'ये चमक, ये दमक, फूलवन मा महक...', जनकपुर से आए तिलकहरू ने अयोध्या में फिर जीवित की त्रेतायुगीन आस्था!
अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर में विराजमान होने के बाद पहली बार राम-सीता विवाहोत्सव की धूम है। जनकपुर से 500 तिलकहरू अयोध्या पहुंचे और रामलला का तिलक किया। इस पल को संत-श्रद्धालु सदैव के लिए अपने हृदय में संजोए रखेंगे। जानकी महल में श्रीराम को दामाद के रूप में पूजा जाता है और उन्हें सुबह गीत से जगाया जाता है और रात में दूध पिलाकर सुलाया जाता है।

रघुवरशरण, अयोध्या। महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी के चेहरे की चमक सोमवार को कुछ अधिक चटख दिखी, इसका कारण पूछने पर वह इस लोकप्रिय भजन को दोहराते हैं, ‘ये चमक, ये दमक, फूलवन मा महक/सब कुछ, सरकार, तुम्हई से है’। सच यह है कि महापौर ही नहीं, बल्कि पूरी अयोध्या की अधिक चमक-दमक के मूल में सदैव की तरह श्रीराम ही होते हैं।
22 जनवरी को रामलला जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में विराजमान हुए, तो सीता-राम विवाहोत्सव की तिथि पास आने पर माता सीता के मायके जनकपुर से 500 तिलकहरू रामनगरी पहुंचे। उन्होंने श्रीराम सहित चारों भाइयों का प्रतीकात्मक तिलक कर समय को जैसे उस युग की ओर प्रत्यावर्तित कर दिया, जब श्रीराम रहे होंगे। तिलकहरू के अयोध्या पहुंचने पर स्थानीय संतों-श्रद्धालुओं और नागरिकों के भी पांव त्रेता युग में लौटने के बोध से जमीन पर नहीं रह गए।
तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट महासचिव चंपत राय तो राजा दशरथ की भूमिका में नेग-न्योछावर के साथ त्रेतायुगीन संबंधों-संवेदनाओं को स्वीकार कर रहे होते हैं, तो रामकचेहरी मंदिर के महंत शशिकांतदास, रामाश्रम के महंत जयरामदास, मधुकरी संत मिथिलाबिहारीदास जैसे संतों की पांत पूरे आह्लाद से इस पल को अपनी आंखों से लेकर हृदय तक में सदा-सर्वदा के लिए अधिष्ठित करने का प्रयत्न करती प्रतीत होती है। यह आह्लाद जितना रामसेवकपुरम के प्रांगण में होता है, शेष अयोध्या के प्रांगण में भी उससे कम आह्लाद नहीं होता।
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'जनकपुर के संबंधियों ने अयोध्या पर बहुत उपकार किया'
दशरथमहल में प्रत्येक वर्ष अगहन शुक्ल पंचमी को केंद्र में रखकर नौ दिवसीय राम विवाहोत्सव राजा दशरथ के महल की परंपरा के अनुरूप राजसी ठाट-बाट से मनाया जाता है। दशरथमहल पीठाधीश्वर बिंदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य इस बार भी उत्सव की तैयारियों में व्यस्त हैं। तथापि जनकपुर से तिलकहरुओं के आने की आहट उन्हें आह्लादित कर रही होती है। वह कहते हैं कि जनकपुर के चिर संबंधियों ने त्रेतायुगीन संबंधों को जीवंत कर अयोध्या पर बहुत उपकार किया है और इसके लिए उनका हृदय से स्वागत है। वह यह भी सुझाव देते हैं कि अयोध्या और जनकपुर के साथ पूरे भारत और नेपाल के संबंधों को श्रीराम और सीता के अप्रतिम-अखंड-अटूट संबंधों से अनुप्राणित किया जाना चाहिए।
जानकी के साथ जनकपुर को कर रखा है आत्मस्थ
जनकपुर से आए तिलकहरू भले ही चिर संबंधों पर नई शान चढ़ा रहे हों, लेकिन अयोध्या ने माता सीता के साथ जनकपुर के संबंधों को युगों से आत्मस्थ कर रखा है। इसकी पुष्टि न सिर्फ रामनगरी के हजारों मंदिरों में श्रीराम के साथ पूरी अनिवार्यता से प्रतिष्ठित माता सीता की प्रतिमा से होती है, बल्कि रामनगरी में ही कई प्रखंड सीतानगरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। जानकी महल इस सत्य का साक्षी है। जानकी महल के केंद्र के जिस मंडप में सीता के साथ श्रीराम स्थापित हैं, उसे जानकीवर बिहार कुंज के नाम से जाना जाता है और श्रीराम यहां दामाद के रूप में पूजित-प्रतिष्ठित हैं। उन्हें दामाद की तरह अति सम्मान देते हुए सुबह गीत के माध्यम से जगाया जाता है और रात दूध पिलाकर, पान खिलाकर एवं लोरी सुना कर सुलाया जाता है।
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