य कई देवी-देवाताओं की मूर्तियां निकलीं। खोदाई में यहां नौ इंच चौड़ाई तथा 12 इंच लंबाई की सात से दस किलो वजन की चपटी ईंटें मिली थीं। पांच हजार साल पुरानी नाधिया मूर्ति भी मिली।

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    चांदी के सिक्के निकले

    लक्ष्य देवानंद जी महाराज बताते हैं कि दो दशक पूर्व मंदिर परिसर में मिट्टी खुदाई के दौरान छह चांदी के सिक्के निकले। तब लोग चांदी के सिक्के देखने को उमड़े। इस दरम्यान एक युवक ने महंत से चांदी के सिक्के देखने को लिए और फिर भीड़ में गुम हो गया।

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    औरंगजेब के अत्याचार का असर

    महर्षि वाल्मीकि मंदिर की लव-कुश पत्रिका का अवलोकन करने से यह तथ्य सामने आया कि औरंगजेब के शासनकाल में धार्मिक स्थलों पर जो अत्याचार हुए, उनमें यह महर्षि वाल्मीकि मंदिर भी अछूता नहीं रहा।

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    अंग्रेजी अफसर का हमला

    साल 1930 में एक अंग्रेज अफसर हिडन किनारे मंदिर के पास शिकार खेलने आए। मंदिर के तत्कालीन पुजारी गोदावरी दास महाराज ने अंग्रेज अफसर को शिकार खेलने से रोका, लेकिन अंग्रेज अफसर इतना नाराज हुआ कि पुजारी की गोली मारकर हत्या कर दी। फिर जयराम दास मंदिर पुजारी बने और 1950 तक रहे। उनके बाद गोबरधनदास महाराज 1960 तक पुजारी रहे। उनके बाद ईश्वरदासजी पुजारी बने। वर्ष 1982 में बदमाशों ने मंदिर में डाका डाला तत्कालीन पुजारी ईश्वदास जी महाराज को तख्त से बांधकर जिदा जला दिया। दो साल तक मंदिर वीरान रहा। साल 1984 में ब्रज निवासी लक्ष्य देवानंद जी महाराज यहां आए तथा उनकी देखरेख में मंदिर में काफी काम हुए हैं।

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    इतने मंदिर

    इस वाल्मीकि मंदिर में लव-कुश जी का जन्म स्थली, सीता मैया की समाधि स्थल, पंचमुखी महादेव मंदिर, राधा-कृष्ण जी का मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर, शनि मंदिर है। विशाल यज्ञशाला है। मंदिर में विराजमान कई प्रतिमाएं हजारों साल पुरानी हैं।

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    नवरात्र में उमड़ते हैं श्रद्धालु

    नवरात्र पर दूर-दराज के श्रद्धालु भी यहां पूजा-अर्चना को आते हैं। नवरात्र पर लगातार नौ दिन अनुष्ठान होता है। हर साल आखा तीज का मेला लगता है। आखा तीज का मेला इसलिए लगता है कि लव-कुश का जन्म भी तीज को हुआ था।

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    ऐसे पहुंचें मंदिर

    बागपत से 26 किमी दूर मेरठ बागपत मार्ग से एक किमी हटकर डौलचा गांव की तरफ बालैनी में हिडन किनारे वाल्मीकि मंदिर है। आप बागपत या मेरठ से सीधे बागपत मेरठ मार्ग होते हुए मंदिर पहुंच सकते हैं।