बागपत में अब सांस लेना भी हुआ मुश्किल, वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 के पार पहुंचा
वर्ष 2025 में बागपत में विकास तो हुआ, पर पर्यावरण की स्थिति चिंताजनक रही। वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 के पार पहुंच गया, जिससे सांस लेना मुश्किल हो गया। ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, बागपत। जनपद में हुए विकास एवं अन्य क्षेत्रों में भले ही वर्ष 2025 याद रखने लायक हो, लेकिन दिल्ली की गोद में बैठा बागपत पर्यावरण के लिए जीरो ईयर साबित होकर रह गया। इस क्षेत्र में कोई ऐसी उपलब्धि हासिल नहीं हुई, जिसे इस साल के लिए याद रखा जाए।
पर्यावरण की रक्षा के लिए भले ही लाखों पौधे रोपने का दावा किया गया हो, लेकिन जल, ध्वनि और वायु प्रदूषण सब पर भारी पड़ा है। खास बात यह रही कि वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद खराब स्थिति में रहा है, जिसने लोगों को परेशान करके रख दिया। लब्बोलुआब यह रहा कि जनपद में इस साल मौसम और प्रदूषण की समस्या बहुत ज्यादा रही है।
बात चाहे ध्वनि प्रदूषण की रही हो या जल प्रदूषण की या फिर वायु प्रदूषण की, समय के साथ सभी बढ़ता ही रहा। शहर से लेकर गांव तक पर्यावरण को बचाने के बजाए बिगाड़ने का ही खेल चलता रहा। यह बात अलग है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए सरकारी नुमाइंदों की कलम फाइलों में चलती रही।
शिक्षण संस्थाओं में गोष्ठियां भी हुई, सड़कों पर रैलियां भी निकाली और अभियान भी चले, लेकिन साल के आखिरी में परिणाम सिफर ही रहा। दिसंबर महीने में वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 को पार कर गया। वाहनों की संख्या में लगातार इजाफा होता रहा तो शहरी क्षेत्र में जैनरेटर के कारण वायु व ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ता रहा।
न किसी ने ग्रैप-4 लागू होने की चिंता की और न ही प्रशासनिक आदेश की परवाह की। यही हाल ध्वनि विस्तारक यंत्र के उपयोग में रहा और इस कोई नियंत्रण नहीं रहा।
बे-रोकटोक न केवल निर्माण कार्य हुए बल्कि मिट्टी आदि के खनन से उड़ती धूल ने वायु प्रदूषण को बढ़ाया। कृष्णी, हिंडन व यमुना नदी, पानी के साथ ही गांव, शहर और कारखानों की गंदगी को भी ढोती रही, जिससे इनका पानी भी बेहद प्रदूषित होकर आगे को बढ़ता रहा।
हाल देखिए, जनपद में प्रदूषण नियंत्रण के लिए न तो काई कार्यालय है और न ही कोई प्रकोष्ठ, जो इस पर नजर रखे। कुल मिलाकर पर्यावरण की रक्षा भगवान भरोसे ही रही। उधर, पर्यावरण की रक्षा के लिए सबसे जरूरी पौधरोपण का सरकारी लक्ष्य तो आधे से ज्यादा फाइलों में हासिल कर लिया गया, लेकिन उसकी देखरेख के लिए कोई व्यवस्था नहीं हुई। पौधारोपण अभियान पर भी व्यवस्था का ग्रहण लगा रहा।
पौधे तालाब किनारे लगाए गए हो या सरकारी स्कूलों में या फिर ग्राम पंचायतों की खाली पडी भूमि पर, कहीं भी इनकी देखरेख के कारगार उपाए होते नहीं दिखाई दिए, परिणाम यह रहा कि जो पौधे हरियाली के लिए रौपे गए थे उनके से अधिकांश सूख गए और जमीन पर गिर गए। साल के आखिरी महीने दिसंबर में घने कोहरे के कारण मौसम गड़बड़ा गया, जिससे लोगों को घर से निकलना दूभर हो गया।
ईंट भट्ठों और कोल्हुओं ने हवा को बना दिया जहरीला
किरठल, टीकरी, बड़का, ट्योढ़ी, लूंब, तुगाना, अंगदपुर, जौहड़ी, वाजिदपुर, पलड़ा, पलड़ी, खेकड़ी, पुसार, ढिकौली आदि गांव-गांव में लगे कोल्हुओं में गन्ने की खोई के अभाव में जूते-चप्पल व प्लास्टिक से बने सामान आदि को कोल्हुओं में रस पकाने के काम में लाया गया, इनसे कोल्हुओं में लगी चिमनियाें से जो जहरीला धुआं निकला, उसने वायु को जहरीला बना दिया जिससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ा।
