गरीबी नहीं, गरीबों को मिटाना चाहती है सरकार
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बदायूं : केंद्र सरकार ने 28 रुपये कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर मानकर उन्हें सूची से तो हटा दिया लेकिन इस महंगाई में 28 रुपये में एक परिवार ढंग से नाश्ता भी नहीं कर सकता फिर खाने की तो बात करना भी बेमानी होगी। सरकार के इस नए फरमान से तो यही लगता है कि सरकार गरीबी नहीं बल्कि गरीबों को मिटाना चाहती है।
केंद्र सरकार के नए फरमान ने एक ही झटके में गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं से लाखों परिवारों को वंचित कर दिया। ऐसे में योजनाओं की आस लगाए लोगों को अपने सपने टूटते नजर आ रहे हैं।
पंचर की दुकान और रिक्शा चलाकर परिवार का गुजारा कर रहा हूं। तीन बेटे दिल्ली में मजदूरी कर रहे हैं। किराए की दुकान है यहीं काम करता हूं और रात में यहीं सो जाता हूं। सरकार भी गरीबों पर ध्यान नहीं दे रही है।
-धर्मपाल, शेरपुर पट्टी, हजरतगंज
खेती की जमीन बाढ़ में बह गई। पत्नी और 12 साल के बेटे के साथ बाबा कालोनी में झोपड़ी डालकर रह रहा हूं। इस महंगाई में रिक्शा खींच कर किसी तरह परिवार का गुजारा कर रहा हूं। दिनभर में मुश्किल से 150 रुपये की कमाई हो पाती है जो ईधन और खाने में खर्च हो जाती है।
-विजेंद्र, जगुआसई, मूसाझाग
महंगाई के इस दौर में 28 रुपये प्रतिदिन कमाने वाले को गरीबी रेखा से ऊपर उठा देना गरीबों के साथ मजाक नहीं तो और क्या है। सरकार को अपने फैसले पर विचार करना चाहिए।
-अशोक खुराना
सरकार जो निर्णय लेती है वह एसी कमरों में बैठकर लिए जाते हैं। हकीकत से उनका कोई वास्ता नहीं होता। आज जहां टमाटर भी सौ रुपये किलो बिक रहा है ऐसे में 28 रुपये में परिवार पालना तो संभव ही नहीं है।
-सरदार भगत सिंह
सरकार का यह फरमान गरीबों के साथ अन्याय है। आज के समय में साधारण सी दुकान पर एक चाय भी पांच रुपये कम नहीं मिलती। ऐसे में 28 रुपये कमाने वाले को गरीब न मानना तो किसी भी तरह से उचित नहीं है।
-डा. शैलेंद्र कबीर
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जो लोग नीति निर्धारण कर रहे हैं उनका कभी गरीबी से पाला ही नहीं पड़ा तो वह क्या समझेंगे कि गरीबी का दंश क्या है। आय एक रुपये बढ़ाकर सरकार ने लाखों गरीब कम कर दिए लेकिन इससे गरीबों की माली हालत में क्या सुधार हुआ उन्हें क्या मिला।
-डा. विष्णु प्रकाश मिश्र
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