यूपी के इस जिले में पशुओं की जान ले रहा फ्रांस का वायरस...60 से ज्यादा पशुओं की मौत और दर्जनों बीमार
फ्रांस में एक जानलेवा वायरस फैल रहा है, जो पशुओं के लिए घातक साबित हो रहा है। इस वायरस के कारण कई पशुओं की मौत हो चुकी है, जिससे किसानों और पशुपालकों में डर का माहौल है। सरकार वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कदम उठा रही है।

फ्रांस में एक जानलेवा वायरस फैल रहा है, जो पशुओं के लिए घातक साबित हो रहा है। (प्रतीकात्मक फोटो)
जागरण संवाददाता, बागपत। ढिकौली गांव में दर्जनों पशुओं की बीमारी से मौत ने पशुपालकों व पशुपालन विभाग को हैरत में डाल दिया। अब चार विज्ञानियों के वायरस ट्रेस करने से पता चला है कि पशुओं के बीमार होने तथा मौत का जिम्मेदार खुरपका-मुंहपका का सीरोटाइप ओ वायरस है। यह वायरस फ्रांस के ओइस शहर से भारत समेत दुनियाभर में पहुंचा था।
ढिकौली में हाल-फिलहाल 60 से ज्यादा पशुओं की मौत तथा कई के बीमार होने से पशुपालकों की नींद उड़ी हुई है। स्थानीय पशु चिकित्सकों की टीम बीमारी नहीं पकड़ पाई। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय मेरठ के पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय से पशु विज्ञानी भेजकर जांच कराने का अनुरोध किया था। 31 अक्टूबर को प्रोफेसर डा. अमित कुमार, पशु जैव प्रौद्योगिकी प्रमुख प्रोफेसर डा. अमित कुमार, पशु चिकित्सा पैथोलाजी के सहायक प्रोफेसर डा. विकास जायसवाल तथा सहायक प्रोफेसर डा. अरबिंद सिंह ने ढिकौली का दौरा कर 12 बीमार पशुओं के ब्लड, सीरम, खुर तथा मुंह से द्रव्य के सैंपल लेकर जांच की।
पशु विज्ञानियों ने सीवीओ बागपत को भेजी रिपोर्ट में कहा कि जांच में खुरपका-मुंहपका का सीरोटाइप ओ वायरस मिला। इन 12 पशुओं में से आठ में हीमा-प्रोटोजोआ, सात पशुओं में एनाप्लाजमा, तीन पशुओं में थाइलेरिया से संक्रमण की पुष्टि हुई। इन पशुओं में मिक्स बैक्टीरिया भी मिला। रिपोर्ट में बीमारी के उपचार के लिए दवाओं व ग्रामीणों को बचाने के सुझाव भी दिए। प्रभावित गांव ढिकौली में पशुओं को गलघोंटू व आसपास के गांवों में भी टीकाकरण कराने का सुझाव दिया है। ये वायरस भैंस, गाय, बकरी, भेड़ यानी खुर वाले पशुओं को ही चपेट में लेता है।
अधिकांश यह जंगली जानवरों को प्रभावित करता है। फ्रांस से भारत आया था वायरस : खुरपका-मुंहपका बीमारी का सीरोटाइप ‘ओ’ वायरस 1920 में फ्रांस के ओइस शहर में पहली बार सामने आया। भारत में 1944 में आया। बागपत में कैसे पहुंचा, इसका पता पशुपालन विभाग लगाएगा।
जांच रिपोर्ट आ गई है
पशु विज्ञानियों की जांच रिपोर्ट आ गई है। विज्ञानियों ने बचाव और सुरक्षात्मक उपाय भी सुझाए हैं जिनके आधार पर कार्य शुरू करा दिया है।
डा. अरविंद कुमार, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी

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