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    यूपी में ये है सपा का सबसे मजबूत 'गढ़', सभी 10 विधानसभा सीटों पर कब्जा; लोकसभा उपचुनाव में BJP के सामने दरका 'किला'

    Updated: Mon, 11 Mar 2024 10:11 AM (IST)

    आजमगढ़ लोकसभा सीट के मतदाता अब तक तीन उपचुनावों का सामना कर चुके हैं। साल 2022 विधानसभा चुनाव में सपा ने यहां की सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज कर इतिहास रचा था लेकिन लोकसभा सीट से अखिलेश के इस्तीफे के बाद सपा के इस गढ़ में भाजपा ने सेंध लगा दी और जीत दर्ज की। अब एक बार अखिलेश यादव ने सीट पर सियासी हलचल तेज कर दी है।

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    यूपी में ये है सपा का सबसे मजबूत 'गढ़', सभी 10 विधानसभा सीटों पर कब्जा

    सर्वेश कुमार मिश्र, आजमगढ़। विधानसभा चुनाव 2022 में सपा ने इतिहास रचते हुए जहां पहली बार जिले की सभी 10 विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाया तो वहीं विधान परिषद और लोकसभा उपचुनाव में सपा का किला दरक गया। इसके पीछे कई कारण माने जा सकते हैं। इन चुनावों में सपा मुखिया ने अपने प्रत्याशी के लिए प्रचार करना मुनासिब नहीं समझा था।

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    उधर, चुनाव जीतने के बाद अखिलेश ने आजमगढ़ का रुख नहीं किया। वोटरों की भावनाओं की अनदेखी कर सीट से इस्तीफा देना भी उनके वोटरों की नाराजगी का कारण बना। हालांकि अब स्थितियां तेजी से बदली हैं।

    अखिलेश ने मजबूत की रणनीति

    अखिलेश यादव ने न सिर्फ एक बार फिर यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने को कमर कसी है, बल्कि हाल ही में बसपा नेता गुड्डू जमाली को पार्टी में शामिल कर अपनी रणनीति को और मजबूती दी है।

    आजमगढ़ लोकसभा सीट के इतिहास में तीसरी बार हुए उपचुनाव के परिणाम पर गौर करें, तो दूसरी बार सत्ता पक्ष के आगे विपक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि, इस बार भी परिस्थितियां 2008 की तरह थीं और लगभग पूरी सरकार ही आजमगढ़ में आ गई थी।

    रामनरेश यादव 1977 में बने थे सांसद

    आजमगढ़ संसदीय सीट के लिए हुए उपचुनाव पर गौर करें तो वर्ष 1977 में जनता पार्टी की लहर में रामनरेश यादव कांग्रेस के चंद्रजीत यादव को 1,37,810 मतों से पराजित कर सांसद बने थे। बाद में उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया तो सीट खाली हो गई।

    1978 में उपचुनाव का एलान हुआ तो कांग्रेस ने चंद्रजीत की जगह मोहसिना किदवई को मैदान में उतारा। उनके लिए खुद इंदिरा गांधी ने प्रचार की कमान संभाल ली थी। उसका असर यह हुआ कि जनता पार्टी की लहर बेअसर हो गई और मोहसिना किदवई ने जनता पार्टी के रामबचन यादव को करारी शिकस्त दे दी। तब जनता पार्टी के रामबचन यादव को 95,944 मत, जबकि कांग्रेस की मोहसिना किदवई को 1,31,329 मत मिले थे।

    2008 में हुआ था दूसरा उपचुनाव

    जनता को दूसरे उपचुनाव का सामना 2008 में उस समय करना पड़ा था जब 2004 में बसपा के टिकट पर सांसद बने रमाकांत यादव की नजदीकियां सपा से बढ़ीं तो बसपा ने उनकी सदस्यता समाप्त करा दी थी। सपा ने उपचुनाव में रमाकांत को टिकट न देकर पूर्व मंत्री बलराम यादव को मैदान में उतार दिया। ऐसे में रमाकांत यादव ने भाजपा का दामन थामा और मैदान में उतर गए।

    उस समय सत्ता में रही बसपा ने अकबर अहमद डंपी को उतारकर पूरी ताकत झोंक दी और ये सीट 52,368 मतों के अंतर जीत ली। डंपी को 227341 वोट मिले। उस समय सपा को 1,53,671 मत प्राप्त करने के साथ तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था।

    जनता ने जताई सपा से नाराजगी

    तीसरा उपचुनाव अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के कारण हुआ तो परिणाम के साथ जनता की नाराजगी भी सामने आई। सपा के दिग्गज दावा कर रहे थे कि चुनाव परिणाम उनके पक्ष में ही आएगा, लेकिन सपा कार्यकर्ताओं की अंदर से नाराजगी उसी समय सामने आ गई थी, जब जिले की सभी विधानसभा सीटें जीतने के बाद विधान परिषद चुनाव का परिणाम सामने आया और पार्टी प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बची थी।

    उसे गंभीरता से लेने की बजाए पहले असमंजस और ऐन वक्त पर सीधा धर्मेंद्र यादव को उतार दिया गया। जिनकी मशक्कत पूर्व की दुश्वारियों के सामने छोटी पड़ गई और वह मामूली अंतर से चुनाव हार गए।

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