अयोध्या में अभय की 'एकता दौड़' की सफलता के बाद खब्बू ने भी भरी हुंकार, 2027 चुनाव की रेस में कौन निकलेगा आगे?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल है। अभय सिंह की 'एकता दौड़' के बाद खब्बू तिवारी भी सक्रिय हैं। दोनों नेता 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। वे अपने क्षेत्रों में जनसंपर्क कर मतदाताओं को लुभा रहे हैं। देखना यह है कि 2027 के चुनाव में कौन आगे निकलता है।

एकता दौड़ के बहाने अभय एवं खब्बू की प्रतिस्पर्द्धा सतह पर।
जागरण संवाददाता, अयोध्या। सरदार पटेल की जयंती के उपलक्ष्य में भाजपा की ओर से पूरे प्रदेश में विधान सभा क्षेत्रवार संयोजित एकता दौड़ गोसाईंगंज विस क्षेत्र में रोमांचक प्रतिस्पर्द्धा के रूप में प्रस्तुत हो रही है। सामान्य तौर पर यह यात्रा विधान सभा क्षेत्र में एक बार ही हो रही है, किंतु गोसाईंगंज क्षेत्र में दूसरी बार एकता दौड़ की तैयारी नेपथ्य की रार को मंच पर प्रस्तुत करने वाली मानी जा रही है।
सच्चाई यह है कि गोसाईगंज का राजनीतिक परिदृश्य फरवरी 2024 के राज्यसभा चुनाव के साथ बदलने लगा, जब क्षेत्र के सपा विधायक अभय सिंह ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कर विद्रोह का झंडा बुलंद किया। तभी से अभय सिंह के भाजपा में जाने की बाट जोही जाने लगी थी, किंतु तकनीकी कारणों के चलते अभय सिंह को भाजपा के करीब आने में कुछ वक्त लगा।
आज जब 2027 की शुरुआत में होने वाले उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का रिहर्सल शुरू होने जा रहा है तब अभय ने भाजपा में शामिल होने और इसी दल से टिकट की दावेदारी के बीच सोमवार को एकता दौड़ का पूरी ताकत से संयोजन कर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। इसे सफलतापूर्वक संयोजित कर अभय ने संदेश दे दिया कि वह सिटिंग विधायक हैं और भाजपा नेतृत्व सपा से विद्रोह करने की कीमत उन्हें इस क्षेत्र का टिकट देकर चुकाएगा।
अभय सिंह की तैयारी और भाजपा के टिकट की दावेदारी का समीकरण एक ओर उनके समर्थकों को उत्साहित कर रहा है तो दूसरी ओर लंबे समय से अभय से लोहा लेते रहे इंद्रप्रताप तिवारी और उनके समर्थकों को असहज कर रहा है। कभी दोनों बाहुबलियों ने साथ चल कर भविष्य संवारने की सोची, किंतु राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते जल्दी ही उनकी राह अलग हो गई और यह विलगाव 2012 के विस चुनाव में पूरी रोचकता से सतह पर उभरा।
यद्यपि अभय सिंह सपा प्रत्याशी के रूप में बड़ी जीत हासिल करने में सफल रहे, किंतु खब्बू ने मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में लगभग 65 हजार मत प्राप्त कर बता दिया कि वे आसानी से मैदान छोड़ने वाले नहीं है। यह अनुमान सच भी सिद्ध हुआ।
2017 के चुनाव में खब्बू ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में अभय से पराजय का बदला ले लिया, किंतु मतगणना में अंत तक टक्कर देकर अभय ने इस धारणा को मजबूती दी कि उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता आसानी से विसर्जित होने वाली नहीं है। यह सच 2022 के चुनाव में और रोचकता से परिभाषित हुआ।
खब्बू को एक अदालती आदेश के कारण न केवल विधायकी से वंचित होना पड़ा, बल्कि जेल में रहने के चलते भाजपा ने गोसाईगंज क्षेत्र से उनकी पत्नी आरती तिवारी को प्रत्याशी बनाया। आरती 13 हजार मतों के अंतर से चुनाव हार गई, किंतु 92 हजार 784 मत पाकर उन्होंने बता दिया कि राजनीतिक और विशेष रूप से गोसाईंगंज की राजनीतिक जमीन पर उनके पति का क्या रुतबा है।
डेढ़ वर्ष पूर्व जेल से छूटने के बाद खब्बू अपनी राजनीतिक जमीन पुख्ता करने के अभियान में युद्धस्तर पर शामिल हुए। इसी वर्ष के प्रारंभ में हुए मिल्कीपुर विधान सभा के उप चुनाव में वह भाजपा प्रत्याशी की सफलता में अहम भूमिका के साथ न केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शाबाशी पाने में सफल रहे हैं, बल्कि स्वयं को पुनर्प्रतिष्ठित करने के अभियान में भी काफी हद तक सफल हुए हैं।
तभी से वह गोसाईंगंज की अपनी पारंपरिक सीट पर भाजपा से टिकट की दावेदारी के लिए खम ठोंक रहे हैं और अभय के संयोजन वाली एकता दौड़ के जवाब में 20 नवंबर को उनके संयोजन में एकता दौड़ ऐसी ही दावेदारी से जोड़ कर देखी जा रही है।
पार्टी नेतृत्व की ओर से दोनों सियासी सूरमाओं की ओर से संयोजित एकता दौड़ के प्रति तटस्थ समर्थन संभवत: दोनों के दम और दावेदारी के आंकलन का परिचायक है। इस प्रतिस्पर्द्धा पर आम मतदाताओं, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और दोनों क्षत्रपों की होड़ के बीच संभावनाएं तलाश रहे विस क्षेत्र के अन्य दावेदारों की भी नजर है।

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