UP: तीन कृषि विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्ति लटकी, सर्च कमेटियों की बैठक का इंतजार
UP Agriculture Universities: सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ में कुलपति का पद 25 सितंबर को रिक्त हो गया था। पूर्व कुलपति ...और पढ़ें

अयोध्या में नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
राज्य ब्यूरो, जागरण, लखनऊ: प्रदेश के तीन कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों में नए कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया अटक गई है। विज्ञापन जारी होने के बावजूद सर्च कमेटियों की बैठक न होने से चयन की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। इससे कृषि शिक्षा में प्रशासनिक और शैक्षणिक गतिविधियों पर असर पड़ रहा है।
सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ में कुलपति का पद 25 सितंबर को रिक्त हो गया था। पूर्व कुलपति डा. केके सिंह का कार्यकाल उसी दिन पूरा हुआ, लेकिन नए कुलपति की नियुक्ति न होने के कारण अभी भी वही कार्यभार संभाल रहे हैं। विश्वविद्यालय में कुलपति पद का विज्ञापन जारी हो चुका है, लेकिन सर्च कमेटी की बैठक नहीं हुई है। बैठक के बाद कमेटी तीन विशेषज्ञों के नाम राज्यपाल को भेजेगी, जिसके बाद इंटरेक्शन के आधार पर नियुक्ति होगी।
अयोध्या में नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में भी कुलपति पद का विज्ञापन हो चुका है, लेकिन यहां भी सर्च कमेटी की बैठक अभी तक नहीं बुलाई गई है। कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में कुलपति डा. एके सिंह के इस्तीफे के बाद पद खाली है। यहां भी विज्ञापन जारी हो चुका है, लेकिन पूर्व दो विश्वविद्यालयों में सर्च कमेटियों की बैठक न होने से माना जा रहा है कि कानपुर विश्वविद्यालय की नियुक्ति प्रक्रिया में और समय लग सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कुलपति बनने की प्रक्रिया में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के वैज्ञानिकों को अक्सर प्राथमिकता दी जाती है। हालांकि, कुलपति पद के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में प्रोफेसर पद पर 10 वर्ष के अनुभव की अनिवार्यता है। आइसीएआर में एडीजी और निदेशक जैसे पदों पर कार्यरत कई वैज्ञानिकों के पास प्राध्यापक का अनुभव नहीं होता, जिससे वे योग्यता पूरी नहीं कर पाते।
वहीं कुछ अधिकारी आइसीएआर में प्रोफेसर भी नियुक्त होते हैं, लेकिन अधिकांश के पास शिक्षण अनुभव नहीं होता। यदि ऐसी नियुक्ति को कोई शिक्षक अदालत में चुनौती देता है तो 10 वर्षों के प्रोफेसर अनुभव की अपरिहार्यता साबित कर पाना मुश्किल होगा। इसलिए कुलपति चयन में इस पहलू का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि भविष्य में कानूनी जटिलताएं न उत्पन्न हों और विश्वविद्यालयों के संचालन में बाधा न आए।

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