गांव वाले रहे गदगद,क्योंकि बचाव को थे पीपल-बरगद
जागरण टीम औरैया प्राणी मात्र की हर सांस की रक्षा करने वाले आक्सीजन युक्त पौधे पर्यावरण क

जागरण टीम, औरैया: प्राणी मात्र की हर सांस की रक्षा करने वाले आक्सीजन युक्त पौधे पर्यावरण को संरक्षित भी रखते हैं। यह जहां भी पोषित हैं, उस जगह पर संक्रमण दस्तक नहीं दे सकता है। अब यह कहावत नहीं रह गई। इसका परिणाम भी हमारे सामने हैं। पीपल व बरगद (वट वृक्ष) की पहचान ग्राम मल्हौसी में कोरोना वायरस पहली लहर में दस्तक नहीं दे सका। गांव कोरोना मुक्त रहा। दूसरी लहर में तीन ग्रामीण संक्रमित हुए। इसमें दो की रिपोर्ट तीन दिन बाद निगेटिव हो गई तो एक पीड़ित की उपचार के दौरान मौत हो गई।
कोरोना की दूसरी लहर में जब पूरे देश में आक्सीजन के लिए हाहाकार मची हुई थी। एक-एक सांस की तड़प चारों तरफ गूंज रही थी। तब बेला के गांव मल्हौसी का 440.97 हेक्टेयर में बसे 677 घरों के 3876 लोगों में महज तीन लोग ही कोरोना से पीड़ित हुए। जबकि कोरोना की पहली लहर में पूरा गांव खतरनाक संक्रमण से भयमुक्त रहा। निश्चित रहने की वजह सिर्फ यहां पर लगे आक्सीजन युक्त बरगद के 60, पीपल के 125 पेड़ हैं। 24 घंटे आक्सीजन देने वाले इन पेड़ों की वजह से कोरोना पहली लहर में भी गांव की सीमा को नहीं लांघ पाया। दूसरी लहर में भी ज्यादा प्रभाव नहीं रहा। बुजुर्गों की पीपल व बरगद के पौधे रोपित करने की सीख गांव के नई पीढ़ी को विरासत में मिली है। 'पीपल वाला गांव' से पहचान बनाने वाला गांव मल्हौसी के अलावा कई ऐसे मार्ग हैं जिनकी पहचान कतारबद्ध घने वृक्ष हैं। बुजुर्गों के नाम पर एक पीपल का पेड़ लगाने की परंपरा रही है। धार्मिक व आध्यात्मिक मान्यता है कि पीपल के पेड़ के पत्ते-पत्ते पर देवताओं का वास होता है। इसी आस्था से जुड़कर पूजा अर्चना के बाद जब किसी की मनौती पूरी होती है तो वह एक पीपल का पौधा रोपित कर उसे संरक्षित करने की जिम्मेदारी भी निभाता है। मल्हौसी में परंपरा को कायम रखने के लिए ग्राम प्रधान मल्हौसी उर्मिला देवी का कहना है कि और ज्यादा पीपल-बरगद के पौधे लगाए जाएंगे। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर गांव में एक सैकड़ा से ज्यादा पौधे रोपे गए हैं।
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