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कटरी किंग के गुर्गो से थर्राता था इलाका

By Edited By: Published: Wed, 07 Nov 2012 11:28 PM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2012 11:29 PM (IST)

बदायूं: कटरी किंग के नाम से मशहूर दुर्दात अपराधी कल्लू यादव के साथ ही उसके गुर्गो का खौफ भी कम नहीं था। पुलिस इनके नाम से कांपती थी तो इलाके के सेठ-साहूकार इनके फरमान पर सबकुछ न्यौछावर करने को मजबूर थे। बुधवार को जब कल्लू डकैत के गुर्गो को अदालत से उम्रकैद की सजा हुई तो लोगों के जेहन में उसके आतंक की यादें फिर ताजा हो उठीं।

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बदायूं शहर की श्मशान भूमि में भस्म होने वाला कल्लू अपने दौर का मशहूर डकैत था। जिले से सटे शाहजहांपुर के परौर थाने के गांव पूरननगला के निवासी कल्लू यादव की सक्रियता आसपास के तीन-चार जिलों तक सीमित थी। वह बदायूं , शाहजहांपुर के साथ ही फर्रुखाबाद जिले में कायमगंज की कटरी के किन्नरनगला क्षेत्र में भी बराबर सक्रिय था। हालांकि यह बात भी काफी हद तक सही है कि दस्यु सरगना कल्लू पैदायशी या आदतन शातिर नहीं था। उसहैत क्षेत्र के कमलैय्यापुर गांव के प्रधान श्यामसिंह के परिवार से झगड़े के बाद उसने बागी बनने का इरादा किया। बताते हैं कि किसी जमीनी विवाद के बाद श्याम सिंह के भाई ने कल्लू को बुरी तरह पीटकर अधमरा कर दिया। बाद में बागी बने कल्लू ने 1997 में होली के दिन अपने दुश्मन की हत्या कर लाश गंगा किनारे डाल दी। इसके बाद वह रुका नहीं।

जरायम की दुनिया में कल्लू उतरा तो उसे लगातार नए साथी मिलते चले गए। बाद में इस गैंग की सक्रियता देखकर पुलिस को इसे रजिस्टर्ड करना पड़ा। मांझा गांव का राजेंद्र उर्फ नज्जू गूजर भी नौटंकी की एक वारदात के बाद कल्लू का साथी बना। दरअसल नौटंकी में नृतकी के गाने नथुनिया पे गोली मारे. सुनने के बाद नज्जू ने नृतकी के मुंह पर ही फायर कर दिया। इससे उसकी मौत हो गई और फिर दबंग छवि के किसान नज्जू को कटरी की राह पकड़नी पड़ी।

नज्जू का सगा भांजा देवेंद्र गूर्जर भी अपने मामा के साथ कल्लू गैंग में शामिल हो गया। दातागंज क्षेत्र का नरेश गूजर भी गिरोह में शामिल हुआ पर वह कभी भी बेहद सक्रिय सदस्य के तौर पर यहां नहीं जम सका। हां, नज्जू की ससुराल के पास का नरेश धीमर जरूर कल्लू का दायां हाथ बन गया। कल्लू के मरने के बाद उसने कुछ समय गैंग के बिखरे सदस्यों का नेतृत्व भी किया पर कुछ ही समय बाद उसहैत क्षेत्र में हुई पुलिस मुठभेड़ में मारा गया।

कल्लू के गुर्गो का खौफ भी कल्लू से कम नहीं था। लोग उनके नाम से कांपते थे। पुलिस की रात्रि कालीन गश्त या तो कस्बों तक सीमित रहती थी या फिर देहात की काली सड़क (डामर रोड) तक। इससे अलग हटकर देहात के गांवों या कटरी में पुलिस रात के वक्त नहीं जाती थी। कटरी में दस्यु गतिविधियां कल्लू की मौत के साथ ही दम तोड़ गईं। बाद में नरेशा धीमर के एनकाउंटर ने कटरी को डकैतों की दहशत से आजाद करा दिया। हालांकि, नज्जू ने कल्लू की मौजूदगी में ही गैंग छोड़कर सरेंडर कर दिया था। वह और देवेंद्र फिलहाल बरेली जेल में बंद हैं। नरेश गूर्जर शाहजहांपुर जेल में निरुद्ध बताया जाता है।

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पुलिस का काल थी कल्लू टीम

कल्लू गिरोह के अधिकांश सदस्य कहीं न कहीं दबंगों या फिर पुलिस के सताए हुए थे। यही वजह रही कि कल्लू गिरोह का निशाना कई मौके पर पुलिस ही रहती थी। कभी कलान के एसओ रहे राजेश पाठक ने शुरुआती दौर में कल्लू को पकड़ लिया था। उन्होंने उसकी बेतहाशा पिटाई की थी। इसके बाद कल्लू उन्हें दुश्मन नंबर एक मानने लगा। जलालाबाद के एसएसआइ रहते समय जब राजेश पाठक की कल्लू से मुठभेड़ हुई तो कल्लू ने उन्हें मार डाला।

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