लमही से लुहारी तक हांफ रहा 'होरी'
प्रदीप द्विवेदी : बागपत : महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद के गोदान नामक उपन्यास के नायक होरी की गर्दन सूद
प्रदीप द्विवेदी : बागपत : महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद के गोदान नामक उपन्यास के नायक होरी की गर्दन सूदखोरों के पांव तले दबी थी। धरम और मरजाद में फंसा होरी जीवन भर घिघियाता रहा। व्यवस्था उसका खून चूसती रही। मुफलिसी में पैदा होरी, मुफलिसी की अर्थी पर ही दुनिया को छोड़ जाता है। अंतिम सांस लेने से पहले होरी, पत्नी धनिया से सिर्फ इतना ही बोल सका था कि- मेरा कहा-सुना माफ करना धनिया, अब जाता हूं..गाय की लालसा मन में ही रह गई। धनिया पछाड़ खाकर गिर पड़ी थी। बेशक, वक्त का पहिया सरक गया हो, लेकिन बागपत की माटी में आज भी कितने होरी कराह रहे हैं। व्यवस्था ने उनको चकरघिन्नी बना रखा है। सूदखोरों के पैरों के नीचे उनकी गर्दन दबी हुई है। सच तो यह है कि बनारस के लमही से लेकर बागपत के लुहारी गांव तक न जाने कितने होरी हांफ-कांप रहे हैं।
'गोदान' की कहानी होरी, उसकी पत्नी धनिया और बेटे गोबर की दास्तां भर नहीं है। बागपत में तमाम किसान इन्हीं हालातों के मारे हैं। कभी खेती के भरोसे चौधरी और नंबरदार कहलाने वाले किसान पांच बीघे से कम खेत में सिमट गए हैं। 70 प्रतिशत किसानों के पास पांच बीघे से कम कृषि भूमि है। ज्यादातर किसान सिर्फ दो-तीन बीघा जमीन से गुजर करते हैं। ब्याज के कर्ज से दबे किसानों को बिजली, पानी के बिल का तकादा अपमानित करता है। ओलावृष्टि और अतिवृष्टि के बाद कर्ज से ¨चतित 17 किसान इसी साल दुनिया को अलविदा कह गये। फसल का मुआवजा तक नहीं मिला। पैसे का बड़ा आसरा गन्ना था। लेकिन खुद मिल मालिक महाजन बन गये तो गिला किससे करें? किसी के बच्चे की फीस जमा नहीं हुई तो किसी को दवा मयस्सर नहीं। बेटियों की बरात दरवाजे से लौट गई।
क्या है 'गोदान' की कहानी?
गोदान का मुख्य किरदार होरी तीन बीघे जमीन का किसान है। वह गरीब है। उसकी अपनी आकांक्षाएं हैं। वह जिस किसान समाज में रहता है वहां मर्यादा का भी खयाल रखना होता है। होरी गाय खरीदना चाहता है लेकिन उसकी यह लालसा मुफलिसी की अर्थी पर रखकर साथ चली जाती है। होरी का बेटा गोबर अपनी गर्भवती प्रेमिका झुनिया को घर पर छोड़कर भाग जाता है। जुर्माना भरने के बाद भी कर्तव्य की वजह से उसने घर से निकालने के बजाय घर में रखा। यह विपदा का कारण बना। गोबर ने कभी कहा था कि 'औरों की तरह तुमने भी किसी का गला दबाया होता, उनकी जमा मारी होती तो तुम भले आदमी होते। तुमने कभी नीति को नहीं छोड़ा यह उसी का दंड है।' होरी कर्ज का पैसा चुकाना चाहता था, यह ¨चता उसे मौत की ओर ले गई। होरी मददगार था तभी तो उसने 'हीरा' के भाग जाने पर उसकी बीवी की मदद की, उसकी बखार भरवाई। उसने 'भोला' पर अतिविश्वास किया तभी तो उसने बैल खोलकर ले जाने दिये। उसका सारा जीवन अपने और अपनों की गाड़ी खींचने में ही चुक गया। वह नसीहत दे गया कि ऐसे किसानों का जीना मुश्किल है।
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कर्ज के बोझ तले अन्नदाता सरकारी आंकड़ों की बात करें तो बागपत जिले के किसानों पर करीब 1200 करोड़ रुपये का बैंक कर्ज है। इसी तरह सूदखोरों से भी 1500 करोड़ के आसपास कर्ज उठाया गया है। चौतरफा दबाव में किसान आखिर करे भी तो क्या। इसी का नतीजा है कि यहां एक नहीं बल्कि हर चौथे घर में होरी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।
-समाजशास्त्र का नजरिया
बागपत ही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान संघर्ष कर रहा है। किसी को बेटी का ब्याह करना है, किसी को अपनी जीविका चलानी है। घर के अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए किसान सूदखोर महाजनों की दहलीज पर ठोकर रख रहा है। चक्रवृद्धि ब्याज लगाकर किसानों को कर्ज दिया जा रहा है। जोनमाना, टीकरी, दोघट आदि गांवों में पिछले दिनों कुछ किसानों ने आत्महत्या कर ली और इसकी वजह थे सूदखोर महाजन। मुंशी प्रेमचंद जी जैसी महान आत्मा को शायद पहले ही आभास हो चुका था कि एक दिन उनके 'गोदान' के तमाम किरदार समाज में जिंदा रहकर उदाहरण बनते रहेंगे।
डा. रामगोपाल वाष्र्णेय, अर्थशास्त्री व समाजशास्त्री।

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