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    Ram Mandir: 'रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम', हनुमान के बिना अधूरी है रामकथा; पढ़ें क्या कहती है अयोध्या

    By Jagran News Edited By: Shoyeb Ahmed
    Updated: Mon, 22 Jan 2024 05:30 AM (IST)

    अवधपुरी के शिखर पर खड़े होकर समूची अयोध्या की पहरेदारी करती हनुमानगढ़ी इस तथ्य को बताती है कि “रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम” कहने वाले हनुमानजी ने अभी तक विश्राम नहीं किया है और अनवरत रक्षारत हैं। 52 बीघे के विस्तार में बनी हनुमानकोट के नाम से भी जाने जानी वाली इस किलेरूपी संरचना के बारे में एक मान्यता है।

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    हनुमान न हों तो वो रामकथा कही ही नहीं जा सकती

    राकेश पांडेय, अयोध्या। अयोध्या प्रभु राम स्वरूप हैं, तो हनुमान उनकी परछाईं, राम की महिमा का बखान हो और उसमें हनुमान न हों तो वो रामकथा कही ही नहीं जा सकती।

    अंजनीसुत की महिमा इतने से समझी जा सकती है कि प्रभु श्रीराम ने जब कहा कि मैं तुम्हारे ऋण से उऋण नहीं हो सकता तो तुलसीदास को लिखना पड़ा कि इन रामभक्त को राम से अधिक जानिए क्योंकि राम ने खुद को ऋणी बताकर हनुमान को रामनाम का साहूकार बना दिया।

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    अयोध्या बताती है इस तथ्य को

    अवधपुरी के शिखर पर खड़े होकर समूची अयोध्या की पहरेदारी करती हनुमानगढ़ी इस तथ्य को बताती है कि “रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम” कहने वाले हनुमानजी ने अभी तक विश्राम नहीं किया है और अनवरत रक्षारत हैं। 52 बीघे के विस्तार में बनी हनुमानकोट के नाम से भी जाने जानी वाली इस किलेरूपी संरचना के बारे में मान्यता है कि लंका विजय के बाद जब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे तब उन्होंने इसे हनुमान जी को अवधपुरी की सुरक्षा सौंपते हुए दिया था।

    तभी से अंजनीपुत्र यहां पर विराजमान रहकर इस बात की देखरेख करते हैं कि उनके स्वामी की प्रजा को कोई भी कष्ट न हो। सुप्रभात के साथ ही अपने-अपने घरों से हनुमानगढ़ी की ओर ताककर नमन करते लाखों अवधपुरीवासी अंजनीसुत की इस अबाध तपस्या के लिए उनको नमन करते हैं कि वे निरंतर उनकी देखरेख कर रहे हैं। हनुमानगढ़ी की छत से उल्लास मनाती अयोध्या का वैभव देखते ही बन रहा है। धर्म ध्वजाएं अवधपुरी के भवनों पर ऐसी फहर रहीं मानों भगवा कोहरा और घना हो चला हो।

    अठारवीं शताब्दी में किया था कब्जे के लिए हमला

    हनुमानगढ़ी की सीढ़ियों पर मिले संतोष सिंह बताते हैं कि राम की महिमा से अनजान लोगों की आंखों में यह दुर्ग हमेशा से खटकता रहा है।

    अठारहवीं शताब्दी के मध्य में इस पर कब्जा करने के लिए हमला भी किया गया था, लेकिन जमकर हुए उस खूनी संघर्ष में हनुमानभक्तों ने न सिर्फ हमला करने वालों को खदेड़ दिया था, बल्कि 70 से अधिक आक्रमणकारियों को मार गिराया था। सन 1905 में छपा जिला गज़ेटियर इस ऐतिहासिक तथ्य की पुष्टि करता है।

    दामोदर दास ने ये कहा

    हनुमानगढ़ी जाने वाली गली में रहने वाले दामोदर दास कहते हैं कि प्रभु राम ने हनुमान जी को अयोध्यापुरी की रक्षा का जिम्मा सौंपा है, हम सभी हनुमान जी के चाकर हैं, और जब हनुमान जी प्रभु राम का काम कर रहे हैं तो उनकी आज्ञा हमें पालन करनी है।

    अयोध्या के निवासी युवा नवीन वर्मा कहते हैं कि जब संकटमोचक हनुमान ही हम पर लगातार दृष्टि बनाये हुए हैं, तो हमें किस बात का डर होगा। हनुमानगढ़ी का माहात्म्य इसमें विराजे हनुमान की तरह ही अतुलित है और अयोध्या दर्शन को आने वाले लोगों को राम-मंदिर जाने के पूर्व हनुमानगढ़ी में अंजनिपुत्र के दर्शन करते हैं।

    मंहत राजू दास ने ये बताया

    हनुमान गढ़ी के महंत राजू दास कहते हैं कि प्रभु राम की प्राण प्रतिष्ठा से सर्वाधिक हर्षित तो उनके भक्त हनुमान हैं। हनुमानगढ़ी भी निहाल है। नाका हनुमानगढ़ी के मुख्य पुजारी रमेश दास बताते हैं कि मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचाने वाली 76 सीढ़ियों को फूलों से सज्जित किया जा रहा है। रामरती देवी बताती हैं कि “अदमी के कित्तो ग्रह लगा रहे, बस इहां आय के हनुमानजी के लाल चोला चढ़ाय दो, हनुमान जी सब ग्रहन के मार भगइहें”।

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