कोल्हुओं पर प्लास्टिक जलाने की जानकारी लेखपाल से लेकर प्रशासन तक पहुंची, लेकिन ठोस कार्रवाई हाेती नहीं दिखाई दी। इनके अलावा सरूरपुर, बिहारीपुर, बागपत, खेकड़ा, जौहड़ी, बागपत आदि स्थानों पर 450 से ज्यादा लगे ईंट भट्ठों के धुएं ने हवा में जहर घोलने का काम किया।
बेहद खराब रहा वायु गुणवत्ता सूचकांक
दिल्ली और हरियाणा से सटे बागपत में इस साल वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद ही खराब हालत में रहा। साल में कितने ही दिन ऐसे भी आए, जिनमें जिले की आबोहवा इतनी खराब हो गई कि लोगों की आंखों में जलन व सांस लेने में ही दिक्कत होने लगी। जनपद में ग्रैप-4 लागू करना पड़ा।
निर्माण कार्यों पर रोक लगा देनी पड़ी। न्यूनतम एक्यूआई 40, आदर्श एक्यूआई 50 और सामन्य 100 या इससे कम रहना चाहिए, लेकिन साल में लोगों ने वह दिन भी देखा जब जनपद का एक्यूआई 450 को पार कर गया।
रंगाई की फैक्ट्रियाें भी बढ़ा रही प्रदूषण
खेकड़ा और बागपत क्षेत्र में रंगाई की 100 से ज्यादा फैक्ट्रियां संचालित है, जिनसे निकलने वाला प्रदूषित पानी भूजल में जहर घोल रहा है। शिकायत के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की। उधर, जनपद में तार गलाने वाली 30 से ज्यादा फैक्ट्रियां हवा में जहर घोलने का काम कर रही है। तार गलाने वाली फैक्ट्रियाें के खिलाफ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई से बचता रहा है।
हिंडन और कृष्णी नदी में प्रदूषित पानी
हिंडन और कृष्णी नदी में लगभग 109 छोटे-बड़े कारखानों का प्रदूषित पानी गिरता है, जिससे दोनों नदियों का पानी जहरीला हो गया है। नदियों के किनारे बसे 55 गांवों के लोग दहशत में जी रहे हैं। इन गांवों में लोग कैंसर, पेट दर्द, चर्म रोग, दिव्यांगता समेत अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। रहतना, रंछाड, गांगनौली, मवीकलां, बूढपुर आदि गांव में आए दिन कैंसर आदि बीमारियों से मौत होती रहती है। इनके अलावा रमाला चीनी मिल का प्रदूषित पानी भी कृष्णी नदी में गिरता है।
एनजीटी ने 2018 को 124 फैक्ट्रियां बंद कर प्रभावित गांवों से 12 सौ हैंडपंप उखड़वाए थे और साफ पानी की सप्लाई करने का प्लान तैयार किया था, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। आज भी दोनों नदियों में चीनी मिल और पेपर फैक्ट्रियों का केमिकल युक्त पानी बह रहा है।
ध्वनि प्रदूषण भी नहीं है कम
वायु, जल के अलावा में ध्वनि प्रदूषण भी कम नहीं है। गांव-गांव धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर और शादी समारोह में बजते म्यूजिक सिस्टम मानकों का उल्लंघन करते हुए ध्वनि प्रदूषण फैलाने का काम कर रहे हैं। हालांकि इस साल के आखिरी में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर उतरवाने को लेकर तहसील बागपत में प्रदर्शन भी किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हाे सकी।
उम्मीदें...
- हरा भरा करने के लिए लगेंगे 14 लाख पौधे।
- प्रत्येक ब्लाक में लगेंगे वायु गुणवत्ता मापक यंत्र।
- हिंडन और कृष्णी नदी की सिल्ट साफ होगी।
- कोल्हुओं पर प्लास्टिक के जलाने पर रोक लगेगी।
- पर्यावरण सुधारने को लोगों को जागरुक किया जाएगा।
- नदियों में गिरने वाले कारखानों के प्रदूषित पानी पर लगेगी रोक।
- पर्यावरण को बचाने के लिए गांव-गांव होंगी गोष्ठियां।
- धार्मिक स्थलों से उतरवाए जाएंगे लाउडस्पीकर।
- बालू और मिट्टी के अवैध खनन को कराया जाएगा बंद।
- फसलों के अवशेष जलाने पर लगेगी रोक।
खास-म खास
- 450 ईंट भट्ठों की चिमनियां उगल रही हैं धुआं।
- धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकर फैला रहे ध्वनि प्रदूषण।
- कृष्णी और हिंडन नदी के किनारे बढ़ रही बीमारियां।
- जनपद में 450 पार कर गया वायु गुणवत्ता सूचकांक।
- रंगाई की फैक्ट्रियाें से भूजल हो रहा है प्रदूषित।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।