आस्था के महासागर में अवधपुरी की लहरें शांत-शीतल, बालकराम के द्वार पर निरंतर उमड़ रहा जनसैलाब
Ayodhya News बालकराम के द्वार पर आस्था का महासागर उमड़ा है। इसमें देश-विदेश का जनप्रवाह है किंतु अवधपुरी की लहरें शांत-शीतल बनी हुई हैं। शताब्दियों की साध पूरी होने बाद भी प्रभु को जीभर निहारने की अभिलाषा में अयोध्यावासियों ने अपूर्व धैर्यशीलता का परिचय दिया है। यहां के जन-मन में दर्शन की आकांक्षा प्रबल है परंतु उन्हें इस बात भान है कि उनके राम कहीं नहीं जाने वाले।

महेन्द्र पाण्डेय, अयोध्या। बालकराम के द्वार पर आस्था का महासागर उमड़ा है। इसमें देश-विदेश का जनप्रवाह है, किंतु अवधपुरी की लहरें शांत-शीतल बनी हुई हैं। शताब्दियों की साध पूरी होने बाद भी प्रभु को जीभर निहारने की अभिलाषा में अयोध्यावासियों ने अपूर्व धैर्यशीलता का परिचय दिया है।
यहां के जन-मन में दर्शन की आकांक्षा प्रबल है, परंतु उन्हें इस बात भान है कि उनके राम कहीं नहीं जाने वाले। उन सभी ने अपनी चिर लालसा के ज्वार पर धीरज का बांध बनाया है, ताकि बाहर की जनधारा को सुखद-संतोषजनक दर्शनलाभ प्राप्त हो सके।
विदेशों से दर्शन को आ रहे श्रद्धालु
अपने नव्य, भव्य और दिव्य धाम में विराजे रामलला को निराहने की ललक मारीशस, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, लाओस सहित दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लोगों में भी उतनी ही है, जितनी कि भारतीयों में।
विदेशियों के साथ ही भारत के विभिन्न राज्यों से जनसमुद्र प्रभु की देहरी पर अनवरत हिलोर मार रहा है। प्रथम दिवस पांच लाख और द्वितीय दिवस तीन लाख से अधिक आस्थावान प्रभु के समक्ष नतमस्तक हो चुके हैं, किंतु इनमें अयोध्या के मूल निवासियों व आस-पास के जिलों के लोगों का प्रवाह बहुत कम है।
अवधपुरी में उल्लास
अवधपुरी का जन-मन इससे भी आह्लादित-पुलकित है कि अयोध्या में अभूतपूर्व उत्साह, उल्लास है। रामघाट के अरविंद शुक्ल कहते हैं कि हम सभी अयोध्या में रामनवमी, सावन झूला मेले में उल्लास के साक्षी बनते हैं। सदियों बाद यह सुखद सुअवसर आया है, भगवान श्रीराम लला निजधाम में शोभायमान-विराजमान हुए हैं।
उन्हें निकट से निहारने की तीव्र इच्छा हम सभी में है, परंतु हम चाहते हैं कि जो बाहर के लोग आए हैं वे आसानी से प्रभु का वंदन कर सकें। मेरी पत्नी व बच्चे नहीं मान रहे। वे कह रहे किसी भी तरह दर्शन करके आते हैं। मैंने उन्हें समझाया कि इतनी प्रतीक्षा की है, थोड़ी और सही। कुछ दिन बाद आस्था का ज्वार थोड़ा थम जाएग, फिर हम भी बालकराम को देखकर धन्य हो लेंगे।
यहीं के लक्ष्मीकांत मिश्र का परिवार भी प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के बाद दर्शन के लिए लालायित है, किंतु मिश्र भी भक्तों की भीड़ नियंत्रित होने तक धैर्यवान बने रहना चाहते हैं। वह कहते हैं कि आस्था का मेला 1990 जैसा है, परंतु इसके भाव में अंतर है। तब कारसेवकों को रोका जा रहा था, आज आस्था के वेग को नियंत्रित करने की चेष्टा की जा रही है। बाहरी लोग तो नहीं मान रहे, कम से कम तो धीरज रख सकते हैं।
गोरखपुर के वीरेंद्र तिवारी अब हनुमानगढ़ी के पास रहते हैं। वह कहते हैं कि हम सभी की आत्मा में अयोध्याजी का वास है। जब से भगवान के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा हुई है, रामनगरी के कण-कण में अप्रतिम उल्लास है। मैं भी आह्लादित और भावुक हूं। दर्शन की अकुलाहट से मन न माना। मैं प्रभु को निकट से निहार आया। परिवारीजन ने धैर्य दिखाया है। वे बालकराम की छवि के दर्शन करने आस्था का प्रवाह कम होने पर जाएंगे।
उल्लास से परिपूर्ण रामभक्तों में यहां के संतोष कुमार भी हैं। वह कहते हैं कि रामनगरी में जयश्रीराम के जयघोष के आगे अधिकारियों की अपील अनसुनी हो रही है। अब ऐसे वक्त में हम संयम नहीं दिखाएंगे तो प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ेगी। प्रभु राम हमारे हैं तो उनके दर्शन के लिए आए लोगों की सुविधा का दायित्व भी तो हमारा है। भगवान राम ने भी धैर्य का परिचय दिया था। उनके इस आदर्श का अनुकरण हम सभी को इस वक्त करना चाहिए।
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