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    अयोध्या राम मंदिर- आंदोलन से ध्वजारोहण तक अटूट संघर्ष गाथा

    By Rama Sharan Awasthi Edited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Mon, 24 Nov 2025 03:21 PM (IST)

    Ayodhya Ram Mandir: राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन का विस्तार धीरे-धीरे जनभावना में ऐसा समा गया कि यह व्यक्तिगत धार्मिक मांग भर न रहकर पूरे समाज की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक बन गया। संतों, सामाजिक संगठनों और आम भक्तों की सहभागिता ने इसे राष्ट्रव्यापी स्वरूप दिया।

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    अयोध्या: राम मंदिर


    अम्बिका वाजपेयी, जागरण, अयोध्या : अयोध्या का राम मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि करोड़ों सनातनधर्मियों की आस्था, संघर्ष, कारसेवकों के बलिदान, न्याय और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की वह कथा है, जिसने लगभग पांच दशकों तक देश की राजनीति, समाज और जनभावनाओं को प्रभावित किया।

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    यह यात्रा 16वीं शताब्दी में मंदिर के ध्वंस से शुरू होकर 2024 के भव्य राम मंदिर शिल्प तक पहुंची और 2025 में ध्वजारोहण के साथ पूर्णता की ओर बढ़ी। इस लंबी यात्रा में संघर्ष, आंदोलन, न्यायिक लड़ाई और करोड़ों भक्तों का धैर्य शामिल रहा। यह यात्रा न केवल आंदोलन का वर्णन करती है, बल्कि देश की सांस्कृतिक स्मृति में स्थायी स्थान भी बनाती है। यह गाथा संघर्ष, अदालत और आस्था का संयुक्त दस्तावेज है।

    राम जन्मभूमि को लेकर आंदोलन का विस्तार धीरे-धीरे जनभावना में ऐसा समा गया कि यह व्यक्तिगत धार्मिक मांग भर न रहकर पूरे समाज की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक बन गया। संतों, सामाजिक संगठनों और आम भक्तों की सहभागिता ने इसे राष्ट्रव्यापी स्वरूप दिया। जन्मभूमि से जुड़ा मामला अंततः न्यायालय की सतर्क प्रक्रिया से गुजरा।

    लंबी सुनवाई, धाराप्रवाह बहस और गहन ऐतिहासिक–पुरातात्विक विश्लेषण के बाद वह रास्ता खुला जो संघर्ष को समाधान तक ले गया। अंत में न्याय ने वही स्वीकार किया, जिसे करोड़ों लोगों ने सदियों से अपनी आस्था के रूप में जिया था कि रामलला वहीं विराजमान हों, जहां भक्त उन्हें जन्मा मानते आए थे। यह सनातन परंपरा की उस शक्ति का उदाहरण था जो शांतिपूर्ण धैर्य के साथ सत्य की प्रतीक्षा करती है।
    प्रक्रिया केवल स्थापत्य कला
    भूमिपूजन से लेकर गर्भगृह, मंडप, शिखर और परिक्रमा के निर्माण तक यह प्रक्रिया केवल स्थापत्य कला नहीं थी। यह भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का उत्सव थी। रामलला के नए मंदिर में विराजमान होने के साथ ही अयोध्या में ऐसा दृश्य बना, जिसे युगों की प्रतीक्षा के बाद पूरा हुआ स्वप्न कहा जा सकता है। प्राणप्रतिष्ठा के भावुक पल ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह मंदिर केवल ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा में रचे-बसे धर्म का पुनर्प्राणन है। मुख्य शिखर पर भगवा ध्वज का आरोहण मंदिर की पूर्णता का संकेत ही नहीं, बल्कि वह घोषणा है कि सनातन धर्म की परंपराएं आज भी उतनी ही जीवित हैं जितनी रामायण के काल में थीं। ध्वज वह प्रतीक बन गया जिसने यह संदेश दिया कि भारत की सभ्यता किसी बाहरी चुनौती से दबती नहीं, वह संघर्ष करती है, पुनर्जीवित होती है और अंत में पहले से अधिक उज्ज्वल होकर खड़ी रहती है। आज अयोध्या केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि विश्वभर में सनातन संस्कृति का केंद्र बनती जा रही है। नए घाट, धर्मपथ, रामायण संग्रहालय, भक्तिपथ, उन्नत सुविधाएं और मंदिर की भव्यता ने इसे वैश्विक तीर्थ बना दिया है। यह परिवर्तन केवल आधारभूत ढाँचे का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मविश्वास का प्रतीक है।
    आस्था से बड़ा कोई बल नहीं
    राम मंदिर की यह यात्रा बताती है कि आस्था से बड़ा कोई बल नहीं, सत्य से दीर्घ कोई परंपरा नहीं और धर्म से दृढ़ कोई संस्कृति नहीं है। मंदिर का निर्माण, प्राणप्रतिष्ठा और ध्वजारोहण, इन तीनों ने मिलकर सनातन धर्म की उस निरंतरता को फिर स्थापित किया है जिसे समय ने चुनौती दी थी, लेकिन कभी पराजित नहीं कर पाया। अयोध्या ने एक बार फिर घोषणा की है कि भारत की आत्मा सनातन है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्मारक नहीं, बल्कि उन करोड़ों सनातनधर्मियों की विजय का प्रतीक है, जिन्होंने धैर्य, संयम और विश्वास के साथ यह यात्रा पूरी की। शताब्दियों से चली आ रही एक सांस्कृतिक कल्पना अब मूर्त रूप लेकर भारत को उसके मूल स्वरूप की ओर लौटाती दिख रही है। इसके लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को श्रेय देना चाहिए, जिसने इसे अपने घोषणापत्र का अंग बनाकर मूर्त रूप दिया।

