डा. सूर्यदेव यूएनओ में पढ़ा रहे मानवाधिकारों का पाठ
भारतीय मूल के डा. सूर्यदेव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में मानवाधिकारों से जुड़े कार्यकारी समूह में सलाहकार पद पर रहते हुए देश का मान बढ़ा रहे हैं।
जेएनएन, बागपत : भारतीय मूल के डा. सूर्यदेव संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में मानवाधिकारों और बहुराष्ट्रीय निगमों एवं कारोबारी उद्यमों से जुड़े कार्यकारी समूह में सलाहकार पद पर रहकर देश का मान बढ़ा रहे हैं। वैदिक संस्कृति से खास लगाव रखने वाले डा. सूर्यदेव मूल रूप से बागपत जिले के मवीकलां गांव के रहने वाले हैं। फिलहाल विश्व की आधी आबादी के एशिया प्रशांत क्षेत्र के विधि प्रतिनिधि के तौर पर कार्य कर रहे डा. सूर्यदेव सिंह के खाते में यूएनओ की मानवाधिकार परिषद में सबसे कम उम्र के सलाहकार बनने की उपलब्धि भी दर्ज है।
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देहात से यूएनओ तक
का शानदार सफर
जनपद के मवीकला गांव निवासी जनता वैदिक कालेज बड़ौत से सेवानिवृत्त प्रो. सुरेंद्र पाल आर्य के घर वर्ष 1973 में जन्मे डा. सूर्यदेव की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। इसके बाद 12वीं तक शिक्षा बड़ौत के जनता वैदिक इंटर कालेज में ग्रहण की। दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी व एलएलएम किया। इस दौरान वह ला कालेज के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे। इसके बाद उन्होंने आस्ट्रेलिया के सिडनी से पीएचडी की। वर्ष 2004 में हांगकांग के सिटी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ला में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्य शुरू किया। फिर यहां कई वर्षों तक चीफ प्राक्टर के पद पर रहे। पत्नी स्वाति आर्य हांगकांग के विवि में प्रवक्ता हैं।
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पिछड़े देशों के मानवाधिकारों
की कर रहे रक्षा
डा. सूर्यदेव वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद में सलाहकार नियुक्त हुए। वह इस समय विश्व की आधी आबादी के एशिया प्रशांत क्षेत्र के विधि प्रतिनिधि के तौर पर कार्य कर रहे हैं, जिसके वर्ष 2017 में चेयरमैन भी रहे हैं। उनका कार्य पिछड़े व गरीब देशों के मानवाधिकारों की रक्षा करना, उनको बड़े देशों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शोषण के विरुद्ध कानून बनाना है।
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मानवाधिकारों पर लिखे
शोध पत्र व दिए व्याख्यान
हांगकांग के स्कूल आफ लॉ ऑफ सिटी यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत डॉ.सूर्यदेव ने वर्ष 2014 में कारोबार एवं मानवाधिकार पर भारतीय राष्ट्रीय रूपरेखा एवं मानवाधिकार विषय पर एक पृष्ठभूमि पत्र लिखा। इससे पूर्व वर्ष 2014 में ही यूएनओ मुख्यालय जेनेवा में दुनिया के चार कानूनी विशेषज्ञों में उनका प्रथम स्थान था। इसी वर्ष कैंब्रिज यूनिवर्सिटी लंदन में उन्हें 20 व्याख्यानों के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने कारोबार एवं मानवाधिकार, सामाजिक जवाबदेही, भारत-चीन संवैधानिक कानून और सतत विकास पर शोध किए हैं।
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