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कैफी व शबाना के शहर में फिल्म फेस्टिवल का अलग महत्व

आजमगढ़: फिल्म एवं टीवी सीरियल लेखिका, निर्माता एवं स्वर्गीय ओमपुरी की पत्नी सीमा कपूर ने फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन के प्रथम सत्र में चलाई जाने वाली अपनी फिल्म “हाट'' के बारे में दर्शकों से अपने विचार व्यक्त किए।

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 06:06 PM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 06:06 PM (IST)
कैफी व शबाना के शहर में फिल्म फेस्टिवल का अलग महत्व
कैफी व शबाना के शहर में फिल्म फेस्टिवल का अलग महत्व

आजमगढ़ : फिल्म एवं टीवी सीरियल लेखक, निर्माता एवं स्व. ओमपुरी की पत्नी सीमा कपूर ने फिल्म फेस्टिवल के तीसरे दिन के प्रथम सत्र में चलाई जाने वाली अपनी फिल्म 'हाट' को लेकर दर्शकों से अपने विचार साझा किए। किसी फिल्म के निर्माण का ख्याल लेखक-निर्माता के जेहन में कैसे आता है, जैसे प्रश्न के जवाब उन्होंने खुद की लिखी व निर्देशित फिल्म 'हाट' के उदाहरण से बताया।

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उन्होंने बताया कि जिस वक्त वह अपनी ¨जदगी के बुरे दौर से गुजर रहीं थीं और अपने पैतृक निवास झालावाड़, राजस्थान में वक्त गु•ार रहीं थीं, उस वक्त उनकी ¨जदगी में एक वाकया हुआ जिसने उन्हें इस कदर झकझोर दिया कि वह अपने गमों की जुगाली करना (दोहराना) भूल समाज में व्याप्त दर्द को महसूस करने लगीं। निर्णय लिया कि वह इस विषय पर एक फिल्म बनाएंगी और फिल्म 'हाट' का स्वरूप सामने आया। उन्होंने बताया कि उनकी घरेलू नौकरानी ने बहुत परेशान होकर एक दिन उनसे पांच हजार रुपये उधार मांगे। तीन-चार घरों में काम करके 1000-1200 रुपये कमाकर परिवार व बच्चों का पोषण करने वाली इस महिला को आज अचानक पांच हजार रुपये क्यों चाहिए एवं ये इतने सारे पैसे चुकाएगी कैसे। अपने मन में उठ रहे सवालों को जब मैंने नौकरानी से पूछा तो उसका उत्तर सुनकर वह दंग रह गई कि आज भी महिलाओं की हालत ऐसी है। पुरुष प्रधान भारतीय समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति जिसमें एक औरत को शादी के बाद उसका पति पत्नी की मर्जी जाने बिना सिर्फ अपनी इच्छा से किसी दूसरे आदमी को बेच देता है। इस कुप्रथा को 'बैठना' बोलते हैं। यह कुप्रथा राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र के अति निम्न तबके के समाज में पाई जाती है। उन्होंने बताया कि यदि हम सिनेमा निर्माता लेखक जागरूक होकर ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर काम करें, सिनेमा बनाएं और उसको जन-जन तक पहुचाएं तो निश्चित ही सिनेमा निर्माण सामाजिक सरोकार से जुड़ेगा और वास्तविक सिनेमा से समाज में सुखद परिवर्तन होगा। ऐसे फिल्म फेस्टिवल फिल्मों के निर्माण एवं सार्थक फिल्मों के दर्शकों को अपने तक लाने में सफल होगी। आजमगढ़ कैफी आजमी व अभिनेत्री शबाना आजमी का शहर है तो इस शहर में इस तरह का फिल्म फेस्टिवल अपने आप में अलग महत्व रखता है। आयोजकों व दर्शकों का उन्होंने साधुवाद दिया। ओमपुरी के वादे से साकार हुई फेस्टिवल की परिकल्पना : अभिषेक पंडित

सूत्रधार संस्थान के सचिव अभिषेक पंडित ने जिले में फिल्म फेस्टिवल के आयोजन के विचार का बीज कैसे उनके हृदय में पल्लवित हुआ, इस विषय पर बात की। बताया कि आज से लगभग तीन साल पहले वे स्व. ओमपुरी से उनके निजी निवास पर मिलने गए। आजमगढ़ में थिएटर के क्षेत्र में अपने प्रयासों को उन्हें विस्तार से बताया। ओमपुरी ने उस दौरान वादा किया कि वह फेस्टिवल का आयोजन करें और वह स्वयं (ओमपुरी) आजमगढ़ फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन करने आएंगे लेकिन किन्हीं कारणों से तत्काल में फेस्टिवल का आयोजन संभव नहीं हो पाया। आज वह इस दुनिया से चले गए। आज जब फिल्म फेस्टिवल के आयोजन की परिकल्पना साकार हुई तो फेस्टिवल के आयोजन भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व के कला जगत का जीवंत स्वरूप रहे स्व. ओमपुरी को समर्पित किया। आज वह आयोजन के दौरान भौतिक रूप से शामिल नहीं हैं लेकिन कहीं न कहीं उनके आत्मिक स्वरूप एवं शुभाशीष को स्पर्श करते हुए लगातार तीन दिवसीय सफल आयोजन अपने चरम पर पहुंच कर समापन की बेला पर पहुंचा।


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