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    UP: अत्यधिक तापमान पर गेहूं की संरचना एवं जैव-रासायनिक परिवर्तनों पर अध्ययन करेंगे कृषि विज्ञानी

    By Praveen Tiwari Edited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Sun, 07 Dec 2025 07:27 PM (IST)

    Narendra Dev Agriculture Iniversity: तीनों का तुलनात्मक अध्ययन कर अलग-अलग दिन के तापमान की स्थिति का अध्ययन किया जाएगा। इसमें तापमान के दौरान गेहूं के ...और पढ़ें

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    कृषि विवि के शोध फार्म पर शोध निदेशक डा. शंभू प्रसाद

    जागरण संवाददाता, अयोध्या : तापमान से गेहूं की उत्पादकता प्रभावित हो रही है। अत्यधिक तापमान में गेहूं की शारीरिक संरचना एवं जैव-रासायनिक परिवर्तनों के अध्ययन के लिए विशेष प्रयास शुरू हुआ है। आचार्य नरेंद्रदेव कृषि विवि में इस पर शोध आरंभ हुआ है।

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    यह परियोजना बढ़ते वैश्विक तापमान एवं जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौतियों को ध्यान में रख कर प्रारंभ की गई है। विवि के प्रक्षेत्र में गेहूं की फसल पर बढ़ते तापमान का प्रभाव व इससे निपटने के लिए नई प्रजातियां विकसित करने के लिए शोध शुरू हो गया है।

    निदेशक शोध डा. शंभू प्रसाद ने परियोजना की शुरुआत शोध फार्म पर बोआई से की। बताया कि इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के किसानों के लिए बदलते जलवायु परिवर्तन एवं उच्च तापमान के प्रति सहनशील प्रजातियां विकसित करना है। जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूं जैसी महत्वपूर्ण रबी की फसल सर्वाधिक प्रभावित हो रही है।

    ऐसे में कृषि उत्पादन स्थिर रखने और किसानों की आय व उत्पादन की सुरक्षा के लिए शोध का निर्णय किया गया। परियोजना के मुख्य अन्वेषक व फसल कार्यिकी विज्ञान विभाग के विज्ञानी डा. आलोक कुमार सिंह ने बताया कि शोध का मुख्य उद्देश्य गेहूं की फसल पर अत्यधिक तापमान (टर्मिनल हीट स्ट्रेस) के दौरान होने वाले शारीरिक, जैव-रासायनिक एवं आणविक परिवर्तनों को समझना है।

    भविष्य में जलवायु परिवर्तन की गति के अनुरूप ऐसी प्रजातियों का विकास किया जाना है, जो उच्च तापमान को सहन करने में सक्षम हों और अधिक उत्पादन भी दें। ये परियोजना कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह की प्रेरणा एवं उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. संजय सिंह के सहयोग से प्रारंभ हुई है। ये उत्तर प्रदेश के किसानों को बदलते जलवायु परिवर्तन के अनुरूप विकल्प देने की दिशा में गंभीर प्रयास है।

    कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रोफेसर धीरेंद्र सिंह से बताया कि यह शोध कार्य उत्तर प्रदेश सहित देश के समस्त गेहूं उत्पादक क्षेत्रों के लिए लाभकारी होगा व जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। उपकार के वित्तीय सहयोग से शोध आरंभ हुआ है।

    तीन चरणों में बोआई का विज्ञानी करेंगे तुलनात्मक अध्ययन

    शोध का मुख्य उद्देश्य गेहूं की बोआई विलंब से करने पर उच्च तापमान के कारण उसकी उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव का अध्ययन किया जाना है। उत्पादकता कम होने के कारण खोजे जाएंगे। मुख्य अन्वेषक डा. आलोक कुमार सिंह ने बताया कि इस शोध में हम गेहूं की फसल की बोआई तीन चरणों में करेंगे। पहली बोआई निर्धारित समय से पूर्व, दूसरी निर्धारित समय से और तीसरी विलंब से होगी।

    इन तीनों का तुलनात्मक अध्ययन कर अलग-अलग दिन के तापमान की स्थिति का अध्ययन किया जाएगा। इसमें तापमान के दौरान गेहूं के भीतर होने वाले शारीरिक, जैव-रासायनिक एवं आणविक परिवर्तनों को प्रयोगशाला से समझने का प्रयास किया जाएगा ताकि पता चले कि तापमान बढ़ने पर फसल की फिजियोलाजी पर क्या प्रभाव होता है। क्या दाेनों के आकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आगे चल कर इन पर नियंत्रण किया जाएगा जिससे उत्तर प्रदेश में देरी से गेहूं की बोआई होने पर भी उसकी उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। उन्होंने कहा कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन की गति के अनुरूप ऐसी प्रजातियों का विकास भी किया जाएगा, जो उच्च तापमान को सहन करने में सक्षम हों, ताकि उत्पादन और गुणवत्ता दोनों सुरक्षित रहे।