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    रामलला के एक साल में 4 करोड़ लोगों ने किए दर्शन, कितने करोड़ का चढ़ावा? अयोध्या ने लखनऊ-नोएडा से भी ज्यादा दिया Tax

    Updated: Thu, 23 Jan 2025 04:14 PM (IST)

    Ram Mandir Ayodhya रामलला के एक साल पूरे होने पर अयोध्या में भक्तों का तांता लगा रहा। 4 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए और 200 करोड़ रुपये से अधिक का चढ़ावा चढ़ाया। अयोध्या ने लखनऊ और नोएडा से भी ज्यादा जीएसटी भरा। राम मंदिर के निर्माण से पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा मिला है। अयोध्या अब वैश्विक आध्यात्मिक केंद्र बनने की ओर अग्रसर है।

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    Ram Mandir Ayodhya: राम मंदिर अयोध्या की तस्वीर

    अम्बिका वाजपेयी, अयोध्या। (Ram Mandir Ayodhya) वह पौष शुक्ल पक्ष की द्वादशी थी और यह माघ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी.. प्रचलित काल गणना (अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) दोनों के मध्य 365 दिवस का अंतराल किंतु रामनगरी मानों उस कालखंड को ही जी रही है। उस आनंद के क्षण से निकलने को तैयार ही नहीं।

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    गणना करने वाले इस अंतराल में उमड़े आस्था के सागर को चार करोड़ श्रद्धालु और अर्पण राशि को सवा दो सौ करोड़ रुपये में बांधते रहें, लेकिन रामलला की देहरी पर उमड़ा उल्लास और भावों की अश्रुपूरित विह्वलता अवर्णनीय है। काल की सीमा से परे है। कुछ वैसे ही जैसे त्रेता युग में प्रभु के रामलला के रूप में अवतरण पर तुलसी को दिखी थी, ‘अवधपुरी सोहइ एहि भांती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥’

    22 जनवरी है बेहद खास

    भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए तो 22 जनवरी 2024 शंखनाद है सनातन संस्कृति की शक्ति की पुनर्स्थापना का। सांस्कृतिक परतंत्रता से मुक्ति का। आनंदकंद प्रभु राम के भक्त और रामनगरी इस आनंद से निकलना ही नहीं चाहते। प्रभु राम 500 वर्षों के सतत संघर्ष के बाद 22 जनवरी 2024 को अपने गर्भगृह में पुनः विराजे थे । इसी के साथ ही पुनर्प्रतिष्ठित हुआ सनातन धर्म का गौरव।

    श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने विक्रम संवत की तिथि के अनुसार इसी महीने 11 जनवरी को रामलला का महाभिषेक कर रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का एक वर्ष पूर्ण होने का स्मरण कराया और सनातन धर्म को मिला एक नया पर्व प्रतिष्ठा द्वादशी। यह पर्व पाना पौष माह का सौभाग्य कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि इससे पहले पूस की रात के अतिरिक्त इस माह के पास कुछ था भी तो नहीं।

    प्राण प्रतिष्ठा के एक वर्ष बाद महाकुंभ का संयोग

    मन में प्रश्न उठता है कि 144 वर्ष पर प्रयागराज में महाकुंभ से ठीक एक वर्ष पहले प्रभु राम का पुनर्प्रतिष्ठित होना क्या सिर्फ एक संयोग है अथवा दैवयोग। आस्थावानों के लिए तो यह रामजी की ही माया है। जिन्होंने अपनी पुनप्रतिष्ठा के लिए वह तिथि तय की, जिसके एक वर्ष की पूर्णता पर 144 वर्ष बाद ग्रह-योग और नक्षत्र के संयोग पर आयोजित होने वाले महाकुंभ का उद्घोष हो।

    आखिर प्रयाग के तट से ही तो भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की कथा प्रारंभ हुई थी । इसी के बाद तो राजकाज में रामराज का सूत्रपात हुआ।

    आज अयोध्या अपने आनंद से इसलिए नहीं निकलना चाहती क्योंकि अतीत की विवश्ता स्मरण करने योग्य नहीं। आसान नहीं था पांच सौ वर्षों तक राम की तरह मर्यादा में रहकर हर प्रश्न का उत्तर देना। टेंट में बैठे रामलला का दर्शन करते भक्त उन्हे उत्तर देते रहे, जो राम को एक काल्पनिक पात्र बताते थे। हर पर्व-त्योहार पर बूटों की खट-खट को सरयू स्नान करने वालों ने उत्तर दिया।

