Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Ram Mandir: सीता रसोई मंदिर की संपत्ति पर यूपी सरकार का स्वामित्व, कोर्ट ने दिया फैसला; ये था पूरा विवाद

    रामजन्मस्थान सीता रसोई मंदिर और इससे जुड़ी संपत्ति पर उप्र सरकार का स्वामित्व होगा। इसके लेकर दायर अपील पर अपर जिला जज प्रथम ने निर्णय दे दिया है। मंदिर की प्राचीन मूर्तियों को ध्वस्त करने के दौरान ही श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसे संरक्षण में ले लिया था।

    By Jagran NewsEdited By: Shubham SharmaUpdated: Mon, 23 Oct 2023 06:45 AM (IST)
    Hero Image
    सीता रसोई मंदिर की संपत्ति पर यूपी सरकार का स्वामित्व।

    जागरण संवाददाता, अयोध्या। रामजन्मस्थान सीता रसोई मंदिर और इससे जुड़ी संपत्ति पर उप्र सरकार का स्वामित्व होगा। इसके लेकर दायर अपील पर अपर जिला जज प्रथम ने निर्णय दे दिया है। अयोध्या में रामजन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण के क्रम में इस प्राचीन मंदिर का अस्तित्व तो समाप्त हो चुका है, लेकिन कई जिलों में मौजूद इसकी सैकड़ों एकड़ जमीन और मंदिर पर निर्णय का दूरगामी असर पड़ेगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ट्रस्ट ने लिया था संरक्षण में 

    मंदिर की प्राचीन मूर्तियों को ध्वस्त करने के दौरान ही श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसे संरक्षण में ले लिया था। वाद के एक पक्षकार धनराज यादव के अधिवक्ता श्रवण कुमार मिश्र के अनुसार, कोर्ट के निर्णय के बाद यहां का संपूर्ण प्रबंध सरकार के अधीन माना जाएगा। उत्तराधिकार और स्वामित्व के विवाद को लेकर अयोध्या के रामजन्मस्थान सीता रसोई मंदिर और भूमि के अधिग्रहण के अंतर्गत करीब एक करोड़ रुपये जमा हैं।

    यह धनराशि भी सरकार के पास ही रहेगी। मंदिर के बड़े भूभाग को मुकदमे के दौरान ही प्रापर्टी डीलरों ने खरीद कर बेच भी दिया है, जिसमें लखनऊ में बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय (बीबीडी यूनिवर्सिटी) से सटी करीब 200 बीघा जमीन भी बतायी गई है। यह जमीन खरीदने या भवन निर्माण कराने वालों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अयोध्या के विकास में अधिग्रहीत मंदिर की जमीन का मुआवजा भी अब फंस गया है।

    वसीयत को माना गया संदिग्ध

    सीता रसोई मंदिर की जमीन अयोध्या, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बाराबंकी, लखनऊ और अन्य जिलों में है। अपीलीय न्यायालय ने मंदिर के गैर विवादित साकेतवासी महंत हरिहरदास का उत्तराधिकारी किसी भी पक्षकार को नहीं माना है। महज्जरनामा एवं वसीयत को भी संदिग्ध माना गया है।

    अपीलीय न्यायालय ने निर्णय में इस बात का विशेष उल्लेख किया कि जन्मस्थान रामजानकी मंदिर (सीता रसोई) का संचालन रामानंदीय संप्रदाय की परंपरा से होता है। संप्रदाय में महंत की मृत्यु के बाद पक्षकारों को महज्जरनामा के आधार पर अधिकार नहीं दिया जा सकता। मातहत न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन के 2021 की उस डिक्री को भी निरस्त कर दिया गया है, जो रामसुंदर दास के पक्ष में की पारित की गई थी।

    ये था विवाद

    रामजन्मस्थान सीता रसोई मंदिर के मंहत हरिहरदास की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारियों को लेकर विवाद शुरू हुआ। 1990 में एक दावेदार महंत रामसुंदरदास ने पंजीकृत वसीयत के आधार पर स्वयं को उत्तराधिकारी बताते हुए महंत सुखराम दास के विरुद्ध सिविल जज सीनियर डिवीजन के न्यायालय में वाद दायर किया था।

    सुखरामदास ने महज्जरनामा के आधार पर खुद को मंदिर का महंत बताया था। अदालत ने 2021 में रामसुंदर दास के पक्ष में डिक्री कर दी थी। इसी दौरान सुखरामदास की मृत्यु हो गई। उनके उत्तराधिकारी के तौर पर दीनानाथ और धनराज यादव पक्षकार बनाए गए।

    यह भी पढ़ेंः Swamitva Yojana: उत्तर प्रदेश में बनेगा नया कानून, संपत्तियों के नामांतरण और बंटवारे के लिए लागू होगा नियम