Ayodhya News : अयोध्या में नसबंदी के बावजूद जन्मी बच्ची, लोक अदालत ने स्वास्थ्य विभाग पर लगाया पांच लाख का जुर्माना
Ayodhya Ajab-Gajab News विभाग के दावों के अनुसार आपरेशन सफल था और निर्देश कार्ड नसबंदी प्रमाणपत्र महिला नसबंदी डिस्चार्ज एवं फालोअप कार्ड समेत कई प्रमाणपत्र भी जारी कर दिये गये। आपरेशन के कुछ माह बाद महिला गर्भवती हो गई और पांच दिसंबर 2018 को उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया।
संवाद सूत्र, जागरण अयोध्या : महिला की नसबंदी में लापरवाही के मामले में स्थायी लोक अदालत ने निर्णय पारित करते हुए मुख्य चिकित्साधिकारी, उप चिकित्साधिकारी महिला सीएचसी मिल्कीपुर तथा महानिदेशक परिवार कल्याण महानिदेशालय के विरुद्ध पांच लाख रुपये की क्षतिपूर्ति पीड़ित महिला को अदा करने का आदेश दिया है। पीठासीन अधिकारी मनोज कुमार तिवारी, सदस्यगण राजेश कुमार शुक्ल व अजीत सिंह की पीठ ने आदेश दिया है कि उक्त धनराशि दो माह के अंदर सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा कर दी जाए। मामला सीएचसी मिल्कीपुर से जुड़ा है।
न्यायालय में दायर परिवाद के अनुसार मिल्कीपुर तहसील के मितौरा गांव की महिला की विवाहोपरांत चार संतानें थीं। बच्चों की इच्छा न करते हुए महिला ने 21 दिसंबर 2017 को सीएचसी मिल्कीपुर में लेप्रोस्कोपिक विधि से नसबंदी आपरेशन कराया। विभाग के दावों के अनुसार आपरेशन सफल था और निर्देश कार्ड, नसबंदी प्रमाणपत्र, महिला नसबंदी डिस्चार्ज एवं फालोअप कार्ड समेत कई प्रमाणपत्र भी जारी कर दिये गये। आपरेशन के कुछ माह बाद महिला गर्भवती हो गई और पांच दिसंबर 2018 को उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया।
अदालत में गुहार, विभाग ने नहीं दिया समाधान
आपरेशन विफल होने के बाद महिला व उनके पति ने कई बार स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई। कोई कार्रवाई न होती देख स्थायी लोक अदालत का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने विभाग से जवाब मांगा, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि नसबंदी आपरेशन विफल रहा। न्यायालय ने पक्षों के मध्य सुलह-समझौता भी कराने का प्रयास किया, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की घोर लापरवाही के चलते संधि वार्ता में कोई उपस्थित नहीं हुआ। लापरवाही से महिला की जिंदगी पर असर पड़ा। पीड़िता ने अपने परिवाद पत्र में कहा कि नसबंदी के पहले उनकी चार संतानें थीं। आपरेशन की असफलता के बाद एक और संतान का जन्म हो गया। इससे मानसिक व आर्थिक तनाव बढ़ गया।
अदालत ने माना विभाग की गंभीर लापरवाही
अध्यक्ष मनोज कुमार तिवारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि स्वास्थ्य विभाग के डाक्टरों ने अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से नहीं निभाई। नसबंदी आपरेशन की विफलता से महिला और उसके परिवार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। महिला को न केवल मानसिक और शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ी, बल्कि बेटी के भविष्य को लेकर आर्थिक संकट भी बढ़ गया। मुकदमे की पैरवी में भी विभाग की लापरवाही को लेकर न्यायालय ने महानिदेशक से कई बार पत्राचार भी किया। न्यायालय के पत्र से मची खलबली पर महानिदेशक ने पाया कि नसबंदी आपरेशन की विफलता के कुल 12 वाद विचाराधीन हैं।
स्थायी लोक अदालत का आदेश
आपरेशन की विफलता से उत्पन्न संतान की पढ़ाई-लिखाई, परवरिश, शादी-विवाह आदि के लिए विपक्षीगणों को चार लाख रुपये, मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए एक लाख रुपये तथा मुकदमे के खर्च के रूप में दस हजार रुपये की अदायगी करनी होगी। उक्त धनराशि दो माह के भीतर संतान के जन्म होने के दिन से सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ अदा करनी होगी। इसी के साथ पीड़िता को निर्देशित किया गया है कि वह चार लाख रुपये की धनराशि बेटी के वयस्क होने तक फिक्स कर दे। शेष धनराशि से बच्ची का पालन-पोषण होगा। उक्त धनराशि की अदायगी की विफलता पर ब्याज की धनराशि की गणना चक्रवृद्धि ब्याज के साथ करनी होगी।
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