जैनसंत रत्नकीर्ति महाराज का समाधि मरण
जागरण संवाददाता, खेकड़ा : जनपद की सीमा से सटे जयशांतिसागर निकेतन जैन आश्रम, मंडोला में विराजमान जैनमु
जागरण संवाददाता, खेकड़ा : जनपद की सीमा से सटे जयशांतिसागर निकेतन जैन आश्रम, मंडोला में विराजमान जैनमुनि क्षुल्लक रत्नकीर्ति महाराज का बुधवार की सुबह समाधि मरण हो गया। सैकड़ों जैन श्रद्धालुओं ने मुनि के अंतिम दर्शन किए और उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए।
35 साल पहले ली थी क्षुल्लक दीक्षा
मूलरूप से मेरठ जनपद के सरधना निवासी जैनमुनि क्षुल्लक रत्नकीर्ति महाराज ने युवा अवस्था में ही गृहत्याग दिया था। 35 साल पहले मध्य प्रदेश के मुरैना में जैन संत आचार्य श्रुत सागर महाराज से उन्होंने क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी। इस दौरान उनका अधिकतर कार्य क्षेत्र मध्य प्रदेश, राजस्थान, आगरा और दिल्ली रहा। उन्होंने अपने जीवन में 250 से अधिक श्रावक संस्कार शिविरों का आयोजन किया।
महेश से बने रत्नकीर्ति
जैन संत रत्नकीर्ति के परिजनों में नीरज जैन, सरला जैन, जयमाला जैन आदि ने बताया, जैन मुनि का गृहस्थ आश्रम के समय नाम महेशचंद जैन था। इनके पिता स्व. महावीर प्रसाद व माता का नाम स्व. अशर्फी देवी जैन था। जैन मुनि 11 भाई बहन थे। बचपन से ही इनके मन में अध्यात्म के प्रति लगाव था और ये संतों के पास आते-जाते रहते थे। वहीं से प्रेरणा लेकर इन्होंने युवावस्था में ही घर छोड़ कर जैन क्षुल्लक बनना स्वीकार किया था।
16 माह से जैन आश्रम में थे विराजमान
देवलोक गमन को प्राप्त हुए जैन मुनि करीब सोलह माह से जय शांति सागर जैन आश्रम में विराजमान थे। इन्होंने आजीवन मीठे व घी का त्याग कर रखा था। करीब 75 वर्ष की आयु को प्राप्त जैन मुनि कई दिनों से बीमार चल रहे थे और उन्होंने अन्न जल का त्याग किया हुआ था। बुधवार को अचानक उनकी तबियत काफी खराब हुई तो आश्रम में विराजमान जैन संतों ने उन्हें मुनि दीक्षा प्रदान की। जिसके बाद जैन मुनि इस नश्वर शरीर को छोड़ ब्रह्मालीन हो गए।
अंतिम यात्रा में शामिल हुए सैकड़ों श्रद्धालु
जैन मुनि की अंतिम यात्रा में दूर दराज से सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। जैन संत के अंतिम दर्शन कर उनको अपनी विनयांजलि दी। आश्रम के चारों ओर उनकी अंतिम यात्रा की परिक्रमा कराई गई, जिसके बाद उनके पार्थिव शरीर को अग्नि के समर्पित कर दिया गया। इस अवसर पर उनके परिजनों के साथ अनेक श्रद्धालु मौजूद रहे।
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