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    जितना अलौकिक रूप उतनी उनकी दिव्य सज्जा; सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात से सजा बालरूप, पढ़ें मुकुट से लेकर पैजनियां की खासियत

    Updated: Tue, 23 Jan 2024 12:40 PM (IST)

    Ram Mandir News रामलला के विग्रह की ऊंचाई चार फीट तीन इंचविग्रह के आसन की ऊंचाई एक फीट छह इंच एक ओर बालों की लट का सूक्ष्म अंकन है दूसरी ओर मुकुटबालक के सहज प्रभामंडल की तरह सज्जितकानों में कुंडल मुक्ताहार बाजूबंद करधनमाथे पर पन्ना और हीरे का रामानंदीय तिलक आकुल-अभीप्सित भक्तों का ठिकाना प्रतिष्ठापित-चमत्कार के लिए अरुण योगीराज को देने होंगे शत-प्रतिशत।

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    बोलती आंखों के साथ व्यक्त होते रामलला

    डिजिटल डेस्क, अयोध्या। भगवान के मस्तक पर उनके पारंपरिक मंगल-तिलक को हीरे और माणिक्य से रचा गया है। भगवान के चरणों के नीचे जो कमल सुसज्जित है, उसके नीचे एक स्वर्णमाला सजाई गई है। रामलला चूंकि पांच वर्ष के बालक-रूप में विराजे हैं, इसलिए पारंपरिक ढंग से उनके सम्मुख चांदी से निर्मित खिलौनों में झुनझुना, हाथी, घोड़ा, ऊंट, खिलौना गाड़ी रखे गए हैं। भगवान के प्रभा-मंडल के ऊपर स्वर्ण का छत्र लगा है।

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    घुंघराले केशों के ऊपर मुकुट चमक रहा है। आस्था के अतिरक्त कला की दृष्टि से भी इसे देखना रोचक है। एक ओर प्रतिमा को जीवंतता देने वाली केशों की लट का सूक्ष्म अंकन है, दूसरी ओर मुकुट। यह किसी राजा के दर्प का परिचायक न होकर लोकरंजक और अपार संभावनायुक्त बालक के सहज प्रभामंडल की तरह सज्जित है।

    माथे पर पन्ना और हीरे का रामानंदीय तिलक, कानों में कुंडल, मुक्ताहार, बाजूबंद, करधन, पैजनिया, रेश्मी पीतांबरी आदि से सज्जित होकर अपार्थिव-अलौकिक रामलला भक्तों के और करीब प्रतीत होते हैं। भक्ति भी उन पर न्योछावर है।

    मुकुट या किरीट; यह उत्तर भारतीय परंपरा में स्वर्ण निर्मित है। इसमें माणिक्य, पन्ना और हीरों से अलंकरण किया गया है। मुकुट के ठीक मध्य में भगवान सूर्य अंकित हैं। मुकुट के दायीं ओर मोतियों की लड़ियां पिरोई गई हैं।

    कुंडल: कर्ण-आभूषण में मयूर आकृतियां बनी हैं और यह भी सोने, हीरे, माणिक्य और पन्ने से सुशोभित है।

    कंठा: गले में अर्द्धचंद्राकार रत्नों से जड़ित कंठा सुशोभित है, जिसमें मंगल का विधान रचते पुष्प अर्पित हैं और मध्य में सूर्यदेव बने हैं। सोने से बना हुआ यह कंठा हीरे, माणिक्य और पन्नों से जड़ा है।

    कौस्तुभमणि : इसे हृदय में धारण कराया गया है, जिसे एक बड़े माणिक्य और हीरों के अलंकरण से सजाया गया

    है। यह शास्त्र-विधान है कि भगवान विष्णु तथा उनके अवतार हृदय में कौस्तुभमणि धारण करते हैं।

    पदिक : यह कंठ से नीचे तथा नाभिकमल से ऊपर पहनाया गया हार होता है। यह पदिक पांच लड़ियों वाला हीरे और पन्ने का ऐसा पंचलड़ा है, जिसके नीचे एक बड़ा सा अलंकृत फलक लगाया गया है।

    वैजयंती या विजयमाला : यह भगवान को पहनाया जाने वाला तीसरा और सबसे लंबा और स्वर्ण निर्मित हार है, जिसमें कहीं-कहीं माणिक्य लगाए गए हैं, इसे विजय के प्रतीक के रूप में पहनाया जाता है, जिसमें वैष्णव परंपरा के समस्त मंगल-चिह्न सुदर्शन चक्र, पद्म पुष्प, शंख और मंगल-कलश दर्शाया गया है।

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    कमर में कांची या करधनी : करधनी रत्नजड़ित है। स्वर्ण से निर्मित करधनी में प्राकृतिक सुषमा का अंकन है। पवित्रता का बोध कराने वाली छोटी-छोटी पांच घंटियां भी इसमें लगायी गई है।

    भुजबंध या अंगद : दोनों भुजाओं में स्वर्ण और रत्नों से जड़ित भुजबंध पहनाये गए हैं।

    कंकण/कंगन : हाथों में रत्न जड़ित कंगन हैं। मुद्रिका : बाएं और दाएं दोनों हाथों की अंगुली रत्नजड़ित मुद्रिकाओं से सुशोभित हैं।

    पैरों में छड़ा व पैजनियां: यह सोने की है। भगवान के बाएं हाथ में स्वर्ण का धनुष है, जिनमें मोती, माणिक्य और पन्ने की लटकने लगी हैं, इसी तरह दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है। भगवान के गले में रंग-बिरंगे फूलों की आकृतियों वाली वनमाला धारण कराई गई है, जिसका निर्माण हस्तशिल्प के लिए समर्पित संस्था शिल्पमंजरी ने किया है।