शुगर फ्री आलू का मतलब आंख में धूल
बदायूं : बढ़ती डायबिटीज की बीमारी का लोग फायदा उठाने से नहीं चूक रहे हैं। डायबिटीज के रोगी मीठा खाने से परहेज करते हैं। ऐसे में डायबिटीज के रोगियों की मानसिकता को देखते हुए मुनाफाखोर शुगर फ्री आलू बेच रहे हैं। है तो यह सामान्य आलू ही, बस इसकी आकर्षक पैंकिंग करके ज्यादा दाम वसूला जा रहा है। वास्तविकता यह है कि आलू की कोई भी प्रजाति शुगर फ्री नहीं होती है।
आलू को खराब होने से बचाने और उसमें अंकुरण रोकने के लिए इसे कोल्ड स्टोरेज में एक निश्चित तापमान पर रखा जाता है। इससे आलू ठीक वैसा ही रहता है जिस स्थिति में रहता है जैसा रखा गया था। इसके बदले कोल्ड स्टोरेज संचालक किसान से भंडारण शुल्क वसूलते हैं। दरअसल सीआईपीसी ट्रीटमेंट से रसायन का एक बार छिड़काव करने से पैंतालीस दिन तक आलू में किसी तरह का परिवर्तन नहीं होता है। आलू तो आलू है। ऐसा कैसे हो सकता है कि आलू में स्टार्च न हो। लोग तो यही समझते हैं कि शुगर फ्री आलू की कोई बैराइटी आ गई है। जिस तरह से चावल में स्टार्च होता है उसी तरह से आलू में भी पर्याप्त मात्रा में स्टार्च पाया जाता है। होता यह है कि आलू में स्टार्च को ग्लूकोज में बदलने की क्रिया को कुछ समय के लिए रोकने को रसायन का छिड़काव कर दिया जाता है।
वसूला जा रहा पच्चीस रुपये किलो का दाम
बाजार में बिक रहे आलू का रेट सोलह रुपये किलो है। जबकि शुगर फ्री के नाम पर आकर्षक लाल जाली में बिकने वाला आलू पच्चीस रुपये किलो है।
आलू की कोई प्रजाति शुगर फ्री नहीं है। हां, चिपसोना प्रजाति 1,2 व 3 में अपेक्षाकृत स्टार्च कम मात्रा में है।
-कौशल कुमार, डीएचओ
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