जैविक की वंदगी, फूलों से महकी जिंदगी
बदायूं: निहाल सिंह ने एग्रीकल्चर से बीएससी की डिग्री हासिल की और नौकरी भी ज्वाइन कर ली, लेकिन खेती में कुछ अलग कर गुजरने की चाहत में किसानी की राह पकड़ ली। रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव को देखते हुए उन्होंने जैविक खेती शुरू की। अब वह जैविक गुलाब, सबदरीफा, कैमोमाइल जैसे फूलों के अलावा कष्णा व लेमन तुलसी और मैंथा की खेती कर अपनी जिंदगी संवार रहे हैं। जैविक खेती करवाने वाली बंगलोर की प्लादा कंपनी से जुड़े तो 99 किसानों का समूह बना डाला। अब कैलीफोर्निया की सरेंडी मैंथे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने निहाल सिंह को अपना सलाहकार भी नियुक्त कर लिया है।
बदायूं से करीब 50 किमी दूर बिसौली के निकट एक गांव है मुसिया नगला। यहां के निहाल सिंह ने वर्ष 2004 में मेरठ विश्वविद्यालय से बीएससी एजी की डिग्री हासिल की तो आर्थिक तंगी के कारण तुरंत एक कीटनाशक कंपनी में नौकरी ज्वाइन कर ली। घर की माली हालत ऐसी थी कि पढ़ाई पूरी करने में ही कुछ खेत बेंचना पड़ा। मात्र कुछ माह ही नौकरी करने के बाद सोचा कि मेरी जीविका एक ऐसे जहर पर निर्भर है, जो कीटों की नहीं मारता बल्कि मानव जीवन को भी नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद उन्होंने पांच लाख रुपए बैंक ऋण लेकर एग्रो क्लीनिक शुरू की, लेकिन इसमें मिलने वाली 25 फीसद सब्सिडी नहीं मिल सकी। इस आर्थिक झटके बाद निहाल सिंह ने 2007 में जैविक खेती की अपनी पसंदीदा राह पकड़ी तो बंगलोर की प्लादा कंपनी से जुड़ गए। तीन साल तक अपनी चार एकड़ भूमि पर जैविक खेती कराने के बाद कंपनी ने प्रमाण पत्र दे दिया और इनके सभी उत्पाद दस फीसदी अतिरिक्त रेट में सीधे खरीदने लगी। धीरे-धीरे निहाल सिंह ने जैविक खेती करने वाले किसानों का समूह बनाकर आसपास के गांव के 99 किसानों का समूह बना लिया, जो सभी जैविक खेती करते हैं। इनमें से 23 किसानों ने जैविक खेती की तीन वर्ष अवधि पूरी करके प्रमाण पत्र हासिल कर लिया, बाकी 76 किसान अभी किसान अभी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। निहाल सिंह के पास अपनी तो मात्र चार एकड़ खेती है, लेकिन लीज आदि पर भूमि लेकर अब वे करीब 25 एकड़ भूमि पर जैविक खेती कराते हैं।
प्लादा कंपनी भी करती है सहयोग
जैविक खेती कराने वाली बंगलोर की प्लादा कंपनी से जुड़े निहाल सिंह बताते हैं कि पहले तो तीन वर्ष तक कंपनी खेती करवाकर उत्पादों का परीक्षण कराती है कि कहीं रासायनिक का प्रयोग तो नहीं हो रहा है। तीन वर्ष तक पाजिटिव रिपोर्ट आने के बाद कंपनी की ओर से किसान को प्रमाण पत्र मिल जाता है और हर उत्पाद दस फीसदी अधिक मूल्य पर कंपनी खुद खरीद लेती है। मैंथा जैसी कई फसलें तो कंपनी खेत से खड़ी फसल खरीद लेती है, जिससे उसकी कटाई व प्रोसेसिंग आदि का झंझट खत्म हो जाता है और खर्च भी बच जाता है।
खुद बनाते हैं जैविक खाद
निहाल सिंह गांव में ही वर्मी कम्पोस्ट, कम्पोस्ट, हरी खाद, सींग की खाद आदि भी बनाते हैं। वे बताते हैं कि कीटनाशक की जगह गौमूत्र व गोबर के छिड़काव से भी फसल सुरक्षा की जाती है। धीरे-धीरे यह गुण उन्होंने समूह से जुड़े दूसरे किसानों को भी सिखा दिया। अब तो निहाल सिंह ने बरेली में भी जैविक खाद बनाने का काम शुरू कर दिया है।
बदल डाली माली हालत
छोटी जोत की पारंपरिक किसानी में जिस निहाल सिंह पढ़ाने में घर वालों को खेत तक बेंचना पड़ गया, वही अब जैविक खेती के जरिए परिवार की माली हालत बदल डाली। अब वे बरेली में रहकर छोटे भाई-बहनों को अच्छी शिक्षा दिलवा रहे हैं। घर में ट्रैक्टर से लेकर अपने चलने के लिए चार पहिया वाहन व अन्य अत्याधुनिक संसाधन हैं। वे खुद लैपटाप का उपयोग करते हैं। देश-दुनिया में जैविक खेती पर होने वाले ताजातरीन शोधों से अपडेट रहते हैं।
कैलीफोर्निया की कंपनी ने बनाया सलाहकार
बदायूं के एक छोटे से गांव में खेती करने वाले किसान को कैलीफोर्निया की कोई कंपनी सलाहकार नियुक्त करेगी, यह बात सुनने भले अटपटी लगती हो, लेकिन है सौ फीसदी सही। निहाल सिंह की जैविक खेती के प्रदर्शन से प्रभावित होकर जैविक खेती कराने वाली कैलीफोर्निया की कंपनी सरेंडी मैंथे प्रा. लिमिटेड ने उन्हें बतौर सलाहकार नियुक्त कर लिया। अब कंपनी की ओर से आयोजित कृषक गोष्ठियों में जैविक खेती के गुर व फायदे बताने वे दूसरे प्रदेशों तक जाते हैं।
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