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    बीमा कंपनी की मनमानी- आंशिक भुगतान कर शेष राशि पर उम्र का बहाना, अदालत ने ब्याज सहित दिलाई क्षतिपूर्ति

    स्थायी लोक अदालत ने बीमा कंपनी की मनमानी को नकारते हुए पीड़िता को पूरा हर्जाना देने का आदेश दिया है। पीएनबी मेट लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को दो लाख 47 हजार 742 रुपये ब्याज सहित देने का फैसला सुनाया गया। कंपनी ने आंशिक भुगतान कर शेष राशि पर गलत उम्र का बहाना बनाया था। अदालत ने क्लेम के बदले ली गई राशि को भी ब्याज सहित वापस करने का आदेश दिया।

    By Rajesh Kumar Srivastava Edited By: Shivam Yadav Updated: Wed, 27 Aug 2025 04:56 PM (IST)
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    बीमा कंपनी की मनमानी- आंशिक भुगतान कर शेष राशि पर उम्र का बहाना।

    जागरण संवाददाता, अयोध्या। स्थायी लोक अदालत के पीठासीन अधिकारी ने बीमा कंपनी की मनमानी और टालमटोल की नीति को नकारते हुए पीड़िता को उसके पूरे हक का धन अदा करने का फैसला सुनाया है। 

    पीठासीन अधिकारी मनोज कुमार तिवारी व सदस्यगण राजेश कुमार शुक्ल व अजीत सिंह ने पीड़िता काे वाद व्यय दस हजार रुपये सहित बीमित शेष राशि दो लाख 47 हजार 742 रुपये तथा इस पर याचिका दायर करने की तिथि से नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करने का आदेश दिया है। 

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    न्यायालय ने यह आदेश पीएनबी मेट लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को दिया है। इसी के साथ पुराने क्लेम के निस्तारण के बदले एक लाख रुपये लेकर दूसरी पॉलिसी जारी करने के लिए धन तथा उस पर 16 अक्टूबर 2017 से अधिकतम एफडी की ब्याज दर के साथ अदा करने का आदेश दिया है। यह भुगतान दो माह के भीतर ही करना होगा।

    मामला जिले के खजुरहट क्षेत्र का है। पीड़िता आशा देवी ने अपनी मां धनपति देवी के निधन पर पीएनबी मेटलाइफ इंश्योरेंस कंपनी के समक्ष क्लेम आवेदन किया था। धनपति देवी ने पीएनबी मेटलाइफ इंश्योरेंस से 4.20 लाख रुपये की बीमा पॉलिसी ली थी। उनकी मृत्यु 2 अगस्त 2017 को हो गई थी। उनके निधन के बाद बीमा कंपनी ने आशा देवी को मात्र एक लाख 72 हजार 257 रुपये का भुगतान किया और शेष बीमा धनराशि देने से टालमटोल करने लगी। 

    इतना ही नहीं, बीमा कंपनी ने चालाकी दिखाते हुए आशा देवी के पुत्र विवेक की एक लाख रुपये की नई बीमा पॉलिसी जारी करने की बात कह कर ले लिए। बीमा कंपनी ने न तो नई पॉलिसी जारी की और न ही एक लाख रुपये वापस किए।

    आंशिक भुगतान कर शेष पर लगाया उम्र का अड़ंगा

    बीमा कंपनी ने आवेदन पर एक लाख 72 हजार 257 रुपये का भुगतान तो कर दिया परंतु शेष की अदायगी पर गलत उम्र दिखाने का अड़ंगा लगाते हुए अदायगी से इन्कार कर दिया। 

    बीमा कंपनी की मनमानी को देखते हुए पीड़िता आशा देवी ने स्थायी लोक अदालत की शरण ली। न्यायालय ने बीमा कंपनी की इस मनमानी को नहीं माना और पीड़िता को क्षतिपूर्ति की अदायगी का आदेश दिया।