असिस्टेंट प्रोफेसर बोले, खंडवारी है महाभारतकालीन धरोहर
खंडवारी है महाभारतकालीन धरोहर

असिस्टेंट प्रोफेसर बोले, खंडवारी है महाभारतकालीन धरोहर
- यहां मिले चित्रित धूसर मृदभांड दर्शाते हैं 3000 साल पुरानी सभ्यता
- दो हजार साल पुराने खिलौने मिले, मानव बस्ती के प्रमाण भी मिले
जासं, बागपत : दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. शुभम केवलिया ने करीब चार घंटे खंडवारी का भ्रमण किया। उन्हें वहां पर चित्रित धूसर मृदभांड, दो हजार साल पुराने मिट्टी के खिलौने मिले, जिनमें कूबड़ युक्त बैल शामिल हैं। उन्होंने कहा कि चित्रित धूसर मृदभांड तीन हजार साल पुरानी सभ्यता दर्शाते हैं। इससे स्पष्ट है कि खंडवारी महाभारत कालीन धरोहर है। कूबड़ युक्त बैल खिलौने प्रारंभिक काल में मिलते थे।
उज्जैन निवासी डा. केवलिया ने कहा कि उन्होंने वेस्ट यूपी का भ्रमण किया है। वर्ष 2018 से लगातार बागपत में आते रहे हैं। सिनौली साइट पर पीएचडी की है। लाक्षागृह, कुर्डी, बामनौली आदि का पहले कई बार भ्रमण कर चुके हैं। इंटरनेट मीडिया पर खंडवारी में पुरावशेष मिलने की जानकारी मिलने पर शुक्रवार सुबह करीब 10 बजे एमए के छात्र हर्षित के साथ यहां पर पहुंचे और दोपहर दो बजे तक भ्रमण किया। खंडवारी में बरनावा के लाक्षागृह व अन्य गांवों की तरह पेंटेड ग्रेवेयर यानी चित्रित धूसर मृदभांड मिले हैं। गुप्त या उत्तर गुप्त कालीन ईंटों का ढांचा है, जिसे हम स्पष्ट रूप से कुआं भी नहीं कह सकते हैं। यहां पर लंबे समय मानव बस्ती रही है, जिसके प्रमाण मिले हैं। उधर, सिसाना ही नहीं क्षेत्र के लोगों का दिनभर खंडवारी में आना-जाना लगा रहा। उनकी मांग है कि शीघ्र ही उत्खनन शुरू हो।
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ऐसे सुर्खियों में आया खंडवारी
बागपत और सिसाना के मध्य स्थित गैर आबादी ग्राम खंडवारी में मिट्टी के अवैध खनन के दौरान लोगों को मंदिर की आकृति दिखाई दी थी। युवाओं ने 27 अक्टूबर को मोबाइल से वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित किया था। 28 अक्टूबर की सुबह से पूजा-अर्चना शुरू हो गई थी। इस दौरान हड्डी, मृदभांड, सिक्का व अन्य पुरावशेष मिले थे। मामला सुर्खियों में आने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तीन सदस्यीय टीम 29 अक्टूबर की सुबह मेरठ से खंडवारी पहुंच गई थी, जिसने दो किमी से ज्यादा का इलाका खंगाला था। पांडवों के प्रयोग करने वाली बताई गई बंद सुरंग मंदिर में पहुंचकर देखी थी। पुरावशेष कब्जे में लिए थे। एएसआइ ने प्रारंभिक जांच में पाया है कि यहां पर दिख रही ईंटों की आकृति मंदिर नहीं बल्कि गुप्तकालीन कुआं है।

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