उत्तम तप धर्म को किया अंगीकार, जिनालयों में उमड़े श्रद्धालु
दशलक्षण पर्व के सातवें दिन आज जैन धर्मावलंबियों ने उत्तम तप दिवस को अंगीकार कर इस धर्म को पालन करने का संकल्प लिया। इस दौरान जिनालयों में विधानों का आयोजन किया गया।
बागपत, जेएनएन। दशलक्षण पर्व के सातवें दिन आज जैन धर्मावलंबियों ने उत्तम तप दिवस को अंगीकार कर इस धर्म को पालन करने का संकल्प लिया। इस दौरान जिनालयों में विधानों का आयोजन किया गया।
शहर के दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में आर्य का प्रत्यक्ष ती माता जी के सानिध्य में चल रहे तेरह दीप महामंडल विधान में सोमवार को सर्वप्रथम चंद्रप्रभु भगवान की पूजा अर्चना कर श्रद्धालुओं द्वारा अभिषेक किया गया। पीत वस्त्र धारण कर श्रद्धालुओं ने पंडित अंशुल जैन शास्त्री जयपुर के निर्देशन में संगीत की मधुर लहरियों के बीच नित्य नियम की पूजा की। विधान में नित्य नियम की छह पूजाएं की गईं। इसके पश्चात तेरह दीप महामंडल विधान प्रारंभ हुआ। संगीत की मधुर लहरियों के बीच श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति भाव से नृत्य किया। विधान के बीच-बीच में पंडित अंशुल जैन शास्त्री ने विधान की महत्ता बताई।
शहर के दिगंबर जैन छोटा मंदिर जी में श्रद्धालुओं ने सर्वप्रथम भगवान का अभिषेक किया। इसके पश्चात जाप आदि किए गए। मंदिर में श्रद्धालुओं ने पूरे भक्ति संगीत के साथ भगवान की पूजा-अर्चना की। दिगंबर जैन अतिथि भवन में भी श्रद्धालुओं के द्वारा भगवान का अभिषेक कर पूजा अर्चना की गई। दोपहर में दिगंबर जैन अतिथि भवन में पंडित अंशुल जैन शास्त्री ने तत्वार्थ सूत्र की वाचना की। रात्रि में दिगंबर जैन बड़ा मंदिर जी में श्रद्धालुओं ने संगीत की मधुर लहरियों के बीच भगवान चंद्रप्रभु की दीपों के द्वारा आरती उतारी गई। इसके पश्चात पंडित अंशुल जैन शास्त्री ने उत्तम तप धर्म के बारे में बताया। दिगंबर जैन छोटा मंदिर जी एवं दिगंबर जैन अतिथि भवन में भी श्रद्धालुओं ने भगवान की आरती पूरे भक्ति के साथ उतारी। उत्तम तप धर्म पर पंडित अंशुल जैन शास्त्री जयपुर ने कहा कि जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक प्राणी में अनंत संभावनाएं हैं। उनकी अभिव्यक्ति अनुकूल निमित्तों और साधना के बल पर ही होती है। प्रतिमा में छिपे भगवान की भांति आत्मा में परमात्मा है। आत्मा में ही परमात्मा है, यह जैन दर्शन का सूत्र वाक्य है। प्रत्येक प्राणी में परमात्मा की शक्ति विद्यमान है। इस शक्ति की अभिव्यक्ति के लिए तप साधना जरुरी है। उस आत्मा की अभिव्यक्ति ही परमात्मा की उपलब्धि है। यही धर्म साधना का मूल ध्येय है। स्वर्ण पाषाण को अग्नि में तपाया जाता है, तब उसकी कालिमा गलकर पृथक् होती है। स्वर्ण का शुद्ध स्वरूप निखर उठता है। वह हमारे गले का हार बन जाता है। इसी प्रकार जो व्यक्ति तप अनुष्ठान करता है। उसकी आत्मा कुन्दन बन जाती है । सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए
