आपसी सौहार्द के मिलन का मेला ककोड़ा
मेले का अर्थ मिलन होता है। यानि आपसी सौहार्द का बढ़ावा। ऐसा ही नजारा हर बार मेला ककोड़ा में देखने को मिलता है। जहां पर विभिन्न समुदाय के लोग बड़ी संख्या ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, बदायूं : मेले का अर्थ मिलन होता है। यानि आपसी सौहार्द का बढ़ावा। ऐसा ही नजारा हर बार मेला ककोड़ा में देखने को मिलता है। जहां पर विभिन्न समुदाय के लोग बड़ी संख्या में इकट्ठे होते हैं। पारंपरिक सद्भाव की भावना से एक दूसरे के सुख-दुख के बारे में जानकारी लेते हुए उनकी परंपरा और सभ्यता को भी जानते हैं। भारतीय विशेषता अनेकता में एकता को चरितार्थ करते हैं। मेले में सांस्कृतिक आदान प्रदान भी होता है। इससे यह मेला एकता और आपसी सौहार्द की मिसाल भी माना जाता है। सदियों से एकता की मिसाल कायम करने वाले मेला ककोड़ा का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। मेले की परंपरा ही रुहेले नवाब अब्दुल्ला ने डाली थी। उस वक्त में ही उन्होंने आपसी भाईचारे का संदेश देते हुए ककोड़ देवी की आस्था, यहां की मान्यता और सभ्यता से देश भर को रूबरू कराया था। इसके बाद दूर दराज से लोग ककोड़ देवी मैया के दर्शन करने आते तो वह जो भी मन्नत मांगते वह पूरी होती। उसी वक्त से हवन-पूजन के साथ मेले के शुभारंभ की परंपरा चली आ रही है। झंडी पूजन से लेकर मुख्य गंगा स्नान तक के लिए विशेष आयोजन मेले में किए जाते हैं। उसी वक्त से चली आ रही परंपरा के चलते मेला ककोड़ा में हर साल विभिन्न समुदाय के लोग आते हैं। एक दूसरे से उनका परिचय होता है तो सभी अपनी-अपनी सभ्यता और परंपरा के बारे में बताते हैं। यहां के भक्तिमय माहौल में सभी रमते हैं तो वह नजारा ही देखने लायक होता है। आस्था के इस मेले में देवी मां की कृपा ही है कि यहां लाखों लोग इकट्ठा होते हैं और कभी आपसी बैर वाला विवाद नहीं होता। मेले में जो भी आता है वह यहां से आपसी सौहार्द का संदेश लेकर जाता है।

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