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    अयोध्या में BJP की हार का राम मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या पर कितना पड़ा असर? सबकुछ हो गया क्लियर

    Updated: Fri, 14 Jun 2024 05:20 PM (IST)

    अयोध्या में भाजपा की हार का राम मंदिर के भक्तों की संख्या पर कोई असर नहीं पड़ा है। रामपथ से लेकर धर्म पथ-भक्ति पथ राम की पैड़ी व सरयू के घाटों पर दिनभ ...और पढ़ें

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    अयोध्या में BJP की हार का राम मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या पर कितना पड़ा असर? सबकुछ हो गया क्लियर

    प्रहलाद तिवारी, अयोध्या। देश-दुनिया में अयोध्या एक बार फिर चर्चा में हैं। रामनगरी को समेटे फैजाबाद संसदीय क्षेत्र में भाजपा की हार ने हर किसी को अचरज में जरूर डाल दिया, लेकिन राम मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या में तनिक भी कमी नहीं आई। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के चार माह बाद लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से लगातार अयोध्यावासियों को तीखी टिप्पणियों व उलाहनाें का सामना करना पड़ रहा है।

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    इंटरनेट मीडिया पर कोई भड़ास निकाल रहा है तो कोई टेलीविजन पर तर्क दे रहा है। अयोध्यावासी अपने अपमान से आहत भी हैं और मुंहतोड़ उत्तर भी देते हैं लेकिन इस क्षोभ के मध्य आज भी रामभक्तों की आस्था भारी है। न तो भक्तों की संख्या कम हुई और न ही उनका नियमित आगमन। रामनगरी में आस्था का सैलाब प्रतिदिन उमड़ रहा है। प्रतिदिन औसतन लगभग 85 हजार से एक लाख की संख्या में श्रद्धालु रामनगरी पहुंच रहे हैं।

    रामपथ से लेकर धर्म पथ-भक्ति पथ, राम की पैड़ी व सरयू के घाटों पर दिनभर कड़ी धूप के बावजूद श्रद्धालु पूजन अर्चन करते देखे जा सकते हैं। भक्ति, उत्साह व सेवा के संगम को रामनगरी उसी प्रकार शिराेधार्य कर रही है, जैसे चार जून को आए लोकसभा चुनाव परिणाम से पहले करती थी। इसकी पुष्टि जेठ माह की तपिश भरी दुपहरी भी करती है। राममंदिर में सुबह से भक्तों की लाइन लग जाती है।

    घंटो लाइन में लगकर दर्शन कर रहे श्रद्धालु

    दो से ढाई घंटे तक लाइन में लगकर श्रद्धालु दर्शन कर रहे हैं। रामजन्मभूमि प्रवेश द्वार पर जय सियाराम, जय श्रीराम के होते उद्घोष में इंटरनेट मीडिया पर गढ़ी जा रही सियासी कहानियां गुम होती नजर आ रही हैं। बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी पर भक्त ही भक्त नजर आते हैं। उत्साह के साथ जय श्रीराम का जयकारा लगा रहे छत्तीसगढ़ के रोहित द्विवेदी अपने परिवार के साथ रामलला के दर्शन करने आए हैं। बातचीत शुरू होते ही वह बोलते हैं कि आस्था अलग है और राजनीति अलग। दोनों को जोड़ा नहीं जा सकता है।

    रामजन्म भूमि पथ पर दर्शन कर वापस लौट रहे राजस्थान के रवींद्र शेखावत व किशोरी लाल मीणा कहते हैं कि श्रीराम को किसी राजनीतिक दल से जोड़ कर नहीं देख सकते हैं। भगवान श्रीराम राष्ट्र हैं, आस्था और श्रद्धा हैं। वह राष्ट्रीय एकता और समरसता के प्रतीक हैं। लोकतंत्र में हर राजनीतिक दल अपने मतदाताओं से अपेक्षा जरूर करता है, लेकिन मतदाता भी राजनीतिक दलों के फैसलों को अपनी कसौटी पर कसते हैं।