Ayodhya : जातियों को राजनीति के चश्मे से देखने वालों को अयोध्या के ये मंदिर दे रहे बड़ा संदेश
Ayodhya: जातियों को राजनीति के चश्मे से देखने वालों को रामनगरी अयोध्या के जातीय मंदिर बड़ा संदेश देते हैं। ये मंदिर विभिन्न जातियों के हैं और इनके गर्भगृह में विराजमान हैं ''सबके राम''। यहां उनकी ही आराधना-उपासना की जाती है।

जियाना के राम-जानकी खटिक समाज पंचायती मंदिर में प्रतिष्ठित हैं श्रीराम के साथ माता सीता, लक्ष्मण जी और हनुमान जी के विग्रह: जागरण
महेन्द्र पाण्डेय, जागरण, अयोध्या : राजनीतिक दल जाति-समुदाय के समीकरण पर चलते हैं। किसी के लिए पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) महत्वपूर्ण हैं, किसी के लिए अगड़ी जातियां तो कोई मुस्लिम यादव (एमवाइ) को साध रहा है।
जातियों को राजनीति के चश्मे से देखने वालों को रामनगरी अयोध्या के जातीय मंदिर बड़ा संदेश देते हैं। ये मंदिर विभिन्न जातियों के हैं और इनके गर्भगृह में विराजमान हैं ''सबके राम''। यहां उनकी ही आराधना-उपासना की जाती है।
श्रीराम अयोध्या के कण-कण में व्याप्त हैं और श्रीराम के रोम-रोम में अयोध्या बसी है। श्रीराम नगरी जितनी पौराणिक है, इसमें उतनी ही विशेषताओं और विविधताओं का संगम है। रामनगरी से हिंदू, बौद्ध, सिख, मुस्लिम सभी का किसी न किसी तरह इससे नाता अवश्य है। अयोध्या में यूं तो चार हजार से अधिक मंदिर हैं। इनमें में 37 जातीय मंदिर भी हैं। ये मंदिर 18वीं और 19वीं शताब्दी के बीच बनाए गए हैं। अधिकतर मंदिरों के पुजारी, व्यवस्थापक या फिर सेवादार उसी जाति के हैं, जिनके ये मंदिर हैं।
जैसे अयोध्या के अन्य मंदिरों में भगवान राम की आराधना नियम-धर्म से की जाती है, वैसी ही परंपरा टेढ़ीबाजार के श्री निषाद वंश प्राचीन पंचायती मंदिर में निभाई जाती है। वर्ष 1917 में बने इस मंदिर की देखभाल निषाद समाज की समिति करती है। यहां के पुजारी भी निषाद समाज के अरुण दास हैं। अरुण ने बताया कि इस मंदिर में भी श्रीराम और जानकी जी के साथ लक्ष्मण जी और हनुमान जी के विग्रह स्थापित हैं। नियमित भगवान की आरती-पूजन के साथ भोग लगाया जाता है।
टेढ़ी बाजार में ही एक और जातीय आस्था का दरबार है- राम जानकी मुराव पंचायती मंदिर। सवा सौ वर्ष से अधिक पुराने इस मंदिर में चार दशकों से उद्धव दास अर्चक की भूमिका निभा रहे हैं। उद्धव मौर्य समाज ही से हैं। वह कहते हैं कि यह मंदिर भले ही मुरावों का है, लेकिन भगवान तो जितने आपके हैं, उतने ही हमारे हैं।
श्रीराम मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण की प्रतीक्षा को ऐतिहासिक बताते हुए वह कहते हैं कि यह हमारे प्रभु की कृपा है और विश्व के इतिहास का पहला उदाहरण भी, जब आस्था के किसी केंद्र को पांच सौ वर्षों बाद पूरे सम्मान से वापस प्राप्त किया गया है। हमारी जितनी श्रद्धा श्रीराम लला के मंदिर के प्रति है, उतनी ही मुराव समाज के इस मंदिर के प्रति भी, क्योंकि दोनों जगह एक ही पुरुषोत्तम के विग्रह प्रतिष्ठित हैं।
कजियाना के राम-जानकी खटिक समाज पंचायती मंदिर में भी श्रीराम के साथ माता सीता, लक्ष्मण जी और हनुमान जी के विग्रह विराजमान हैं। उनकी नित्य अर्चना की जाती है। यह मंदिर एक सदी से अधिक पुराना है। 1965 में इसके गर्भगृह का जीर्णाेद्धार किया गया है। पुजारी परिवार के अंश कहते हैं, जाति-पांति और ऊंच-नीच से दूर श्रीराम सबके अपने हैं। फिर हम क्यों भेद करें।
जातीय मंदिरों में गोकुल भवन के पास जायसवाल समाज का मंदिर भी शामिल है। श्रीराम मंदिर के गेट नंबर 11 के सामने प्रजापति पंचायती मंदिर, राजघाट व झुनकी घाट के मांझी मंदिर, दोराही कुआं के निषाद मंदिर के गर्भगृह में भी श्रीराम के ही विग्रह पूजित हैं। इनके साथ बरई, कुर्मी, बढ़ई, धोबी जैसी जातियों के भी मंदिर जातीय समरसता के प्रतीक हैं, जहां के आराध्य सबके राम हैं। जातीय मंदिरों में केवल एक यादव मंदिर ही है, जहां राधा कृष्ण की आराधना की जाती है।

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