    ऐतिहासिक तथ्य

    1528 – बाबर के सेनापति मीर बाकी ने राम जन्मभूमि पर मस्जिद का निर्माण कराया।
    1853–1857 – स्थल को लेकर प्रथम संघर्ष, विवादित परिसर में पूजा–अर्चना की मांग तेज
    1859 – ब्रिटिश शासन ने विवादित स्थल पर रेलिंग लगाकर हिंदू और मुस्लिम क्षेत्र अलग किए।

    आधुनिक मंदिर आंदोलन की शुरुआत

    1949 22–23 दिसंबर – विवादित ढांचे में रामलला के प्राकट़य के बाद प्रशासन पूजा–अर्चना जारी रहने देता है।
    1950–1961 – हिंदू पक्ष की ओर से पूजा के अधिकार और स्थल के स्वामित्व के लिए कई वाद दायर।
    1984 – विश्व हिंदू परिषद ने राम जन्मभूमि संघर्ष समिति गठित की। इसी वर्ष मंदिर आंदोलन को व्यापक रूप मिला।
    एक फरवरी 1986 – जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया।
    1989 – शिलान्यास की अनुमति; पहली शिला पूजन और शिलारोपण कार्य आरंभ।
    1990 – लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा ने आंदोलन को राष्ट्रीय रूप दिया।
    30 अक्टूबर 1990: अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी, जिसमें कुछ लोगों की जान गई
    02 नवंबर 1990: हजारों कारसेवक अयोध्या पहुंचे, जहां उन पर फिर से गोलीबारी की गई, जिससे कई कारसेवकों की मौत हो गई।
    6 दिसंबर 1992 - विवादित ढांचा कारसेवकों द्वारा ढहा दिया गया। मामला पूरी तरह न्यायालय के हाथ में चला गया।
    2002 – इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्थल पर एएसआई सर्वे का आदेश दिया।
    2003 – एएसआइ ने रिपोर्ट दी कि संरचना के नीचे विशाल हिंदू मंदिर के अवशेष मौजूद थे।
    30 सितंबर 2010 – इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला: तीन हिस्सों में भूमि विभाजन; परंतु यह निर्णय किसी पक्ष द्वारा पूर्ण स्वीकार नहीं किया गया। इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा।
    6 अगस्त 2019 – सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिदिन सुनवाई शुरू।
    16 अक्टूबर 2019 – सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित।
    9 नवंबर 2019 – सुप्रीम कोर्ट के सर्वसम्मति से ऐतिहासिक निर्णय में विवादित 2.77 एकड़ भूमि हिंदू पक्ष को दी गई। मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में पांच एकड़ भूमि।
    पांच अगस्त 2020 – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भूमिपूजन और शिलान्यास किया।
    22 जनवरी 2024 – रामलला के विग्रह की प्राणप्रतिष्ठा
    पांच जून 2025 -राम मंदिर में राम दरबार तथा पूरक मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठा
    25 नवंबर 2025 - राममंदिर के मुख्य शिखर पर ध्वजारोहण