Pura Mahadev Temple Baghpat: भगवान परशुराम ने स्थापित किया था शिवलिंग, शिवरात्रि पर उमड़ी भीड़, ये है मान्यता
Parshurameshwar Pura Mahadev Temple परशुरामेश्वर महादेव मंदिर पर सावन की शिवरात्रि पर डाक कांवड़ की धूम मची है। डाक कांवड़ बिना रुके लाई जाती है। शिवभक्त भागते हुए कम से कम समय में अपनी यात्रा पूरी करने का संकल्प लेते हैं। हरिद्वार से जल लेकर निरंतर बारी-बारी से दौड़ते हुए अपने क्षेत्र के शिवालय तक पहुंचते हैं। परशुरामेश्वर महादेव मंदिर महर्षि परशुराम ने स्थापति किया शिवलिंग।

बागपत, जागरण संवाददाता। सावन की शिवरात्रि पर ऐतिहासिक परशुरामेश्वर पुरा महादेव मंदिर में कांवड़ियों का सैलाब उमड़ पड़ा। कांवड़ियों ने तड़के से ही जलाभिषेक शुरू कर दिया। दिन चढ़ते-चढ़ते कतार लंबी होती गई। एक से बढ़कर एक कांवड़ आकर्षण का केंद्र बनी हैं। बागपत के साथ ही मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, दिल्ली और शामली के कांवड़ियों ने भी देवाधिदेव का अभिषेक कर प्रसन्न किया। मेले की रौनक भी देखते ही बनी।
एसपी ने किया मेले का निरीक्षण
शनिवार को शिवरात्रि पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच भगवान आशुतोष का जलाभिषेक चल रहा है। एसपी अर्पित विजयवर्गीय ने भी मेले का निरीक्षण किया। परशुरामेश्वर महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित जयभगवान शर्मा ने बताया कि आज शाम 7.32 बजे विधि विधान से झंडा पूजन किया जाएगा। करीब एक घंटे के पूजन के बाद शाम 8.32 बजे झंडारोहण होगा। उसके बाद मुख्य जलाभिषेक शुरू हो जाएगा। वहीं, शुक्रवार शाम 7.17 बजे त्रयोदशी लगते ही कांवड़ियों के सैलाब ने मंदिर की ओर से रुख कर दिया था। करीब दो किलोमीटर लंबी लाइन में लगकर महादेव का जलाभिषेक किया। आज शाम 8.32 बजे चतुर्दशी लग जाएगी, जिसके बाद मुख्य जलाभिषेक होगा।
17.50 फीट ऊंची कांवड़
भोले को रिझाने के लिए उनके भक्त अनोखे प्रयास करते हैं। कोई माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर लाता है तो कोई अपनी कांवड़ से देशभक्ति का संदेश देता है। ऐसे ही बागपत जिला अस्पताल के कर्मचारी टिंकू हरिद्वार से 17.50 फीट की कांवड़ लेकर अपने गांव बामनौली पहुंचे हैं। उनकी कांवड़ आकर्षक का केंद्र बनी है।
भगवान परशुराम ने स्थापित किया शिवलिंग
बागपत के पुरामहादेव गांव स्थित परशुरामेश्वर महादेव मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। महादेव का यह प्राचीन मंदिर है। श्रावण और फाल्गुन मास में गंगा के पवित्र जल से भगवान आशुतोष का श्रद्धालु अभिषेक करते हैं। भक्तों की यहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सामान्य दिनों में भी भक्तों का तांता लगा रहता है।
ये है मंदिर की मान्यता
मान्यता है कि जहां पर परशुरामेश्वर पुरामहादेव मंदिर है, यहां काफी पहले कजरी वन हुआ करता था। इसी वन में जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। प्राचीन समय में एक बार राजा सहस्त्र बाहु शिकार करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम में पहुंचे। रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का पूर्ण आदर सत्कार किया। राजा उस अद्भुत गाय को बलपूर्वक ले जाना चाहते थे। सफल न होने पर राजा ने गुस्से में रेणुका को ही बलपूर्वक अपने साथ हस्तिनापुर महल में ले जाकर बंधक बना लिया। राजा की रानी ने उसे मुक्त करा दिया।
परशुराम ने माता का सिर धड़ से किया अलग
रेणुका ने वापस आकर सारा वृतांत ऋषि को सुनाया, परंतु ऋषि ने एक रात्रि दूसरे पुरुष के महल में रहने के कारण रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया। ऋषि के चौथे पुत्र परशुराम ने पितृ आज्ञा को अपना धर्म मानते हुए अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में पश्चाताप हुआ तो शिवलिंग स्थापित कर महादेव की पूजा की। भगवान शिव ने प्रत्यक्ष दर्शन दिए और वरदान में माता को जीवित कर दिया और एक परशु (फरसा) भी दिया। युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया।
भगवान परशुराम वहीं पास के वन में एक कुटिया बनाकर रहने लगे थे। थोड़े दिन बाद ही परशुराम ने अपने फरसे से संपूर्ण सेना सहित राजा सहस्त्रबाहु को मार दिया। जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी वहां एक मंदिर भी बनवाया था।
लंडौरा की रानी ने कराई खोदाई तो प्रकट हुआ शिवलिंग
कालांतर में मंदिर खंडहरों में बदल गया। काफी समय बाद एक दिन लंडौरा की रानी इधर घूमने निकली तो उसका हाथी वहां आकर रुक गया। महावत की बड़ी कोशिश के बाद भी हाथी वहां से नहीं हिला। तब रानी ने सैनिकों को वह स्थान खोदने का आदेश दिए। खोदाई में वहां एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जिस पर रानी ने एक मंदिर बनवा दिया। यही शिवलिंग तथा इस पर बना मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात है। इसी पवित्र स्थल पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी तपस्या की थी।
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