Pran Pratishtha Part 2: फिर से सज रही है राम की नगरी, पांच जून को रामदरबार और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा के साथ मिलेगा अंतिम स्पर्श
अयोध्या में राम मंदिर के साथ एक सांस्कृतिक उपनगरी का निर्माण हो रहा है। 2.7 एकड़ में भव्य राम मंदिर है और चारों ओर लाल बलुए पत्थर का परकोटा है। परकोटा में मुख्य मंदिर के पूरक मंदिर हैं। 5 जून को राम दरबार की स्थापना होगी और परकोटा में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित की जाएंगी। यह परिसर राष्ट्रीय एकता और समाज निर्माण में भूमिका निभाएगा।

रघुवरशरण, अयोध्या। राम मंदिर के साथ सांस्कृतिक उपनगरी भी आकार ले रही है। इसमें स्थापत्य के शानदार उदाहरण के रूप में 2.7 एकड़ का भव्य-दिव्य राम मंदिर है ही। साथ ही आठ सौ मीटर के आयतन में राम मंदिर की ही तरह लाल बलुए पत्थर का परकोटा है और इस परकोटा में मुख्य मंदिर के पूरक मंदिरों की मनोहारी श्रृंखला है।
मुख्य मंदिर के 161 फीट ऊंचे मुख्य शिखर के समानांतर आकाश की ओर उन्मुख अन्यान्य शिखर और मुख्य मंदिर की ही तरह लाल बलुए पत्थर की आभा-प्रभा एवं नागर शैली वाले पूरक मंदिर स्थापत्य के अपूर्व-अप्रतिम उदाहरण की तरह प्रस्तुत होते हैं।
यद्यपि अपनी मुख्य भावना के अनुरूप यह परकोटा स्थापत्य के साथ आस्था का भी अप्रतिम उदाहरण है। मुख्य मंदिर यानी अपनी जन्मभूमि पर नवनिर्मित मंदिर के भूतल में कोटि-कोटि भक्तों के आराध्य रामलला तो पहले से ही प्रतिष्ठित हैं, अब आगामी पांच जून को इसी मंदिर के प्रथम तल पर श्रीराम सहित माता सीता, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न एवं हनुमानजी से युक्त राम दरबार की प्रतिमा प्रतिष्ठित होगी।
परकोटा के ईशानकोण पर श्रीराम के इष्ट भगवान शिव के नर्वदेश्वर स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा शनिवार को ही प्रस्तावित है। जबकि रामदरबार की तरह पांच जून को प्राण प्रतिष्ठा के साथ परकोटा के मंदिर अन्यान्य वैदिक एवं त्रेतायुगीन देवी-देवताओं से अनुप्राणित हो उठेंगे।
परकोटा आग्नेय कोण पर विघ्न विनाशक, दक्षिणी भुजा पर श्रीराम के अति प्रिय-परम भक्त बजरंगबली, नैऋत्य कोण पर श्रीराम के वंश का प्रवर्तन करने वाले भगवान भास्कर, वायव्य कोण पर मां दुर्गा एवं उत्तरी भुजा पर अन्नपूर्णा माता की प्रतिष्ठा में अब गिनती के दिन ही शेष रह गए हैं।
रामजन्मभूमि परिसर के केंद्रीय प्रभाग के रूप में परकोटा निश्चित रूप से आकर्षण के केंद्र में होगा, किंतु 70 एकड़ के रामजन्मभूमि परिसर का अन्य प्रभाग भी कम नयनाभिराम नहीं होगा।
परकोटा से ही लगा सप्तमंडपम का प्रांगण है, जिसमें लाल बलुआ पत्थर और मुख्य मंदिर की शैली में ही श्रीराम के समकालीन ऋषियों एवं अन्यान्य पात्रों को स्थापित किया गया है।
इसके बीच से गुजरना श्रीराम और उनके युग की भावधारा में डुबकी लगाना होगा। सप्तमंडपम की श्रृंखला में वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, अगस्त्य, शबरी, निषादराज और अहिल्या के मंडप तथा उस मंडप में उनकी जीवंत प्रतिमाएं स्थापित हैं।
ये प्रतिमाएं आत्मज्ञ-ब्रह्मज्ञ ऋषियों से लेकर अपने संकल्प-सदिच्छा और सद्भाव से फर्श से अर्श तक पहुंचे पात्रों की कथा के साथ वर्तमान पीढ़ी को प्रेरित-संस्कारित करने का सूत्र भी बनेंगी।
विहिप प्रवक्ता शरद शर्मा याद दिलाते हैं कि राम मंदिर का दूसरा पहलू राष्ट्र मंदिर के रूप में स्थापित है और इस भावना के अनुरूप यह परिसर आस्था के साथ राष्ट्रीय चरित्र, राष्ट्रीय एकता और समाज निर्माण के प्रति भी महनीय भूमिका का निर्वहन करने को तैयार है। परिसर के अन्य हिस्से में स्थापित गिद्धराज जटायु और रामकथा के अमर गायक गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिमाओं से भी यह भावना फलीभूत है।
ट्रस्ट ने पूरा न्याय करने का प्रयास किया : डॉ अनिल
रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य डॉ अनिल मिश्र के अनुसार ट्रस्ट ने युगों से प्रेरक इन पात्रों की महिमा से पूरा न्याय करने का प्रयास किया है, किंतु अंतिम न्याय यहां आने वाले श्रद्धालुओं को करना है और हमें विश्वास है कि वे रामीय संस्कृति के प्रभावी संवाहक बनेंगे।
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