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    तब खुद पार्टी हुआ करते थे तेजबहादुर सिंह

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    Updated: Sat, 21 Jan 2012 06:11 PM (IST)

    मेंहनगर (आजमगढ़): आज सभी दलों में टिकट के लिए मारामारी चल रही है लेकिन एक समय वह भी था जब कोई प्रत्याशी खुद एक पार्टी हुआ करता था। इन्हीं में से एक थे तेजबहादुर सिंह जिन्हें मेंहनगर क्षेत्र का पहला विधायक होने का गौरव प्राप्त हुआ। कम्युनिस्ट विचारधारा के तेजबहादुर सिंह कभी किसी पार्टी के टिकट के मोहताज नहीं रहे। वर्ष 1952 में हुए चुनाव में मेंहनगर विधानसभा सीट को लालगंज नार्थ के नाम से जाना जाता था। तब सीट सामान्य थी। तेजबहादुर सिंह निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे और मतदाताओं ने उन्हें भारी समर्थन दिया। कारण कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तरवां थाना फूंकने में आगे रहे तेजबहादुर सिंह का नाम बच्चे-बच्चे की जुबान पर हुआ करता था।

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    पहले चुनाव के बाद कुछ ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई कि सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। उसके बाद भी तेजबहादुर सिंह का तेज कम नहीं हुआ और वे लालगंज साउथ (वर्तमान में सुरक्षित व इससे पहले सामान्य लालगंज) क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे। वहां से भी उन्होंने सफलता प्राप्त की। उस समय लालगंज नार्थ से कांग्रेस के धनीराम विधायक बने थे। वर्ष 1962 में हुए तीसरे विधानसभा चुनाव में क्षेत्र का नाम बदलकर बेला दौलताबाद कर दिया गया और उस समय छांगुर राम भाकपा के टिकट पर विधायक बने।

    वर्ष 1967 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में मेंहनगर सुरक्षित सीट अस्तित्व में आया और आज तक आरक्षित ही है। कभी कम्युनिस्ट का गढ़ रहे इस क्षेत्र में हुए चौथे चुनाव में जनसंघ के टिकट पर जैनू राम को विधानसभा में पहुंचने का मौका मिला। वर्ष 1969 में हुए मध्यावधि चुनाव में एक बार फिर माकपा के टिकट पर आये छांगुर राम सब पर भारी पड़े। वर्ष 1974 के चुनाव में क्षेत्र में भारतीय क्रांति दल का दबदबा रहा और इस दल के टिकट पर मैदान में आये जंगबहादुर को जनता ने विधानसभा भेजा।

    वर्ष 1977 के चुनाव में जनता पार्टी की लहर चल रही थी तो उसके टिकट पर बुद्धू राम विधायक बन गये। वर्ष 1980 में चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी के पक्ष में चली सहानुभूति की लहर में कांग्रेस के दीपनरायन को विजय का ताज मिल गया। वर्ष 1985 के चुनाव में कांग्रेस के ही टिकट पर दीपनरायन को फिर सफलता मिली। दीपरायन की जीत का सिलसिला वर्ष 1989 में चली जनता दल की लहर के बाद भी नहीं रुका और वे कांग्रेस के टिकट पर फिर विधायक बन गये। वर्ष 1991 में चली रामलहर में कल्पनाथ पासवान की नैया राम ने पार लगा दी लेकिन अगले ही चुनाव वर्ष 1993 में सपा-बसपा गठबंधन ने कल्पनाथ को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। उस समय सपा के दरोगा प्रसाद सरोज यहां से विधायक बने थे। सपा-बसपा की दोस्ती खत्म होने के बाद वर्ष 1996 में जब चुनाव हुआ तो सीट बसपा के खाते में चली गयी और विद्या चौधरी यहां से पहली बार विधायक बनीं जिनका कब्जा वर्ष 2007 तक बरकरार रहा।

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