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    पान की खेती से बदलेगी किसानों की किस्मत

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 04 Dec 2018 07:09 PM (IST)

    आजमगढ़ : राष्ट्रीय कृषि विकास योजनांतर्गत प्रदेश में पान विकास योजना वर्ष 2018-19 में जनपद के लिए शा

    पान की खेती से बदलेगी किसानों की किस्मत

    आजमगढ़ : राष्ट्रीय कृषि विकास योजनांतर्गत प्रदेश में पान विकास योजना वर्ष 2018-19 में जनपद के लिए शासन की तरफ से 30 बरेजा को हरी झंडी दी गई है। पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार बरेजा बनाने वाले किसानों को अनुदान भी देगी। जनपद में एक बरेजा पर 75 हजार 600 रुपये अनुदान सरकार की तरफ से दिया जाएगा। शेष धनराशि किसान को खर्च करनी होगी। इसके लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय में किसी भी तिथि को जमा कर सकते हैं।

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    जिला उद्यान अधिकारी बालकृष्ण वर्मा ने कहा कि भारत में जलवायु गर्म व शुष्क होती है। यहां पान की खेती बंद संरक्षणशालाओं बरेजों में की जाती है। इन क्षेत्रों में बरेजों का निर्माण एक विशेष प्रकार से बनाया जाता है। बरेजा निर्माण में मुख्य रूप से बांस के लटठे, बांस, सूखी पत्तियों, सन व घास, तार आदि के माध्यम से किया जाता है। पान की अच्छी खेती के लिए जमीन की गहरी जोताई कर भूमि को खुला छोड़ देते हैं। उसके बाद उसकी दो उथली जोताई करते हैं फिर बरेजा का निर्माण किया जाता है। यह प्रक्रिया 15-20 फरवरी तक पूर्ण कर ली जाती है। तैयार बरेजों में फरवरी के अंतिम सप्ताह से लेकर 20 मार्च तक पान बेलों की रोपाई पंक्ति विधि से दोहरे पान बेल के रूप में की जाती है। बीज के रोपण के रूप में पान बेल से मध्य भाग की कलम ली जाती है, जो रोपण के लिये आदर्श कलम होती है। पौधों के संरक्षण के लिए पानी देकर नमी बनायी जाती है, जिससे कि बरेजों में आ‌र्द्रता बनी रहे। उचित दूरी जरूरी

    अच्छी खेती के लिए पंक्ति से पंक्ति की उचित दूरी रखना आवश्यक है। इसके लिए आवश्यकतानुसार पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 बाई 30 सेमी या 45 बाई 45 सेमी रखी जाती है। भूमि शोधन की विधि

    पान की फसल को प्रभावित करने वाले जीवाणु व फफूंद को नष्ट करने के लिये पान कलम को रोपण के पूर्व भूमि शोधन करना आवश्यक है। इसके लिये बोर्डो मिश्रण के एक प्रतिशत सांद्रण घोल का छिड़काव करते हैं। पान की कलम जब छह सप्ताह की हो जाती है तब उन्हें बांस की फंटी, सनई या जूट की डंडी का प्रयोग कर बेलों को ऊपर चढ़ाते हैं। 7-8 सप्ताह के उपरान्त बेलों से कलम के पत्तों को अलग किया जाता है, जिसे पेडी का पान कहते है। ¨सचाई व जल निकासी की व्यवस्था

    प्रतिदिन तीन से चार बार (गर्मियों में) ठंड में दो से तीन बार ¨सचाई की आवश्यकता होती है। जल निकासी की उत्तम व्यवस्था भी पान की खेती के लिये आवश्यक है। अधिक नमी से पान की जड़े सड़ जाती है, जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। अत: पान की खेती के लिये ढाल सर्वोत्तम होता है।