नन्हे-मुन्ने बच्चों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए गए। दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में दिगंबर जैन बाल सदन के बच्चों द्वारा आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। उनकी प्रस्तुति इतनी सुंदर एवं भाव विभोर करने वाली थी कि उपस्थित श्रद्धालुओं ने उनका करतल ध्वनि से उत्साहवर्धन किया। इस अवसर पर पूरा परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। बच्चों ने एक से बढ़कर एक धार्मिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर समा बांध दिया। इस अवसर पर बड़ौत दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीन जैन, मंत्री अतुल जैन सर्राफ, नरेंद्र जैन, धनेंद्र जैन, सतीश चंद जैन सर्राफ, नवीन जैन, अतुल जैन, सचिन जैन, सुधीर जैन, मनोज जैन, अंकुर जैन, पुनीत जैन, बिजेंद्र जैन, प्रदीप जैन, आलोक जैन, सुनील जैन, नितिन जैन, मुकुल जैन, अशोक जैन, राकेश जैन, अभिषेक जैन, वकील चंद जैन आदि उपस्थित थे। उत्तम रूप धर्म अंगीकार किया
दसलक्षण पर्व के सातवें दिन श्री 1008 अजीतनाथ दिगंबर जैन प्राचीन मंदिर मंडी बड़ौत में आर्यिका श्री 105 पवित्र मति माताजी के सानिध्य में उत्तम तप धर्म की आराधना की गई।
प्रात: 6 बजे केसरिया वस्त्रधारी जैन श्रद्धालुओं ने अजीतनाथ भगवान की जिन प्रतिमा का गरम प्रासुक जल से अभिषेक किया। आर्यिका पवित्र मति माताजी द्वारा बोले गए दिव्य मंत्रों के मध्य शांति धारा का सौभाग्य, सोधर्म इंद्र रूपल जैन को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर संगीतकार सुंदर म्यूजिकल ग्रुप द्वारा भगवान के जन्म कल्याणक के सुंदर भजन प्रस्तुत किए गए।
विधान आचार्य अभिषेक जैन शास्त्री हस्तिनापुर वालों के निर्देशन में सभी इंद्र- इंद्राणियों ने नित्य नियम पूजन की, जिसमें नव देवता पूजन, सोलह कारण पूजन, दसलक्षण पूजन तथा नंदीश्वर दीप की पूजन किया गया। तत्पश्चात श्रद्धालुओं द्वारा श्री चंद्रप्रभु विधान भक्ति भाव से पूजन किया और मंडल पर 72 अर्घ्य समर्पित किए। विधान के मध्य मंगल प्रवचन देते हुए आर्यिका श्री 105 पवित्र मति माताजी ने कहा जिस प्रकार स्वर्ण पाषाण में स्वर्ण छिपा होता है, दूध के अंदर घी समाविष्ट रहता है, उसी प्रकार इस देह में आत्मा विद्यमान हैं। उस आत्मा की अभिव्यक्ति ही परमात्मा की उपलब्धि है। इच्छाओं का निरोध ही तप का मूल उद्देश्य है। सिर्फ कर्म क्षय के लिए किया गया पुरुषार्थ ही तप है। कर्मों का दहन करने के कारण ही इसे तप कहते हैं। साधारण व्यक्ति को तपस्वी के तप में कष्ट दिखता है परंतु तपस्वी तो उस कष्ट की स्थिति में भी आनंद मग्न रहता है। इसलिए हे प्राणी, उत्तम तप अंगीकार कर अपने कर्मों की निर्जरा करो तथा अपने मानव जीवन को सफल बनाओ। सभा में मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुभाष जैन, महामंत्री मुकेश जैन, कोषाध्यक्ष प्रदीप जैन, मीडिया प्रभारी वरदान जैन, मेला मंत्री मुकेश जैन, अशोक जैन बिजली वाले, मुकेश जैन बजाज, विपिन जैन, सतीश जैन, दिनेश जैन, अंकुर जैन, शशि जैन, महेंद्र जैन, जयपाल जैन आदि उपस्थित थे।
