'आठ कर्मों की निर्जरा के बाद सिद्ध होती है आत्मा'
बड़ौत(बागपत) : राष्ट्र संत विद्या वाचस्पति आचार्य सुभद्र मुनि महाराज ने कहा कि अपने आठों कर्मों को का
बड़ौत(बागपत) : राष्ट्र संत विद्या वाचस्पति आचार्य सुभद्र मुनि महाराज ने कहा कि अपने आठों कर्मों को काटकर जीव की आत्मा सिद्ध हो जाती है। उस आत्मा को सिद्ध भगवान कहते हैं।
जैनाचार्य गुरुवार को नगर के जैन स्थानक में प्रवचन कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि जब जीव अपने चार कर्मों का अंत करके अरिहंत बन जाता है तो उसके बाद बाकी के अन्य चार कर्मों का अंत करके उसकी आत्मा सिद्ध बुद्ध होकर भगवान बन जाती है और मोक्ष को प्राप्त कर लेती है। कहा कि चार प्रकार के घाती तथा चार प्रकार अघाती कर्म होते हैं। घाती कर्मों का संबंध आत्मा से तथा अघाती कर्मों का संबंध शरीर से होता है। इन आठों प्रकार के कर्मों की निर्जरा करके आत्मा सिद्ध हो जाती है। ण्मोकर महामंत्र के दूसरे पद में उन्हीं सिद्ध भगवान को नमस्कार किया गया है। इससे पूर्व विकास मुनि ने भी प्रवचन किए। कहा कि मनुष्य का जीवन क्षण भंगुर है, जिस प्रकार ओस की बूंद घास की नोक पर कुछ ही देर ठहरती है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी है। जीव संसार में आता है और अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल भोगकर ओस की बूंद के समान समाप्त होता जाता है। धर्मसभा में भोपाल जैन, र¨वद्र जैन, कमल जैन, वीर सैन, हंस कुमार जैन, विनय कुमार, हेमचंद जैन, स्नेहलता, मंजू जैन, रीना जैन, शैल बाला, सुधा, सविता आदि मौजूद रहे।
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