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    भारत के मूल निवासी थे आर्य, यहीं विकसित हुई आर्य संस्कृति

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 17 Aug 2019 06:27 AM (IST)

    सिनौली से प्राप्त पुरावशेष एक बार फिर ताम्र युगीन सभ्यता से जुड़े कई अनसुलझे रहस्यों की गुत्थी सुलझाने को तैयार हैं।

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    भारत के मूल निवासी थे आर्य, यहीं विकसित हुई आर्य संस्कृति

    बागपत, जेएनएन। सिनौली से प्राप्त पुरावशेष एक बार फिर ताम्र युगीन सभ्यता से जुड़े कई अनसुलझे रहस्यों की गुत्थी सुलझाने को तैयार हैं। अभी तक इतिहासकारों और पुराविदों के बीच आर्य आगमन थ्योरी के प्रभावी होने के कारण भारत की प्राचीन सभ्यता को प्राच्य न मानकर विदेशों से आयातित माना जाता रहा है, जबकि नया शोध आर्यों को भारत का मूल निवासी सिद्ध करता है। सिनौली सभ्यता से प्राप्त शवाधान केंद्र, ताम्र युगीन सभ्यता के पुरावशेषों एवं भारत के विभिन्न हिस्सों से मिले ताम्र युगीन हथियारों व औजारों के तुलानात्मक अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुई है कि ताम्र युगीन संस्कृति कम से कम पांच से सात हजार साल पुरानी है। पुरावशेष पर खास पकड़ रखने वाले एडीजी भर्ती बोर्ड विजय कुमार एवं शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक डा. अमित राय जैन द्वारा किए जा रहे संयुक्त शोध के परिणामों से पता चला है कि सिनौली सभ्यता के निवासी भारत की ही प्राचीनतम सभ्यताओं से जुड़े हैं एवं यहीं के मूल निवासी हैं। अतीत का काला युग होगा उजला

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    ताम्र युगीन संस्कृति पर शोध कर रहे एडीजी विजय कुमार का कहना है कि ताम्र युगीन सभ्यता एवं सैंधव सभ्यता के मध्य करीब 1500 वर्षों का कालखंड अभी तक अतीत का काला युग माना जाता रहा है। लेकिन सिनौली उत्खनन ने मिले पुरावशेषों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भारत की प्राचीनतम सभ्यताएं निरंतर इसी देश में विकसित होती रहीं और यहीं से अलग-अलग प्रांतों में भ्रमण करती रहीं। प्राकृतिक आपदाओं के कारण यदि देश के दक्षिणी हिस्से से कोई सभ्यता नष्ट हुई तो उसी सभ्यता के लोगों ने देश के उत्तरी हिस्से में पहुंचकर अपनी सभ्यता का प्रसार किया। सिनौली साइट की खोदाई में प्राचीन सभ्यताओं के प्रमाणों के साथ-साथ ताम्र युगीन सभ्यता के पुरावशेष मिल रहे हैं, जो इस नई थ्योरी के पुख्ता प्रमाण हैं।

    शहजाद राय शोध संस्थान के निदशेक डा. अमित राय जैन के मुताबिक, 2005 के सिनौली साइट के उत्खनन में एंटीना शोर्ड (ताम्र निर्मित तलवार) मिलना पुराविदों के लिए एक दुर्लभ घटना थी। क्योंकि इससे पूर्व सिधु कालीन सभ्यता के पुरावशेषों में ताम्र निधि की उपलब्धता नगण्य थी। परंतु सिनौली के दुर्लभ पुरावशेषों ने नई बहस को जन्म दिया। इसी गुत्थी को सुलझाने के लिए संस्थान का नया शोध अंतिम चरण में पहुंच है। समग्र आंकड़ों का किया जा रहा संकलन

    एडीजी विजय कुमार लखनऊ से दो बार बड़ौत के शहजाद राय शोध संस्थान का दौरा कर यहां संग्रहित ताम्र निधियों के समग्र आंकड़ों का संकलन किया। उनका तीन साल पहले 2016 में ताम्र निधि पर आधारित पहला शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुका है। अब इसकी अगली कड़ी में दूसरा शोध पत्र विख्यात इंडियन जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी में प्रकाशित होने जा रहा है। इसके बाद इन शोध पत्रों एवं सिनौली से प्राप्त ताम्र निधि व शहजाद राय शोध संस्थान में संग्रहित ताम्र निधियों को चित्रों को संपूर्ण विवरण के साथ किताब के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।