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    आंदोलन के 'मुख्य स्तंभ' रहे, जब राम मंदिर बना तो भुला दिया गया योगदान; वेदांती के संघर्ष की कहानी

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 04:47 PM (IST)

    अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए वशिष्ठ पीठाधीश्वर डा. रामविलास दास वेदांती ने जीवन समर्पित कर दिया, लेकिन मंदिर बनने पर उनके योगदान को भुला दिया ...और पढ़ें

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    लवलेश कुमार मिश्र, अयोध्या। जन्मभूमि पर जिस राम मंदिर के निर्माण के लिए वशिष्ठ पीठाधीश्वर व पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती ने अपना संतत्व समर्पित कर दिया, लंबे संघर्ष के उपरांत जब उसके बनने की बेला आई तो उनके योगदान को लगभग भुला दिया गया।

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    भव्य राम मंदिर में रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर देश के प्रमुख साधु-संतों के साथ उन्होंने भी प्रतिभाग अवश्य किया, परंतु रामनगरी में रह कर भी वह मंदिर के प्रति सक्रिय नहीं रह गए थे। यद्यपि राम मंदिर के स्वर्ण शिखर पर 25 नवंबर को हुए ध्वजारोहण उत्सव में भी वह शामिल हुए थे, लेकिन सामान्य अतिथियों की भांति ही।

    सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निर्माण के पक्ष में जब नौ नवंबर 2019 को अपना निर्णय सुनाया और इसके आलोक में केंद्र सरकार ने श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया, तब भी उनके योगदान को याद नहींं रखा गया। तत्समय ड. रामविलास दास वेदांती ही मंदिर आंदोलन के ऐसे मुख्य स्तंभ रहे, जो जीवित थे।

    लगभग 12 वर्ष की आयु में संत बने डा. वेदांती मंदिर आंदोलन के सक्रिय सदस्यों में सम्मिलित रहे थे। वह श्रीरामजन्मभूमि मंदिर न्यास के सदस्य भी रहे। उन्होंने मंदिर आंदोलन के श्लाका पुरुष रामचंद्रदास परमहंस, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंहल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ के साथ पूरी सक्रियता से मंदिर निर्माण के लिए देश के विभिन्न शहरों में घूम-घूमकर अलख जगाई थी।

    वह 90 के दशक तक तो आंदोलन से जुड़े सभी प्रमुख कार्यक्रमों में सक्रिय रहे, परंतु वर्ष 2010 में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्णय के विरुद्ध जब राम मंदिर का प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, तब तक वह हाशिए पर चले गए।

    लंबी अदालती लड़ाई के उपरांत नवंबर 2019 में जब सुप्रीम निर्णय से जन्मभूमि पर मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ और पांच अगस्त 2020 को भूमि पूजन के बाद 22 जनवरी 2024 को मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई, तब भी वह सामान्य भक्त की भांति कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्हें मंदिर आंदोलन में दिए गए योगदान के नाते कभी याद नहीं रखा गया।

    राम मंदिर से जुड़े विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए प्रख्यात रहे डा. वेदांती अपनी उपेक्षा से व्यथित जरूर रहे, परंतु उन्होंने कभी मुखर होकर इसका प्रतिवाद नहीं किया।

    यही वजह रही कि जब-जब उन्हें राम मंदिर से जुड़े कार्यक्रमों में आमंत्रित किया गया, वह सम्मिलित अवश्य हुए। यह अलग बात है कि रामनगरी में रहते हुए भी उन्होंने स्वयं को राम मंदिर से दूर कर लिया था। हालांकि रामकथा के माध्यम से वह जीवन के आखिरी पड़ाव में भी ‘रामकाज’ के लिए समर्पित रहे।