रात्रि में मंदिर जी में श्री स्यादवाद संगीत मंडल द्वारा दसलक्षण पर्व पर विशेष संगीतमय आरती का आयोजन किया गया तथा उसके पश्चात जैन मिलन नगर के सौजन्य से किडजी स्कूल के बच्चों के द्वारा सुंदर सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। पुरस्कारों का वितरण, संजीव जैन, जैन नगर के अध्यक्ष प्रवीन जैन, संजीव जैन, नरेंद्र जैन राजकमल, राजेश जैन भारती आदि के द्वारा किया गया। तेरह दीप विधान का आयोजन
श्री 1008 पार्श्वनाथ मन्दिर नेहरू में दशलक्षण महापर्व के सातवें दिवस उत्तम तप धर्म को अंगीकार किया मन्दिर जी मे चल रहे तेरहदीप विधान में सर्वप्रथम श्री जी का अभिषेक एवं शान्तिधारा की गई नित्य नियम पूजा के बाद संगीत के साथ विधान किया गया। इस अवसर पर पंडित नेमचंद ने कहा कि तप धर्म का मतलब, इंद्रियों की बातों में ना आकर, इंद्रियों को वश में करके, तपस्या में लीन होना। मन और इंद्रियों को आत्मा से आत्म हित के लिए उपयोग करना। आत्म कल्याण का कार्य करना, आत्मा में लीन होना। जीवन को जितना तपाएंगे, इंद्रियों को जितना वश में रखेंगे, उतनी ही आत्मा स्वच्छ बनेगी। तप धर्म यही संदेश देने आया है। सायंकाल के समय मंदिर में श्री जी की आरती के बाद नेहरू बाल एकेडमी के बच्चों द्वारा सुन्दर सांस्कृतिक कार्यक्रम किये गए, जिसमें णमोकार मंत्र हमें प्राणों से प्यारा, महावीर झूले पलना भजनों पर बच्चों द्वारा शानदार नृत्य किये गए। कार्यक्रम में सतेंद्र जैन, अनिल जैन, सुशील, राजीव, अमित, सुभाष, गीता, उषा, सरला, रिया, अंजू, आदिश जैन आदि थे। इच्छाओं का निरोध करना है तपबिनौली: श्री दिगम्बर जैन पुराना मंदिर में चल रहे दशलक्षण पर्व के सातवे दिन सोमवार को उत्तम तप धर्म की पूजा की तथा मंत्रोच्चारण के साथ अर्घ्य चढ़ाए। पंडित अशोक शास्त्री ने प्रात: नित्य नियम पूजन, शांतिधारा व अभिषेक की क्रियाएं संपन्न कराई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि इच्छाओं का निरोध करना तप है, जिस प्रकार सोने को तपाने पर वह समस्त मैल छोड़ कर शुद्ध हो जाता है और चमकने लगता है। उसी प्रकार सांसारिक विषय-भोगों की अभिलाषा से विरक्त होकर अनादि कर्म बंध से सिद्ध-स्वरुप निर्मल आत्मा को बारह प्रकार के तप से तपाकर कर्म-मल रहित करना उत्तम तप कहलाता है। तप से निर्जरा होती है। कर्मों का क्षय करने के लिए तप करना आवश्यक है। बरनावा के श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर में भी श्रद्धालुओं ने उत्तम तप धर्म को अंगीकार किया। इस दौरान नीरज जैन, मदन जैन, जिवेंद्र जैन, पीयूष जैन, संदीप जैन, राकेश जैन, प्रमोद जैन, नीरज जैन, लता जैन, अरुण जैन, उत्सव जैन, वीरेंद्र जैन, मनोज जैन, मोहित जैन आदि मौजूद रहे।
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