संकटों के भंवरजाल से मुक्त करते है बाबा भंवरनाथ
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आजमगढ़ : देश-विदेश में स्थापित द्वादश शिवलिंगों में जहां काठमांडू के बाबा पशुपति नाथ, काशी के बाबा विश्वनाथ और देवघर के बाबा बैजनाथ धाम का विशेष महत्व माना जाता है, वहीं अपने शहर के लोगों के लिए बाबा भंवरनाथ के दर्शन-पूजन का खास महत्व है।
ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन-पूजन करने से संकटों के भंवरजाल से बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों को मुक्ति दिलाते है। शायद यही वजह है कि शिव आराधना का कोई भी पर्व आता है, तो शहर एवं आस-पास के लोग यहां जरूर पहुंचते है। महाशिवरात्रि हो या फिर सावन का महीना। यहां लोग एक बार पहुंचकर बाबा का दर्शन करना नहीं भूलते। यहां तक कि बाबा धाम जाने वाले भक्त भी रवाना होने से पहले यहां जलाभिषेक करते है। कहा जाता है कि शहर की सीमा के अंदर स्थापित सभी शिवालयों में दर्शन-पूजन के बाद यहां आए बगैर शिव की आराधना पूरी नहीं मानी जाती। लोगों का मानना है कि नाम के अनुसार यहां दर्शन करने से किसी भी संकट से मुक्ति मिल जाती है और बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों की वर्ष पर्यन्त सुरक्षा करते है।
शहर के पश्चिमी छोर पर स्थित इस शिव मंदिर पर शिवरात्रि के दिन बड़ा मेला भी लगता है और परंपरा के अनुसार शिव विवाह का आयोजन किया जाता है।
सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं का प्रतिदिन आवागमन होता है लेकिन सोमवार को यहां काफी भीड़ देखी जाती है। गर्भगृह के चारो द्वार श्रद्धालुओं से भरे होते है और दरवाजा छोटा होने के कारण घटों दर्शन के लिए लाइन लगानी पड़ती है। यहां मन्नतें पूरी होने के बाद लोग बाबा को कड़ाही भी चढ़ाते है और वर्ष पर्यत सुख-समृद्धि की कामना करते है। लगन के समय यहां दहेज रहित विवाह भी संपन्न होते हैं।
इस प्राचीन शिव मंदिर की स्थापना के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाला तो कोई नहीं मिलता मगर आस-पास के लोग जो मानते है, वह इसके इतिहास पर काफी कुछ प्रकाश डालता है। बताया जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां भंवरनाथ नाम के एक वृद्ध संत आया करते थे और यहां पर अपनी गाय चराते थे। उन्हीं के समय में यहां एक शिवलिंग की स्थापना की गई थी। यहां एक तरफ उनकी गाय चरती थी, तो दूसरी तरफ उस समय में वह वहीं पर बैठकर शिव का ध्यान करते थे। कहा जाता है कि उसी गाय चराने वाले बाबा के नाम पर आगे चलकर इस स्थान का नाम भंवरनाथ पड़ गया। मंदिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि चार अक्टूबर 1951 को मंदिर की नींव रखी गई जो सात वर्षो बाद 13 दिसंबर 1958 में बनकर तैयार हो गया। अब यहां श्रद्धालुओं के लिए लगभग सारी सुविधाएं उपलब्ध है।
कुल मिलाकर बाबा की महिमा केवल शहर तक की सीमित नहीं है, बल्कि पूरे जनपद के लोग बाबा का आशीर्वाद लेने आते रहते है। इसे आस्था का ही मामला कहा जाएगा कि जहां मंदिर की देख-रेख करने वाले विपिन सिंह उर्फ डब्बू मंदिर के विकास की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं वहीं शहर के बदरका क्षेत्र के रहने वाले जयप्रकाश उर्फ दीपू दुबे हर सोमवार को बाबा का श्रृंगार कराते हैं।

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