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    काकोरी कांड के महानायक थे औरैया के भारतवीर

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 06 Aug 2021 11:36 PM (IST)

    जागरण संवाददाता औरैया आजादी की लड़ाई में देश के तमाम देशभक्तों का महत्वपूर्ण योगदान भु ...और पढ़ें

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    काकोरी कांड के महानायक थे औरैया के भारतवीर

    जागरण संवाददाता, औरैया: आजादी की लड़ाई में देश के तमाम देशभक्तों का महत्वपूर्ण योगदान भुलाया नहीं जा सका। जांबाजों के संस्मरण आज भी ताजा हो रहे हैं। इनमें औरैया के भारतवीर उपाधि से अलंकृत मुकुंदीलाल गुप्ता ने भी देश को आजाद कराने में अपनी महती भूमिका अदा की। नौ अगस्त 1925 को साथी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर उन्होंने काकोरी ट्रेन डकैती की घटना को अंजाम देते हुए अंग्रेजी हुकूमत का खजाना लूटकर देशभक्तों की श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराया।

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    शहर के मोहल्ला पुराना बजाजा निवासी भारतवीर मुकुंदीलाल गुप्ता को काकोरी कांड से पूर्व मैनपुरी षडयंत्र कांड में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। इस सिलसिले में वर्ष 1918 में उन पर मुकदमा चला। क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से उन्हें छह वर्ष का कठोर कारावास हुआ। जेल से रिहा होने के बाद वह क्रांतिकारी गतिविधियों में निरंतर भाग लेते रहे। पुलिस इनके परिवार को परेशान करने लगी। अपने को सुरक्षित रखने को उनका परिवार झांसी चला गया और वहां व्यापार करने लगा। आजादी के दीवाने ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग जारी रखने को मैनपुरी कांड में जिन युवकों को सजा दी गई, उन्हें खोजकर संपर्क करना शुरू कर दिया। क्रांतिकारी शतींद्र नाथ बक्सी उनके साथ रहे।

    ------- हिदुस्तान प्रजातंत्र संघ का मिला साथ

    शतींद्र नाथ के प्रयास से भारतवीर मुकुंदीलाल क्रांतिकारी दल हिदुस्तान प्रजातंत्र संघ से जुड़ गए। संघ के माध्यम से उन्होंने काकोरी कांड की योजना तैयार की। कई बैठकों में भाग लेते रहे और अंग्रेजों की सरकारी संपत्ति छीनने में जुट गए। नौ अगस्त 1925 को उन्होंने साथियों के साथ काकोरी में ट्रेन के डिब्बे के पास खड़े होकर फायर करना शुरू कर दिया, जिससे कोई यात्री नीचे न उतर सके। बाद में मुखबिरी के चलते 26 सितंबर 1926 को वह पुलिस के हत्थे चढ़ गए। काकोरी कांड से संबंधित मुकदमा लखनऊ न्यायालय में चला। छह अप्रैल 1927 को न्यायाधीश ने मुकुंदीलाल गुप्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हालांकि 10 वर्ष बाद उन्हें रिहा भी कर दिया गया।

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    स्वाधीनता आंदोलन में निभाई महती भूमिका:

    जेल से रिहा होते ही मुकुंदीलाल ने 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में सक्रियता से भाग लेना शुरू कर दिया। इस दौरान भारत छोड़ो आंदोलन में एक बार फिर से वह अंग्रेजी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। जिसमें उन्हें सात वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई, लेकिन भारत का यह सपूत देश सेवा में अडिग बना रहा। पूर्व सैनिक अविनाश अग्निहोत्री ने बताया कि भारतवीर मुकुंदी लाल के जीवन पर छात्र पीएचडी भी कर रहे हैं। मैनपुरी निवासी यति यादव ने चार साल पूर्व पीएचडी के लिए भारतवीर को ही चयनित किया था।

    प्रस्तुति- अशोक त्रिवेदी