Ram Mandir: रामलला के भोग के लिए कैसी है व्यवस्था? दो रसोइयों में तैयार होता है भोजन
अयोध्या में रामलला के बाल स्वरूप को प्रतिदिन आठ बार भोग अर्पित किया जाता है। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से प्रात:काल से शयनकाल तक मिष् ...और पढ़ें

लवलेश कुमार मिश्र/प्रवीण तिवारी, अयोध्या। राम मंदिर में पांच वर्ष के बाल स्वरूप में विराजमान रामलला के राग-भोग की दिव्य व्यवस्था है।श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से उन्हें प्रतिदिन आठ बार भोग अर्पित किया जाता है। प्रात:काल जागरण के बाद से शुरू होने वाला भोग का क्रम नियमित अंतराल पर रात्रि में शयनकाल तक चलता है।
भोग में भांति-भांति के मिष्ठान के साथ द्रव पदार्थ जैसे गर्म दूध, छाछ, दही, रबड़ी व भोजन में खीर-पूड़ी, दाल-चावल, कढ़ी और पौष्टिक सामग्री जैसे काजू, पिस्ता, बादाम, किशमिश आदि समर्पित किये जाते हैं। ऋतु परिवर्तन के साथ ही बालकराम का आहार भी बदल जाता है। इसे दो रसोईयों में तैयार कराया जाता है। दोनों रसोईयों में दो-दो भंडारी व एक-एक कोठारी की नियुक्ति है।
रामलला की सेवा में संलग्न अर्चकों के अनुसार भोर में आराध्य के जागरण के बाद मंगला आरती के पहले उन्हें पहली बार भोग लगता है। इसमें हल्का आहार जैसे बिना छिला फल व पेड़ा दिया जाता है। स्नान-श्रृंगार के बाद फिर फल व रबड़ी का भोग लगा कर सुबह साढ़े छह बजे श्रृंगार आरती की जाती है। प्रात: नौ बजे उन्हें बाल भोग में तहरी, पराठा, पोहा आदि का भोग लगता है।
अपराह्न 12 बजे की आरती से पूर्व राजभोग लगता है, इसमें पूड़ी, दो प्रकार की सब्जी, मीठा, कभी तस्मई तो कभी हलुवा अर्पित होता है। फिर पट बंद हो जाता है। एक बजे मंदिर खुलने के पहले रामलला को कभी ड्राई फ्रूट तो कभी पेड़ा अर्पित किया जाता है। अपराह्न चार बजे की आरती से पहले छठवीं बार भगवान को बालभोग अर्पित किया जाता है।
इसमें भी हल्का आहार ड्राईफ्रूट, पकौड़ी तो कभी पोहा अर्पित होता है। सायं सात बजे सांध्यकालीन आरती के पूर्व सातवीं बार भगवान को भोग लगा कर उनकी स्तुति होती है। रात्रि में साढ़े नौ बजे शयन आरती के पहले आठवीं बार कच्चा भोजन दाल, चावल रोटी, सब्जी, मीठा व केसरयुक्त दूध का भोग लगा कर शयन कराया जाता है।
रामलला के साथ ही राजा राम का भोग भी राजसी होता है। ट्रस्ट की ओर से आराध्य का भोजन रामजन्मभूमि परिसर के परकोटे के समीप निर्मित अन्नपूर्णा रसोई में तैयार कराया जाता है तो मिष्ठान मंदिर के अति निकट स्थित राम निवास मंदिर में बनता है। पर्व पर छप्पन भोग लगता है।
रामभक्त हनुमान जी को खूब भाती शुद्ध देसी घी की इमरती व रबड़ी
भगवान राम के अनन्य भक्त हनुमानजी की महिमा अपरंपार है। उनके भक्त हनुमानजी की प्रत्यक्ष कृपा की अनुभूति भी करते हैं। इसके कई संस्मरण हैं। नित्य लाखों भक्त रामलला के पहले हनुमानगढ़ी में जाकर माथा टेकते हैं। हनुमानजी के दर्शन बिना अयोध्या की धार्मिक यात्रा अधूरी मानी जाता है। नव्य भव्य मंदिर में विराजमान रामलला के निकट ही रामकोट टीले पर विश्वविख्यात हनुमानगढ़ी स्थित है।
हनुमानजी का भोग राग भी बिल्कुल उनके सरकार के जैसा ही है। भक्त दर्शन के साथ भावपूर्वक देशी घी से बने लड्डू नित्य अर्पित करते हैं तो उनके भोग राग की विशेष व्यवस्था है। राजसी वैभव संग मर्यादित तरीके से हनुमानजी का श्रृंगार होता है। नित्य सुबह ही घी की बनी इमरती व रबड़ी का भोग लगता है।
मेवा, फल व पान चढ़ाया जाता है। जलखरी प्रसाद व विशेष अवसर पर मालपुआ भोग अर्पित होता है। वस्तुत: हनुमानगढ़ी का संचालन पंचायती व्यवस्था में होता है। चार पट्टियाें सागरिया, बसंतिया, उज्जैनिया और हरिद्वारी के प्रेरक समन्वय से यहां व्यवस्था का संचालन होता है। इन पट्टियाें के महंत मिल कर गद्दीनशीन चुनते हैं। यहां भोग में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। प्रसाद देश घी का ही बनता है। कड़ाके सर्दी हो या गर्मी हनुमान जी के पुजारी भोर में ही मंदिर पहुंचते हैं।
पूजन क्रम मेें नित्य पुजारी हनुमानजी को भाेर में जगाते हैं। मंगला आरती होती है। फिर श्रृंगार आरती के बाद, शीत ऋतु में साढ़े पांच बजे और ग्रीष्म ऋतु में पांच बजे एक किलो देसी घी की इमरती व रबड़ी का भोग लगता है। मध्याह्न के समय राजभोग में 36 किलो आटे की पूड़ी, उसी मात्रा में दो प्रकार की सब्जी, एक किलो दही और पान अर्पित किया जाता है।
मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से सूजी का हलवा अर्पित होता है। अखाड़े के पुजारी रमेश दास बताते हैं कि यहां राजसी भोग का अर्पण होता है। बेसन का लड्डू यहां का प्रिय प्रसाद है। प्रतिदिन तीसरे पहर हनुमानजी को जगाने के बाद, उन्हें जलखरी (देसी घी की पकौड़ी और मीठा खुरमा) भोग लगाया जाता है।
शनिवार को चबैना (भुना चूड़ा, चना, मूंगफली) के भोग का विधान है। संध्या आरती के बाद पहले विशेष पूजन और भोग लगता है। यह व्यवस्था गुप्त होती है। मेवा के साथ ही हनुमानजी को राजभोग में तस्मई का भोग लगता है। उधर श्रृंगार के पहले हनुमानजी का गाय का दूध, सरयू जल व इत्र मिश्रित द्रव्य से अभिषेक किया जाता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।