ककराला के रण में अंग्रेजों के छूटे थे छक्के
200 सालों तक राज करने वाले अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में क्रांति की मशाल जली तो बदायूं भी उसका असर हुआ।
बदायूं : 200 सालों तक राज करने वाले अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में क्रांति की मशाल जली तो उसकी लौ ने बदायूं के देशभक्तों में भी ऊर्जा भरी थी। फिरंगियों को देश से खदेड़ने के लिए गोला, बारूद और तोपों की गरज से भी नहीं डिगे। ककराला के रण में जांबाज क्रांतिकारियों ने तोपखाना लेकर पहुंची अंग्रेजी फौज के छक्के छुड़ा दिए। जनरल पैनी को मौत के घाट उतारा तो कदम पीछे खींचने पड़े थे।
मुठ्ठी भर क्रांतिकारियों ने लिया था लोहा
साहस और वीरता की घटना है 27 अप्रैल 1857 की। जिले में इतिहास के जानकारों अनुसार 27 अप्रैल की रात में अंग्रेजी फौज उसहैत से ककराला की तरफ कूच किया था। मकसद बदायूं पर कब्जा करने का था। नेतृत्व जनरल पैनी कर रहा था, साथ में बंदूक और बारूद से लैस सैकड़ों सैनिकों की फौज। क्रांतिकारी डॉ. वजीर अहमद, फैज अहमद आदि को इसकी भनक लग गई। जब अंग्रेज एक मील ही दूर थे, उजाला होने लगा। तभी मुट्ठी भर क्रांतिकारियों अंग्रेज सैनिकों पर हमला बोल दिया।
जनरल की मौत पर पीछे हटी थी फौज
ककराला में आमने-सामने की लड़ाई हुई। अंग्रेजों ने पेड़ों की आड़ लेकर तोप से गोले दागे। बहुत से लोगों की जान गई। अंग्रेज सैनिक भी मारे गए। वीर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी फौज का नेतृत्व कर रहे जनरल पैनी को मौत के घाट उतार दिया, तब सैनिक पीछे हटे। लड़ाई में पहलवान मंगल खा, मुहम्मद खा, बान खा, चाहरम खा, दिलवार खा, बासल खा, फौजदार खा व महराव खा आदि महान क्रांतिकारी शामिल थे।
अंग्रेजों ने ढहाया जुल्म
हालांकि, अंग्रेजों ने बाद में फौज और तोपों के बल पर जिले पर अधिकार कर लिया था। ब्रिगेडियर कुक ने ककराला में 500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया। उनकी पीठ पर चूने से निशान लगवाकर धूप में खड़ा कर दिया जाता है। विरोध करने पर लोगों को गोली का निशाना बनाया। ऐसे जुल्म सहकर वीरों ने इस धरती को आजाद कराया।
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