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    जिंदगी जंग है, इस जंग को जारी रखिए

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    Updated: Tue, 15 May 2012 07:54 PM (IST)

    बदायूं : सूफी-संतों की सरजमीं बदायूं के सितारों में प्रख्यात गीतकार उर्मिलेश शंखधार का नाम ध्रुव तारे की मानिंद अलग ही दमकता है। उनके गीत और गजल आज भी लोगों की जुबां पर हैं और सदियों तक रहेंगे। सोलह मई को पुण्यतिथि पर डा. शंखधार के व्यक्तित्व व कृतित्व की झलक पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

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    ननिहाल इस्लामनगर में जन्मे डा. उर्मिलेश का बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता। पिता प्राइमरी शिक्षक एवं जनकवि पंडित भूपराम शर्मा भूप के कड़े अनुशासन में शिक्षा ग्रहण की। अपने पिता से उन्हें कविता के संस्कार मिले। पिता का सपना था कि पुत्र स्वावलंबी बने। छठी क्लास सतेती गांव के जूनियर हाईस्कूल से लेकर मुन्नालाल इण्टर कालेज, वजीरगंज तक अपने गांव भतरी गोवर्धनपुर से पैदल जाकर पूरी की। इंटर के बाद बीए तक की शिक्षा चंदौसी के एसएम कालेज से पूर्ण की। यहीं उनके काव्य संस्कार परवान चढ़े। विभिन्न गोष्ठियों में रचनाएं सुनाकर वाहवाही लूटी। वर्ष 1972 में आगरा विश्वविद्यालय से एमए हिन्दी में प्रथम श्रेणी प्राप्त कर स्वर्ण पदक भी लिया। एक अगस्त, 1972 को वह नगर के एनएमएसएन दास कालेज के हिंदी विभाग में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। बाद में रीडर तथा हिंदी विभाग के अध्यक्ष हुए। उनके शोध निर्देशन में लगभग दो दर्जन परीक्षार्थियों ने शोध किया। स्वभाव से मृदुभाषी डा. उर्मिलेश पेशे से प्राध्यापक, कर्म से पारिवारिक पुरुष, धर्म से सच्चे कवि थे। कुशल व्यवहार, अतिथियों का सत्कार सबके प्रति समान दृष्टि व नवीन प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना उनकी प्रकृति थीं।

    बदायूं में साहित्य, संस्कृति और कला की मशाल को लेकर चलने वाले डा. उर्मिलेश ही थे। बदायूं महोत्सव, कविता चली गांव की ओर जैसे वृहद सोच के कार्यक्रम हों या बदायूं क्लब को क्लब कल्चर से सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित करना. यह उनकी ही सोच के उदाहरण है। जहां तक डा. उर्मिलेश की साहित्यिक यात्रा का सवाल है तो उन्होंने अपनी कविताओं से आज के सांस्कृतिक, सामाजिक, पारिवारिक और राजनीतिक प्रदूषण पर बड़ी बेबाकी से आक्रोश व्यक्त किया। गीत, दोहा, नवगीत, मुक्तक, छंद या गजल सभी में उन्होंने अपना पूर्ण प्रभाव रखा। वे कवि सम्मेलनों में सुने भी खूब गये और पत्र पत्रिकाओं में छपे भी खूब। डा. उर्मिलेश के काव्य में उनका जीवन संघर्ष भी झलकता है। उनका यह शेर आज भी जीवन के प्रति संघर्ष में प्रोत्साहन देता है।

    बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिए। जिंदगी जंग है, इस जंग को जारी रखिए।

    डा. उर्मिलेश के पांच गजल संग्रह धुंआ चीरते हुए, डा. उर्मिलेश की गजलें, फैसला वो भी गलत था, धूप निकलेगी व आइने आह भरते हैं प्रकाशित हुए। छह नवगीत संग्रह बाढ़ में डूबी नदी, सोत नदी बहती है, चिरंजीव है हम, जागरण की देहरी पर, बिम्ब कुछ उभरते हैं और अक्षत युगमान के आज भी प्रासंगिक हैं। दो दोहा संग्रह गंधों की जागीर, वरदानों की पाण्डुलिपि और एक मुक्तक संग्रह घर बुनते अक्षर प्रकाशित हुए।

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