संजीवनी है पौहारी बाबा का पोखरा
बूढ़नपुर (आजमगढ़): गर्मी में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मचना सामान्य बात है। सरकार द्वारा खोदे गए तालाब पोखरे सूख जा रहे हैं जबकि आम आदमी द्वारा खोदाए गए पोखरे कभी नहीं। अगर कोई शिकायत कर दे तो अधिकारी यह मानने को तैयार नहीं होते कि उनके द्वारा कराये गये कार्य में कोई खामी है किंतु पौहारी बाबा का पोखरा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
पूरे देश में सूखा पड़ जाय लेकिन इसका पानी कम नहीं होता। रहा सवाल सरकारी तालाब पोखरे का तो मई के महीने में ही सब सूख चुके हैं। आज जब जिले के कुंओं का पानी पीने योग्य नहीं है उस परिस्थिति में भी पौहारी बाबा के पोखरे का पानी लोग पीने में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका जवाब सीधा है कि इस पोखरे के संरक्षण के प्रति लोग सदैव तत्पर रहे हैं।
बता दें कि संत पौहारी बाबा मूल रुप से बूढ़नपुर तहसील क्षेत्र के बभनपुरा गांव के निवासी थे। लोग बताते हैं कि बाबा ने कभी किसी की जमानत लिया था जो फरार हो गया। बाबा को भिक्षाटन कर जमानत की राशि भरनी पड़ी थी। इसके बाद ही उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया था। घर छोड़ने के बाद वे वर्षो तक जंगल में रहे बाद में क्षेत्र के सरैया जंगल में आकर बस गए। यहां उन्होंने पोखरा खोदवाने का प्रयास किया लेकिन क्षेत्रीय लोगों की मदद नहीं मिली। इसके बाद वे नित्य 17 किमी पैदल चलकर सरयू तट पर जाते और वही तपस्या करते। इसी बीच उन्होंने क्षेत्र के क्षत्रियों से पोखरा खोदाई का प्रस्ताव रखा तो लोग तैयार हो गये। इसके बाद सरैया में पोखरे की खोदाई की गई। पोखरे के मध्य में एक कुंआ खोदा गया लेकिन पानी का दर्शन नहीं हुआ। फिर बाबा सरयू तट पर तपस्या के लिए बैठ गए। उन्हें स्वप्न आया कि जाओ तुम्हारे पोखरे में पानी भर गया है। जब वे सरैया पहुंचे तो देखा कि पोखरे में पानी के साथ ही सरयू जी का शैवाल, मछली व कछुआ भी था। बाबा ने सबकी राय से उसका नाम रामसागर रख दिया। आज भी यहां पोखरे में विशालकाय कछुए देखने को मिलते हैं। भक्त इन्हें लाई व बतासा खिलाते हैं। बताते हैं कि इस पोखरे में नियमित स्नान करने से चर्म रोग नहीं होता। उक्त स्थान पर प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है और लोग मुंडन संस्कार कराने के लिए पहुंचते हैं। पोखरे के दक्षिण भीटे पर मंगल फकीर की समाधि है। पोखरे में जल भरने के लिए दो ट्यू बेल लगाए गए हैं। घाट की सुंदरता आज भी लोगों को आकर्षित करता है।
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