नबी की पैदाइश दुनिया के लिए अल्लाह का तोहफा
बदायूं : मजहब-ए-इस्लाम में माहे रवीउल अव्वल खुशियों भरा एक यादगार मुबारक महीना है। खुशियो
बदायूं : मजहब-ए-इस्लाम में माहे रवीउल अव्वल खुशियों भरा एक यादगार मुबारक महीना है। खुशियों के इस मुबारक महीने में दोनों जहां के मालिक पाक परवर दिगार अल्लाह तआला ने अपने महबूब प्यारे नवी हुजूर-ए-अकरम मोहम्मद सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम को दुनिया में अपना आखिरी मालिको मुख्तार बनाकर भेजा। साथ ही मजहब-ए-इस्लाम की पाक व सबसे अफजल किताब कुरआन-ए-मजीद कुरआन-ए-पाक उन्हीं पर नाजिल फरमाया और उसी से दुनिया भर के लोगों को अच्छाई और बुराई के साथ इंसानियत व भाईचारे की पहचान हुई।
माहे रवीउल अब्वल बारावफात की बारह तारीख प्यारे नवी हुजूर-ए-अकरम मुहम्मद सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की यौमे पैदाइश और वफात की वह यादगार तारीख है जिसको भुलाना नामुमकिन है। इस मुबारक माह को बाराह वफात के नाम से भी जानते हैं। मौलाना मजहरूल हक ने बताया कि इस मुबारक माह की आमद पर दुनियाभर में खुशियां मनाई जाती हैं। प्यारे नवी को याद कर उनके नाम की महफिले भी सजाई जाती हैं। अल्लाह के सारे नवियों में पैगंबर-ए-इस्लाम प्यारे नवी हुजूर-ए-अकरम मुहम्मद साहब की शान भी सबसे आला व निराली है। उन्हीं की बताई हुई सुन्नतों पर चलकर लोग फैज भी हासिल करते हैं। उन्होंने बताया कि प्यारे नवी की आमद से पहले दुनिया भर में जहालियत का बोल बाला था और अच्छाई व बुराई की भी लोगों को कोई पहचान नही थी। अल्लाह का लाख लाख शुक्र और अहसान है कि प्यारे नवी को पैगंबर-ए-इस्लाम व पूरी दुनिया का मालिकों मुख्तार और आखिरी नवी बना कर दुनिया में भेजा और पाक व सबसे अफजल किताब कुरआन-ए-मजीद भी उन्हीं पर नाजिल फरमाया जिससे दुनियां वालों को अच्छाई बुराई के साथ इंसानियत व भाईचारे की पहचान मिली। प्यारे नवी हुजूर-ए-अकरम मुहम्मद सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की अरब देश के मक्का शरीफ में रहने वाले इज्जत आव एक कुरैश खानदान में रवीउल अब्वल की बाराह तारीख को पीर के दिन सुबह सादिक के वक्त पैदाइश हुई। वालिदा मां का नाम बीवी आमिना और वालिद हजरत अब्दुल्लाह साहब प्यारे नवी की पैदाइश से पहले ही अल्लाह को प्यारे हो चुके थे। प्यारे नवी के दादा जान का नाम हजरत अब्दुल मुत्तालिब था और वह पूरे कवीले के इज्जतदार लोगों में माने जाते थे। प्यारे नवी की पैदाइश उनके धर में ही नही बल्की पूरी दुनिया भर के लिए अल्लाह की तरफ से नायाब तोहफा था प्यारे नवी की पैदाइश से पहले ही चारों तरफ खुशियों का मौसम छाया हुआ दिखाई दे रहा था और दरखतों व दरों दीवारों तक से सलातो सलाम की सदाएं गूंज रही थी। इनका निकाह बेवा हजरत-ए-खदी•ा से हो गया और उसके बाद लोगो की खिदमते करने में मशगूल रहने लगे। पैंतीस साल की उम्र में प्यारे नवी तन्हाई पसंद करने लगे और मक्का से लगभग तीन मील दूर जाकर एक पहाड़ी पर तन्हा जाकर बैठने लगे उस पहाड़ी को लोग गारे हिरा के नाम से जानते हैं। हुजूर की तन्हाई में वहां अल्लाह के फरिशते जिब्रील अलैहस्सलाम ने आकर हुजूर-ए-कायनात प्यारे नवी को अल्लाह का फरमान सुनाया। सुबहान अल्लाह फिर कया था प्यारे नवी के पास अल्लाह के फरमान आते रहे और प्यारे नवी ने लोगों को अल्लाह की तरफ से भेजा गया हिदायत-ए-इस्लाम का हुकम सुनाया प्यारे नवी की इन बातों से जानकार लोग तो समझ गए कि यही अल्लाह के आखिरी नवी हैं। जिनका जिक्र किताबों मे पहले ही आ चुका है। प्यारे नबी हुजूर-ए-अकरम मुहम्मद सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम का काम ही अल्लाह के हुकम को लोगों तक पहुंचाना था। लोग प्यारे नवी से मिले अल्लाह के हुकम सुनकर सोच समझ कर उस पर अमल करना शुरू कर दिया और अल्लाह के हुक्म को मानने लगे मगर कुछ लोगों ने प्यारे नवी की बात को सुन्ना व समझना पसंद नहीं किया, लेकिन अल्लाह का हुक्म सर आंखों पर प्यारे नवी लोगों का हुक्म सुनाते रहे और हल्के-हल्के अल्लाह के करमों फजल से सब ठीक होता गया और लोग प्यारे नवी की दी हुई हिदायतों को सुनकर मजहब-ए-इस्लाम के परचम के साथ हो गए। आखिर में रवीउल अब्वल की बाराह तारीख को पीर ही के दिन जुहर के वक्त वजाहिर दुनिया से रुखसत हो गए। मगर आज भी पूरे जहां लोग प्यारे नबी का जिक्र करते हैं और अपने मकानों को सजाकर झंडे लगाते हैं और उनके नाम की महफिलें भी सजाते हैं। इस माह की बाराह तारीख में पूरी दुनियां भर में जुलूस-ए-मुहम्मदी निकाला जाता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।