पांच हजार वर्ष पूर्व हुई थी अयोध्या की स्थापना, इसके इतिहास में दर्ज हैं अनोखी मान्यताएं
अयोध्या, लगभग पांच हजार वर्ष पहले स्थापित, एक प्राचीन शहर है। यह भगवान राम की जन्मभूमि और हिंदू धर्म के सात प्रमुख तीर्थों में से एक है। प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है, जो इसकी ऐतिहासिक गहराई को दर्शाता है। अयोध्या की संस्कृति, कला और त्योहार इसे एक विशेष पहचान देते हैं। यह शहर विभिन्न मंदिरों और धार्मिक स्थलों का केंद्र है।

ध्वजारोहण के अवसर पर यह जानना रोचक है कि अयोध्या शताब्दियों तक सूर्यवंश की राजधानी रही।
जागरण संवाददाता, अयोध्या। भगवान राम, भागीरथ, हरिश्चंद्र, दिलीप जैसे प्रतापी राजाओं की नगरी अयोध्या पांच हजार वर्ष से भी ज्यादा पुरानी नगरी मानी जाती है, जिसका सूत्रपात वैवस्वत मनु ने किया, जिन्हें मानव जाति का प्रणेता और प्रथम पुरुष माना जाता है।
अयोध्या आदिनाथ सहित पांच जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली तो गौतम बुद्ध के 16 वर्षावास की भी। जन्मभूमि पर रामलला के साथ राजा राम के विराजमान होने के बाद ध्वजारोहण के अवसर पर यह जानना रोचक है कि अयोध्या शताब्दियों तक सूर्यवंश की राजधानी रही।
साकेत महाविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष व प्रख्यात इतिहासकार डा. महेंद्र पाठक के मुताबिक महाभारत युद्ध करीब 3100 ईसा पूर्व हुआ था। इसमें 2025 वर्ष और जोड़ दे तो अयोध्या कम से कम पांच हजार वर्ष पुरानी है, जबकि सिंधु घाटी सभ्यता का काल तीन हजार ईसा पूर्व का है।
वह बताते हैं कि खगोल विज्ञान के अनुसार अयोध्या हजारों, लाखों नहीं, बल्कि 12 करोड़ पांच लाख वर्ष पुरानी है। इसका उल्लेख बीएचयू के इतिहासकार रहे प्रो. ठाकुर प्रसाद वर्मा ने भी अपनी पुस्तक ‘अयोध्या एवं श्रीरामजन्मभूमि ऐतिहासिक सिंहावलोकन’ में किया है।
ऐसी मान्यता है कि जलप्रलय के बाद जब मनु हिमालय से नीचे उतरे तो उन्हें सबसे सुरक्षित स्थान अयोध्या के तौर पर दिखा, जो तीन ओर से नदी से घिरा है। इसलिए वैवस्वत मनु ने अयोध्या को राजधानी के तौर पर स्थापित किया। अयोध्या अलग-अलग नामों से भी प्रतिष्ठित रही।
रामनगरी अजपुरी, कोशल, विशाखा, अयुधा, अपराजिता, अवध, रघुपुरी आदि हैं। वाटिकाएं भी अयोध्या की पहचान रही हैं। इनमें श्रवणकुंज, हनुमानबाग, हनुमान वाटिका, तुलसी उद्यान, केलिकुंज, राघवकुंज आदि हैं।
अयोध्या में भगवान राम की कुलदेवी बड़ी देवकाली के तौर पर प्रतिष्ठित हैं तो माता जानकी की छोटी देवकाली के रूप में। माना जाता है कि माता जानकी विवाह के बाद जब अयोध्या आईं तो छोटी देवकाली को भी अपने साथ जनकपुर से लेकर आईं थीं।
माता छोटी देवकाली को वही मां गौरी माना जाता है, जिनसे जानकी जी ने विवाह पूर्व प्रार्थना की थी। इसके साथ ही यहां के प्रमुख मंदिरों में प्रमुख कनकभवन, हनुमानगढ़ी, क्षीरेश्वरनाथ, नागेश्वरनाथ, आदिनाथ, छोटी देवकाली, जालपा देवी, पत्थर मंदिर, कबीर मंदिर आदि हैं।
सप्तहरि की धरती अयोध्या श्रीहरि के सात प्राकट्य की भी धरती है। इनमें गुप्तहरि, चक्रहरि, विष्णुहरि, धर्महरि, पुण्यहरि, चंद्रहरि और बिल्वहरि हैं। अयोध्या में किले टीले और सरोवरों की भी नगरी है। किलों में लक्ष्मणकिला, सुग्रीवकिला, तपस्वीजी की छावनी, मणिरामदासजी की छावनी व हनुमानगढ़ी है।
रामनगरी की पहचान कुंडों से भी है। इनमें ब्रह्मकुंड, स्वर्णखनिकुंड, लक्ष्मीकुंड, सूर्यकुंड, गिरिजाकुंड, विद्याकुंड, अग्निकुंड, गणेशकुंड, बृहस्पतिकुंड, दशरथकुंड, वशिष्ठकुंड, सीताकुंड, भरतकुंड, विभीषणकुंड, दंतधावन कुंड, शत्रुघ्नकुंड व दुर्गाकुंड है। प्राचीन काल में कई और कुंड थे, जिनका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता गया। मान्यता है कि ब्रह्मकुंड वह स्थल जहां ब्रह्मा जी ने तपस्या की थी।
प्रमुख मेले यूं तो अयोध्या वर्ष भर उत्सवों से चहकती रहती है, लेकिन सबसे विशेष अवसर रामनवमी एवं दीपावली का होता है। रामनवमी को भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाता है, जबकि दीपावली भगवान की वनवास से वापसी का अवसर होती है। इसके अलावा कार्तिक माह में 14 कोसी एवं पंचकोसी परिक्रमा का आयोजन होता है। अमावस्या व पूर्णिमा को सरयू स्नान करने के लिए देश भर से श्रद्धालु जुटते हैं। कार्तिक, सावन और चैत्र मेला करीब-करीब 15-15 दिन चलता है।
84 कोस में व्याप्त संस्कृति, संस्कार, अध्यात्म के केंद्र रामनगरी की सांस्कृतिक सीमा 84 कोसी परिक्रमा पथ भी संस्कृति, संस्कार और अध्यात्म के केंद्रों से सज्जित है। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से बेहद संभावनाशील 84 कोसी परिक्रमा पथ पर भगवान राम व अनेक दिग्गज ऋषियों, मुनियों से जुड़े स्थल हैं। 84 कोस की परिधि में जमदग्नि आश्रम, अष्टावक्र मुनि, श्रृंगीऋषि आश्रम, आस्तीक ऋषि आश्रम, कपिलमुनि आश्रम, च्यवन मुनि आश्रम पड़ता है।
मखभूमि, सूर्यकुंड, सीताकुंड, रामरेखा, जनमेजयकुंड आदि पौराणिक स्थल हैं। 84 कोसी मार्ग के आसपास ही ऋषि पराशर, गौतम, अगस्त, वामदेव आश्रम आदि अनेक ऐसे दिग्गज ऋषियों के आश्रम हैं, जिन्होंने संस्कार, संस्कृति और अध्यात्म का ज्ञान दिया।
अयोध्या की 84 कोसी सीमा में रामनगरी के साथ ही गोंडा, अंबेडकर व अयोध्या-बाराबंकी जिले की सीमा का कुछ हिस्सा आता है। साधु-संत व श्रद्धालुगण प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा से 84 कोसी परिक्रमा करते हैं, जिसका समापन जानकी नवमी पर होता है।

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