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    World Environment Day: आजमगढ़ में है पौधों का अनाथालय, दो दशक में 'वनप्रेमी' ने कई पौधों को दिलाई सफलता

    World Environment Day 2022 देश में पेड़ों का ये अपनी तरह का अनोखा और संभवतः एकमात्र अनाथालय है। आजमगढ़ के वनप्रेमी चंद्रदेव दो दशक से यहां बेसहारा पौधों की सफलता की कहानी गढ़ रहे हैं। इसके लिए वह प्रतिदिन समय निकालते हैं।

    By Amit SinghEdited By: Updated: Sat, 04 Jun 2022 04:59 PM (IST)
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    World Environment Day 2022: आजमगढ़ में पेड़ों का अनाथालय। फोटो - दैनिक जागरण

    राकेश श्रीवास्तव, आजमगढ़। धरती को प्रदूषण से बचाने के जज्बे ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ निवासी वृद्ध चंद्रदेव को 'वनप्रेमी' बना दिया। जज्बा भी ऐसा कि डेढ़ दशक में 20 हजार 'अनाथ' पौधों को संरक्षित कर उन्हें पेड़ में तब्दील कर चुके हैं। अनाथ पौधे यानी घरों की दीवारों, छतों, सार्वजनिक स्थानों पर उगे वे पौधे जिन्हें लोग उखाड़ देते हैं। उनकी देखभाल नहीं होती। मोटरसाइकिल पर पीछे टोकरी बांध कर अनाथ पौधों की तलाश में नियमित दो घंटे शहर में भ्रमण करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। संरक्षित पौधों को ग्राम समाज की खाली पड़ी भूमि, नदियों किनारे रोपण करने संग जरूरतमंदों को मांगने पर इस शर्त के साथ देते हैं कि इन्हें पेड़ बनते देखने को उनके यहां पहुंचते भी रहेंगे।

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    गांव में लगाए पौधे

    यूं तो चंद्रदेव आजमगढ़ के अलावा गोराखपुर, मऊ तक पौध पहुंचाने में गुरेज नहीं करते हैं, लेकिन वनप्रेमी होने का अक्स उनके गांव देउरपुर कमालपुर में दिखता है। 12 बिस्वा भूमि में सागौन लगाए तो ग्राम समाज की खाली पड़ी भूमि पर उनके लगाए पौधे अब पेड़ बन ग्रामीणों को संजीवनी बांट रहे हैं। मुख्य सड़क मार्ग से गांव में प्रवेश करते ही ठंडी हवाएं सेहतमंद वातावरण की अनुभूति कराती हैं।

    मजबूरी में खोली नर्सरी, घरों से जुटाते हैं पालीथिन बैग

    चंद्रदेव प्रतिदिन दो-चार पौधे ढूंढ़ लाते हैं। इन्हें संरक्षित रखने को नर्सरी बनाई है। पर्यावरण संरक्षण को घरों से पालीथिन बैग जुटा उसमें पौधों को रोपित करते हैं। पौधों के लिए खुद जैविक खाद बनाते हैं। बरगद एवं पीपल के पौधे लेने के लिए दूर-दराज से लोग उनके घर पहुंचते हैं।

    जिलाधिकारी को देंगे 10 लाख बरगद के बीज

    वनप्रेमी चंद्रदेव दास ने वर्ष 2007 में अनाथ पौधों को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया था। वह बताते हैं कि अनाथ पौधों को अपनी नर्सरी में संरक्षित रखता हूं। घरों में बेकार पड़ी पालीथिन को एकत्र कर नर्सरी में उपयोग करता हूं। मैं पौधे मुफ्त में किसी को देता हूं, तो उसके घर पहुंच सुनिश्चित करना नहीं भूलता कि उसका रोपण एवं देखभाल हो रहा है कि नहीं। जिले में बरगद की पौध ही नहीं है तो रोपण कैसे होगा। मैने दस लाख पौध उगाने के लिए बीज तैयार किया है, जिसे जिलाधिकारी को सौंपूंगा। प्राणवायु बचाने के प्रयास में दो दशक बीत गए, जो सांसे थमने तक जारी रहेगा।