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    Sanskaarshala 2022: विनम्रता से प्रशस्त होता सफलता का मार्ग- डा. रोहिताश कुमार

    By Jagranv NewsEdited By: Ravi Mishra
    Updated: Fri, 30 Sep 2022 01:05 PM (IST)

    Badaun Sanskaarshala 2022 जीवन में विनम्रता का महत्व सबसे अधिक है विनम्र होकर सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं वृक्ष भी फल आने पर झुक जाते हैं। मौजूदा परिवेश में दुनिया डिजिटल हो चुकी है। छोटे-बड़े काम से लेकर पढ़ाई तक इंटरनेट के माध्यम से होने लगी है।

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    Sanskaarshala 2022: विनम्रता से प्रशस्त होता सफलता का मार्ग- डा. रोहिताश कुमार

     बदायूं, जागरण संवाददाता। Badaun Sanskaarshala 2022 : जीवन में विनम्रता का महत्व सबसे अधिक है विनम्र होकर सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, वृक्ष भी फल आने पर झुक जाते हैं। मौजूदा परिवेश में दुनिया डिजिटल हो चुकी है। छोटे-बड़े काम से लेकर पढ़ाई तक इंटरनेट के माध्यम से होने लगी है।

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    डिजिटल दुनिया में भी संस्कार बहुत जरूरी है। इंटरनेट मीडिया पर शब्दों का चयन होने मात्र से विवाद खड़ा हो जाता है। इसलिए अपनी बात कहने के लिए डिजिटल संस्कार का ज्ञान होना बहुत जरूरी है।

    विनम्रता, सहनशीलता एवं छोटा बनकर सफल होने के बारे में हिंदू ग्रंथ रामायण में होने वाली एक छोटी सी घटना से सीख ले सकते हैं। जब हनुमान जी माता सीता को खोजते हुए जा रहे थे तो रास्ते में लंकिनी ने हनुमान जी से कहा तुम आगे नहीं जा सकते हो और मैं आपको खाकर भूख मिटाना चाहती हूं।

    हनुमान के काफी अनुरोध करने पर लंकिनी ने शर्त रखी कि तुमको मेरे मुख के अंदर आना होगा यदि जीवित बचते हो तब ही आप लंका जा सकते हो लंकिनी ने अपना मुख एक योजना का खोला तब हनुमान ने अपना मुख दो योजन का खोला लंकिनी ने अपनी लंबाई 4 योजन की और बदले में हनुमान जी ने अपनी लंबाई 8 योजन की हनुमान जी समझ गए कि ऐसे काम नहीं बनेगा।

    वह तुरंत बहुत छोटे हो गए और लंकिनी के मुख में प्रवेश किया और बाहर निकल आए और लंकिनी को कहा माता मैंने आपकी शर्त पूरी कर दी है।लंकिनी ने भी कहा पुत्र मैं आपको आशीर्वाद देती हूं तुम अपने कार्य में निश्चित सफल होंगे।इससे हमको शिक्षा प्राप्त होती है यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है तो हमको छोटा बनना होगा अपने माता-पिता गुरुजनों का सम्मान करना व दिशा निर्देशों का सदैव पालन करना होगा।

    जीवन में भी संस्कार और विनम्रता का बहुत महत्व रहता है। घर से लेकर विद्यालय, बाजार, सरकारी कार्यालय कहीं भी चले जाएं डिजिटल संस्कार की जरूरत पड़ती है। इसके लिए जरूरी है कि इंटरनेट के उपयोग की जानकारी रहे। अधिकांश विभागों में इंटरनेट के माध्यम से कामकाज होने लगे हैं।

    संबंधित अधिकारी और कर्मचारी से अपनी बात कहने के लिए शालीनता का परिचय देना चाहिए। सवाल उठता है कि बच्चों को डिजिटल संस्कार कौन सिखाएगा। इसके लिए कहीं अलग से शिक्षक की जरूरत नहीं होती है। अभिभावक सबसे बड़े शिक्षक होते हैं, बच्चों को यह व्यवहारिक ज्ञान उनके स्तर पर भी सिखाया जाना चाहिए।

    विद्यालय में भी गुरुजनों को पाठ्यक्रम की शिक्षा के साथ कुछ समय बच्चों को डिजिटल संस्कार देने पर भी खर्च करना चाहिए। सीखने की प्रक्रिया जीवनभर चलती रहती है। अच्छी आदतों को हमेशा जीवन में आत्मसात करना चाहिए और बुरी आदतों का त्याग करके ही डिजिटल संस्कार में पारंगत हुआ जा सकता है।- डा. रोहिताश कुमार, प्रधानाचार्य, महेश बाल विद्या मंदिर इंटर कालेज बिल्सी, बदायूं

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