गौ माता के लिए घर-घर से जुटाई जाती है रोटी
बदायूं : भारतीय संस्कृति की परंपरा है घर में बनने वाली पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुत्ते के
बदायूं : भारतीय संस्कृति की परंपरा है घर में बनने वाली पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए दी जाती है। शहर ही क्या गांवों में भी अब कम ही घरों में गौ पालन हो रहा है, लेकिन परंपरा का निर्वहन अब हो रहा है। शहर के करीब गौशाला है, गौ सेवक रोजाना सुबह ठेला लेकर निकलते हैं और घर-घर दस्तक देकर बासी रोटियां, चोकर एकत्रित करते हैं। इसी तरह एकत्रित की जाने वाली खाद्य सामग्री से दो-चार नहीं 89 गाय पाली जा रही हैं। गौ सेवक लोगों को प्रेरित भी करते हैं कि बचा खाना कूड़े में न फेंके, आसपास के गौशाला में ले जाकर दे दें।
शहर से करीब दो किमी दूर दातागंज रोड पर चल रही गौशाला में जन सहयोग से दो-चार नहीं बल्कि 86 गायों का पालन किया जा रहा है। गौ पालन की यह मुहिम पूर्व सैनिक पं.ब्रह्मदत्त शर्मा ने शुरू की थी। सेना की नौकरी के बाद उन्होंने गाय पालना शुरू कर दिया। बाद में उनकी आंखों की रोशनी चली गई, इसके बावजूद वह गौशाला के लिए समर्पित रहे। गाय पालन में पहले दिक्कतें आईं तो उन्होंने इसे जनांदोलन का रूप देने के लिए गौशाला की स्थापना की। उन्होंने घर-घर से रोटी और चोकर एकत्रित करना शुरू कर दिया। गौ सेवा का महत्व बताकर लोगों को मदद करने के लिए प्रेरित भी करते। इस कार्य में उनका सहयोग दिया भीम और किशन लाल ने। शुरूआत में तो इन लोगों को कहना पड़ता था कि बासी रोटी और चोकर फेकने के बजाय उन्हें दे दें, लेकिन वर्षों से यह प्रक्रिया चलने से अब लोग अभ्यस्त हो गए हैं। जैसे ही पता चलता है कि भीम और किशन लाल ठेला लेकर आ गए हैं लोग खुद ही रोटी और चोकर उनके ठेले में रख देते हैं। ब्रह्मदत्त शर्मा की मृत्यु के बाद अब उनकी पत्नी रामादेवी इस अभियान को संचालित कर रही हैं। उनके नाती सचिन भारद्वाज बाबा के सपनों को पूरा कराने के लिए गौशाला को विस्तृत आकार देने की कोशिश में लगे हुए हैं। गौ तस्करों से पुलिस कहीं गाय छुड़ाती है तो यहीं लाकर पहुंचा दिया जाता है। जन जागरूकता के लिए अब हर साल यहां गोपाष्टमी के दिन गौ-महोत्सव का भी आयोजन किया जा रहा है। सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से गौशाला का विस्तार भी कराया जा रहा है।
इनसेट
चार संस्थाओं ने एक-एक गाय ली गोद
गाय का पालन-पोषण करने में प्रतिदिन के हिसाब से करीब 80 से 100 रुपये खर्च आता है। शहर की चार संस्थाओं ने एक-एक गाय को गोद ले लिया है। इसी तरह अन्य धार्मिक, सामाजिक संस्थाएं एक-एक गाय गोद ले लें तो गौ पालन का यह अभियान और प्रभावी बन सकेगा। रामा देवी कहती हैं कि गौशाला में जो गाय पल रही हैं उनके लिए भूसा और चोकर का इंतजाम जन सहयोग से किया जाता है। वह खुद अपनी पेंशन खर्च कर गायों का पालन-पोषण करती हैं। यहां पल रही गायों को खुले में न रहना पड़े इसलिए काऊ शेड निर्माण कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
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