    नगरी को उदास होने का उलाहना देने वालों का उत्तर दीपोत्सव ने दिया। अयोध्या ही जानती है कि रामपथ, धर्मपथ और भक्तिपथ पाने के लिए उसे धार्मिक उन्माद और राजनीतिक तिरस्कार के अग्निपथ पर चलना पड़ा। उपेक्षा के अंधकार से विश्व की पहली सोलर सिटी बनने की यात्रा उतनी सुगम नहीं रही।

    15 हजार करोड़ का एक वर्ष में कारोबार

    राममंदिर से क्या रोजगार मिलेगा ? ऐसा पूछने वालों का उत्तर रामनगरी ने एक वर्ष में ही 15 हजार करोड़ व्यवसाय करके दिया। एक हजार से अधिक लोगों ने होम स्टे में पंजीकरण करके उत्तर दिया कि मंदिर से कैसे आजीविका मिलेगी। प्रतिदिन 25 क्विंटल से अधिक फूलमाला बेचने वालों उत्तर दिया कि आजीविका कैसे मिलेगी। निवेशकों ने दो लाख पचास हजार करोड़ के निवेश प्रस्ताव देकर उत्तर दिया कि रोजगार कैसे मिलेंगे।

    लखनऊ-नोएडा से ज्यादा अयोध्या ने भरा जीएसटी

    रामनगरी ने नोएडा और लखनऊ से ज्यादा जीएसटी भरकर उत्तर दिया कि अब अयोध्या विकास के पुष्पक विमान पर है। प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात लोकसभा चुनाव में भाजपा मिली पराजय ने भी रामनगरी को एक पीड़ा दी, क्योंकि लोगों ने अनर्गल प्रलाप किया। रामनगरी ने उसका भी उत्तर मर्यादा में रहकर दिया कि दलीय आस्था से किसी को आंकना उचित नहीं।

    प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात तो रामनगरी जैसे वैश्विक आंगन बन चुकी है। जाति-पांति, भाषा और सीमाएं रामपथ पर एकाकार होती दिखती हैं। यहां मिलती हैं इटली की एड्रियाना। जय सियाराम बोलकर बताती हैं कि कुंभ होकर आई हैं। कैसा अनुभव हैं? इस प्रश्न का केवल एक शब्द में उत्तर मिला.. स्पीचलेस।

    अकेले एड्रियाना जैसे भक्त ही नहीं मंदिर पर सवाल उठाने वाले भी स्पीचलेस (शब्दहीन) हैं। दर्शन करके निकले राजस्थान के मोहनलाल मीणा के साथ 22 लोगों का समूह है। माथे पर तिलक, हाथों में प्रसाद और चेहरे पर असीम संतोष। कुछ बोलना नहीं चाहते, हाथ जोड़कर कहते हैं जन्म हमार सुफल भा आजू। यहां से यह दल महाकुंभ जाएगा। वह अंगुली से बन रहे मंदिर की तरफ संकेत करके कहते हैं, जब पूरा बन जाएगा तक दोबारा आऊंगा।

    आज अयोध्या अपने आनंदमय क्षण में स्थिर हैं क्योंकि उसे भान है कि किस तरह राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्तर पर उसे अस्थिर करने की कुचेष्टाएं अतीत में हुई हैं। वह इस इस पल को जी लेना चाहती है।

    रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य डा. अनिल मिश्र कहते हैं

    एक वर्ष में रामनगरी ने हर उस प्रश्न का उत्तर दिया है, जो उसको लेकर उठे थे। 22 जनवरी 2024 से 22 जनवरी 2025 तक उमड़ी सनातन आस्था ने बता दिया है कि यतो धर्म: ततो जय:!

    अनवरत उमड़ रही आस्था को आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण के शब्दों में कहें तो पूरा देश रामलला के इस मंडप के नीचे एकाकार होना चाहता है। भूगोल इस मंडप में कालीन बिछाता है, इतिहास बंदनवार बांधता है। शास्त्र पहरेदारी करते हैं। देवत्व यहां बिखरे फूल समेट कर अपना मुकुट सजाता है और... क्या ! अभी बस इतना ही ..

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